सुधीर सिंह परिहार : गौ-रक्षक नकली हों भी, तो असली है कौन? साहिब…

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गौ-रक्षा के नाम पर उत्तरप्रदेश के अखलाक कांड से लेकर प्रधानमंत्री के टाउन हॉल में दिए गए गुस्से से भरे बयान तक कई सारी ऐसी घटनाएं घट चुकी थीं, जिनके द्वारा किसी सामान्य से व्यक्ति को भी यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि गौ के नाम पर जो धमाल चल रहा है उसमें सिर्फ गौ रक्षा को ही लक्ष्य मानने वालों के अतिरिक्त और भी लोग अपने लक्ष्य साध रहे हैं.

राष्ट्रीयता, धर्म, आदर्श, मानवता और संस्कृति के नाम पर दाल ही काली तो नहीं ?

पता नहीं सवा सौ करोड़ देशवासियों के प्रधान चौकीदार की भूमिका निभा रहे मोदी जी को जनमानस की धार्मिक आस्था के प्रतीक गौधन जैसे संवेदनशील विषय पर नकली लोगों की पहचान और उन पर कार्यवाही करके जनता में कानून सबके लिए बराबर है जैसा संदेश देने के बजाए भाषण में ही अपने गुस्से का इजहार करके काम चलाना पड़ा। इतने लम्बे समय में देश के भाईचारे को नुकसान भी बहुत हुआ है इससे किसी को इंकार नहीं होना चाहिए।

राजस्थान में भाजपा की ही वसुंधरा सरकार द्वारा गौ-रक्षा पर पानी की तरह पैसा लुटाने और जनता में अपने असली गौ-संरक्षक होने का ढिंढोरा पीटने वालों की पीठ पर पूरा हाथ रखने के बावजूद गौ-माता की क्या दुर्दशा सामने आयी है? इसे असली धार्मिक प्रवृति से राजनीति करने वालों की आशा में वोट देने वालों को काफी निराशा ही हुई होगी। हाईकोर्ट ने जिस तरह से अपने गुस्से का इजहार किया है वास्तव में वह असली और नकली की पहचान से ही जुड़ी हुई बात है।

जिस परिप्रेक्ष्य के कारण शायद प्रधानमंत्री को 11 महीने बाद अपनी मन की बात गुस्से के रूप में कहनी पड़ी वो गुजरात में दलितों की अमानवीय पिटाई की पीड़ा से हो सकने वाले चुनावी नुकसान के अंदेशे का असली कारण भी लग सकता है। यह सदियों से मानवता के प्रेम की बाट जोह रहे दलितों से ही पूछा जाए तो बेहतर है कि जिस तरह से लोग उनको अपना भाई बता रहे हैं, उनके साथ खाना खा रहे हैं और उनकी सरकार ही बनाने का दावा करते रहे हैं इन सब को दलित कितना असली और कितना नकली मानता है?

वास्तव में प्रधानमंत्री की अचानक इस दो-टूंक बात ने कुछ असामाजिक तत्वों की असलियत भले ही उजागर कर दी हो, लेकिन उन लाखों समर्पित गौ-सेवकों को भी कटघरे में खड़े करने का अवसर भी दे ही दिया है जो वर्षों से तन-मन-धन से गौ-सेवा के लिए ही जीवन जी रहे हैं। यहां बेहतर होता कि जो कानून तोड़े उसको तत्काल बिना किसी भेदभाव के कड़ी सजा मिलने की व्यवस्था की जाती तो शायद असली गौ-सेवकों को कोई शिकायत न होती।

असली और नकली की पहचान करने की समस्या से तो यह देश पूरे सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर ही जूझ रहा है। जनता भी देर सबेर समझ ही लेती है भले ही नुकसान हो जाने के बाद की असली क्या है और नकली क्या था? पिछले लोकसभा चुनावों की तैयारी से ही देखें तो जिस पाकिस्तान को लव लेटर की भाषा छोड़कर उसी की भाषा में जबाव न देने के कारण मनमोहन सिंह जैसे समर्पित व्यक्तित्व को असरदार नहीं माना जा रहा था अब भी हालत असलियत में पहले की ही तरह होने से भी कई लोग इंकार नहीं करेंगे।

जो एक के बदले दस सिर लाने की धमकी थी वह असली थी यह मानने वाले अब कम ही मिलेंगे। इसी तरह सीमा के सिपाही दिल्ली के आदेशों के कारण मात खा रहे हैं जैसा आरोप भी आतंकवादी हमला झेल चुके पठानकोट में किसी असली समाधान के लिए आईएसआई को बुलावा देने के कारण नकली सा भी लगा हो, तो कोई बड़ी बात नहीं है।
डॉ. मनमोहन सिंह की उम्र को पार करने वाला डॉलर असलियत में नीचे आने तैयार ही नहीं है।

जीएसटी बिल पर पहले भाजपा का विरोध असली था या अब कांग्रेस का नकली है समझ ही नहीं आता। श्रीश्री रविशंकर ने अपने भव्य कार्र्यक्रम से आर्ट ऑफ लिविंग का प्रसार किया अथवा यमुना के पर्यावरण को उजाड़ दिया, एनजीटी में नामुकुर के बाद भरे हर्जाने के बाद भी असली और नकली की पहचान मुसकिल ही बनी हुई है।

