बकराईद सिर्फ खाने पीने का मसला नही हे। इसके साथ और भी कुछ बिंदु जुड़े हुए हे जो की राष्ट्रहित में उपयोगी हे।
जेसे ईद उल अजहा के मौके पे लाखो जानवरों की कुरबानी होती हे जिससे देश का खरबों रुपियों का चमड़े का व्यवसाय तरक्क़ी करता है.
उन्ही जानवरों की खालो से मन्दिरों और मठो में श्रधा से बजाए जाने वाले ढोल से लगाकर सेनिको के वस्त्र एवं देश की रक्षा में काम आने वाले हथियारो के कवर घोड़ों के ज़ीन बनाये जाते हें जानवरों कि खाल से बन्ने वाली वस्तुएँ जिसे देश का हर व्यक्ति उपयोग करता हे जेसे :- बेल्ट/पॉकेट /बटुआ /पर्स/कंपनी बेग, जेकेट, जूते, चप्पलें बनाई जाती हे
जानवर कि हड्डी शक्कर बनाते समय उस को साफ करने के काम आती हे और उसके कई अंगो से केप्सुल के कवर बनाए जाते हे तभी केप्सुल नोन्वेज होता हे।
जानवर की आंते खाई नही जाती, उसकी आंतो से धागे बनाए जाते हे, उसी धागे द्वारा अस्पतालों में दुर्घटना में घायल लोगो के कटे फटे अंगो कों सिला जाता हे। जब कोई ईद विरोधी, दुसरो के खानपान में नुक्ता चीनी करने वाला, जेविक असंतुलन से बेखबर व्यक्ति जब अस्पताल में दर्द से कराह रहा होता हे तब उसी धागो से उसकी चमड़ी सिली जाती हे और बाद में वही केप्सुल दिया जाता हे ।।।
क़ुरबानी के जानवर के गोश्त के तीन 3 हिस्से किये जाते हे जिसमे से एक हिस्सा उन मिलने वालो को दिया जाता हे जिनके घर ज़िबह का जानवर नही होता,एवं एक हिस्सा गरीबो यतीमो को दिया जाता हे जिससे उन्हें भरपूर प्रोटिन एवं ओमेगा 3 , फेटी एसिड,आयरन,केल्सिलम इत्यादि तत्वों का पोषण मिलता हे, विश्व स्तर पे गरीब लोगो में कुपोषण का स्तर जानवरों के बराबर ही हे, इस त्यौहार की बदोलत करोड़ो गरीबो को अच्छा और सेहत के लिए बेहद मुफीद भोजन मिलता है.
देश के लाखो ग्रामीण किसान जिनमे ज्यादातर गरीब दलित वर्ग है
जिनका खेती के साथ पशुपालन का व्यवसाय हे उन्हें ईद के मौके पर प्रत्येक जानवर के चार गुना अधिक पेसे मिलते है जिससे उनके पूरे साल की रोटी का इन्तेज़ाम हो जाता हे। बकरा ईद के मौके पर हज का सीजन होता हे जिससे एयर इंडिया एवं देश की निजी हज कम्पनियों को करोड़ों रुपियों का फायदा होता है।
कुल मिलाकर बकरा ईद पर्व “राष्ट-हित” में बहुत उपयोगी है।
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