मैं एक बहुत ही धार्मिक हिन्दू परिवार में पैदा हुई और मैं भी उस समय हिन्दू धर्म को ही मानती थी। मुझे हिन्दू धर्म की कई बातों पर हमेशा से शक था पर मैंने कभी उन पर ज़्यादा गौर नहीं किया।
मैं ईसाई, बौद्ध, जैन धर्म के बारे में जानती थी और मेरे इन सभी धर्मों के दोस्त भी थे, पर मैंने कभी इस्लाम को जानने की कोशिश नहीं की थी। क्यूंकि मुझे हमेशा से ही बताया गया और मुझे ऐसा लगता भी था की इस्लाम एक कट्टरपंथ और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला धर्म है।
पार्वती माहिया ने अल्लाह (सुब्हानहु व तआला) की रज़ामंदी के लिए हिन्दू धर्म को छोड़ कर इस्लाम को अपने गले से लगा लिया। उनके मुताबिक़ इस्लाम उन्हें मन की शान्ति देता है। पार्वती माहिया कहती है कि उनको अब इतनी शान्ति मिलती है जो की उनकी ज़िन्दगी में शायद ही मिल पाती। उन्होंने अपने इस्लाम तक आने के सफर ‘द इस्लामिक इनफार्मेशन’ वेबसाइट पोर्टल में फहदुर रहमान खान से शेयर किया है।
जब मैं अपने कॉलेज के पहले वर्ष में थी तब मेरे क्लास में दो लड़कियां थी, जो की हमेशा बुरका पहन कर आया करतीं थी। तो मैंने उनसे उत्सुकता में आ कर उनसे पूछ ही लिया कि तुम लोगों को बुरा नहीं लगता, तुम लोग फैशनेबल कपड़े नहीं पहन पाती हो?
तो उनमें से एक ने कहा की, ‘हम ये कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती से नहीं पहनते हैं। हम सिर्फ इसको अपनी सुरक्षा के लिए पहनते हैं। हमको खुद को ढकने में ज़्यादा सुरक्षा और सुंदरता महसूस होती है।
और उनकी इन् बातों ने मेरे दिमाग में कई सवाल पैदा कर दिए
आगे चल कर एक ऐसा समय आया जब मेरे पिता ने मूर्तियों को पूजना छोड़ दिया और वह एक गुरु को मानने लगे। मैंने सोचा कि ये गलत है, हम एक इंसान को ही सब कुछ मानने लगे।
मैं यह सोचती थी कि जिसने सब को बनाया है हमको सिर्फ और सिर्फ उसे ही पूजना चाहिए। मुझे ये सब बिलकुल गलत लगता था।
और मैंने ये तय किया कि मुझको एक सही रास्ता ढूंढ़ना पड़ेगा जिस पर मैं चल सकूँ। मैंने काफी धर्म को जानने की कोशिश की, पर मुझे कुछ समझ नहीं आया। फिर मैंने इस्लाम को जानना चाहा जिसमें मेरे एक दोस्त ने मेरी काफी मदद की।
मैंने इस्लाम से जुडी वीडियो, ब्लॉग, आर्टिकल, और क़ुरआन पढ़ना, और साथ में रोज़े भी रहा करती थी। फिर मैंने एक दिन इस्लाम को क़ुबूल करने का कर ही लिया और अल्हम्दुलिल्लाह मैंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया। मुझे इस बात पर गर्व है की मैंने इस्लाम को किसी व्यक्ति के कारण या उसकी वजह से क़ुबूल नहीं किया था, इस्लाम को मैंने खुद ही जाना और परखा, तब जा कर मैंने इस्लाम धर्म को अपनाया।
आज मैं जब हर जगह नफ़रत और बुराई देखती हूँ तो मैं अल्लाह (सुब्हानहु व तआला) का शुक्रिया अदा करती हूँ, जिसने मुझे इस्लाम को समझने का मौका दिया और मुझे हिदायत दिया। आज मेरी नज़र में कोई भी धर्म इस्लाम से ज़्यादा पाक और सच्चा नहीं है। मेरे परिवार ने, मेरे दोस्तों ने सभी ने मिल कर मुझको इस्लाम के रास्ते पर जाने से रोकने के लिए बहुत कोशिश की, पर मैंने इस्लाम का साथ नहीं छोड़ा।
एक ऐसा समय आया जब मैं बिलकुल टूट गई थी पर इस्लाम ने मुझे एक नई ज़िन्दगी दी
जब लोग इस्लाम के खिलाफ बोलते तो मेरा इस्लाम पर भरोसा और भी बढ़ जाता, क्यूंकि कहते हैं न की ‘बुराई के साथ तो सब होते हैं पर अच्छाई के साथ कोई नहीं होता है।
आज मैं हर दिन कोशिश करती हूँ कि मैं एक अच्छी से अच्छी मुसलमान बन सकूँ और ये ही मेरा लक्ष्य है। मैं सभी से यह कहना चाहती हूँ की एक ईश्वर को मानें, उसकी पूजा करें, उसका आदर करें और हमेशा ही सच्चे और सही रास्ते पर चलते रहें। source
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