केजरीवाल की सरकार में शामिल विधायक जनता में अपनी असली छवि बताने में कितने असली और कितने नकली साबित हुए इसे भी जनता आप सरकार के मंत्री तोमर के फर्जी डिग्री केस में गिरफ्तार होने से देखती आ रही है। डिग्री के असली और नकली होने के आरोप से तो स्वयं मोदी जी ही परिचित हैं कि बड़ा ही उलझा हुआ मामला है और लोग भी कितनी पुरानी बातों को उखाड़ कर नाहक समय बर्बाद करते हैं। वर्तमान की कपड़ा मंत्री और पूर्व में मानव संसाधन मंत्रलय की केबिनेट मंत्री रहीं स्मृति ईरानी भी समझती ही होंगीं कि डिग्री के असली और नकली होने से बहुत समस्या हो जाती है।

पांच साल पहले रामलीला मैदान और जंतर-मंतर से कांग्रेस के भ्रष्टाचार को देश की सबसे बड़ी समस्या मानने वाले अन्ना हजारे के मंच पर तिरंगा हाथ में लहराती हुई किरण वेदी, केजरीवाल और जनरल व्ही.के. सिंह जिस राजनीतिक गंदगी को साफ करने की बात जनता के सामने करके जनता के मन में कांग्रेस के प्रति नफरत उभार रहे थे अब नई सरकार बनने और स्वयं को राजनीति में स्थापित करके यह लोग असली लोकपाल पर कितना काम कर रहे हैं और नकली लोकपाल का कितना विरोध?

पतंजलि को अरबों रूपये के साम्राज्य में बदल कर खरबों की संपत्ति तक पहुंचाने के कठिन कार्य में राजनीतिक बदलावों का पूरा लाभ ले रहे योग गुरू रामदेव कांग्रेस की 60 साल की करतूतों से अब देश को कितना सुकून में देखते हैं? उन्हें लूटमार की असलियत जनता को समझाने की अब शायद जरूरत न पड़े। सोनिया गांधी इटली की हैं और वे मूलत: हिन्दू धर्म से भी नहीं हैं और न ही उनका जन्म भारत में हुआ था इसलिए उनकी राष्ट्रीय भावनाओं, देश के प्रति समर्पण और उनके त्याग तथा बलिदान को हमेशा ही असली की बजाए नकली बताकर कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय और राजनीतिक मामलों को धर्म व संस्कृति का चोला पहनाने वालों की असलियत पर भी कोई बात तो होनी ही चाहिए।

इटली के मरीन अब कहां और किस हालत में हैं? सिहंस्थ जैसे धार्मिक आयोजन से जुड़े कई लोगों की असलियत जानने की मांग क्यों हो रही है? और जनता को भी असली बात पता लगे कि सिहंस्थ व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाली धर्म की आस्थाओं से लबालब भारत में पैदा हुईं राष्ट्रभक्ति के दैदीप्यमान नक्षत्र जैसी भारत माता की संतानें कुछ अपनी जेब की कमाई लगाकर पुण्य कमाने में सफल हुईं भी या उलटे उनकी जेबें हीं फट गईं।

9 अगस्त को अगस्त क्रांति अर्थात् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को हमारी नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक महान अवसर माना जाता है। ऐसे कितने लोगों की राष्ट्रीय भावनाओं को असली और बिना राजनीति के सिर्फ भारत माता की आजादी को समर्पित मानें, जिन्होंने ‘करो या मरोÓ के नारे के साथ उस आंदोलन को अपनी जिदंगी की आखरी लड़ाई मानने वाले महात्मा गांधी को भी याद करना मुनासिब न समझा हो?

क्या वास्तव में विदेशों में जाकर गांधी के नाम की चर्चा कर अपनी पहचान बनाने वाले इस देश के लोगों को असली और नकली की पहचान है? कितने राजनीतिक दल और नेता अपनी कथनी और करनी में असली नजर आते हैं? कितने एनजीओ दान के पैसे को उसी असली कार्य में लगा रहे हैं जिसके लिए उन्हें दान मिला था? मीडिया की चकाचौंध में असली और नकली का खेल क्या हमें सिर्फ लोकतंत्र के चौथे खम्भे की भूमिका में खरा उतरता लगता है? जिस सीबीआई को कोर्ट ने तोता कहा था क्या अब वो असली और नकली की पहचान में समर्पित है?

मुद्दा वही है जिसे कि स्वयं मोदी जी भी कहते रहे हैं कि इस देश में गांधी जैसा कोई व्यक्तित्व बहुत जरूरी है जो जनता में समझदारी और वास्तविकता की बात करे तथा स्वयं भी कथनी और करनी की एकरूपता का आदर्श बनकर जनता के सामने खड़ा हो। इसके बगैर सिर्फ उंगलियां उठाने और दांव पर दांव चलने से देश का असली भला हो पाएगा संदेह ही है।

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