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अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प रहा है अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के सुल्तान थे और वह खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी के भतीजे और दामाद थे इतिहासकारों के अनुसार यह माना जाता है अलाउद्दीन खिलजी खिलजी साम्राज्य का सबसे अधिक शक्तिशाली शासक रहा था.
और उसने सुल्तान बनने के पहले इलाहाबाद के पास खड़ा नाम की जागीर दी गई थी जिसे उन्होंने संभाला था और अलाउद्दीन खिलजी के बचपन का नाम गुरु शासक था अलाउद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद अमीरे उन्हें अमीर ए तुजुक से भी नवाजा गया.
दुनियाँ की बड़ी बड़ी सल्तनत जब मंगोलो के ख़ौफ़ से थर थर कांप रही थी, तब उस वक़्त हिन्दुस्तान में एक ऐसा बहादुर और दिलेर शहंशाह हुकुमत कर रहा था जिनसे मंगोलो को एक बार नही बल्के पांच बार युद्ध में शिकस्त दिया.
बुरी तरह हार का सामना कर रहे मंगोलो मे अलाउद्दीन ख़िलजी के नाम का ख़ौफ़ तारी हो गया था. अलाउद्दीन ख़िलजी दुनिया के ऐसे चंद शासकों में भी शामिल थे जिन्होंने मंगोल आक्रमणों को नाकाम किया और अपने राज्य की रक्षा की.
उन्होंने न सिर्फ़ बड़ी मंगोल सेनाओं को हराया बल्कि मध्य एशिया में मंगोलों के ख़िलाफ़ अभियान भी चलाया।
एक बार तो उन्हे अफ़्गानिस्तान में घुस कर भगाया; उनके ख़ौफ़ का ये आलम था के हिन्दुस्तान पर हमला करने वाले मंगोल फ़ौज के राजा ने अपने चार हज़ार सिपाहीयों के साथ इस्लाम क़बुल कर लिया,,जिन्हे आज के निज़ामुद्दीन में मुग़लपुरा बना कर बसाया गया था.
इस अज़ीम फ़ातेह ने 1301 मे रंणथम्बोर फ़तह किया, 1303 में चित्तौड़, 1304 में गुजरात, 1305 में मालवा, 1308 में सवाना को फ़तह किया ,विंध्याचल कोहिसार पार करके 1308 में देवगिरी,, तो 1310 में वारंगल, 1311 में द्वार समंदर फ़तह किया,, 1311 में ही जालोर और परमार ख़ानदान की ताक़त को तोड़ा और पांडिया ख़ानदान को बाजगुज़र बनाया और एक मज़बुत हिन्दुस्तान की बुनियाद डाली जिसकी दारुलहुकुमत दिल्ली के ज़ेर ए निगरानी दकन का इलाक़ा भी था.
अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में शराब और भांग जैसे मादक पदार्थों का सेवन तथा जुआ खेलना बंद करा दिया गया था. अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने भूमि की पैमाइश कराकर राजस्व वसूल करना आरंभ किया.
उसने केंद्र के अधीन एक बड़ी और स्थायी सेना रखी तथा उसे नकद वेतन दिया. ऐसा करने वाला वह दिल्ली का प्रथम सुल्तान था. उसने धर्म को राजनीति से पृथक किया. खलीफा की सत्ता को अपने राजकाज में क़तई हस्तक्षेप नहीं करने दिया.
अलाउद्दीन ख़िलजी ने जीवन की अत्यावश्यक वस्तुओं से लेकर विलास-वस्तुओं-जैसे दासों, अश्वों, हथियारों, सिल्क और सामग्री तक सभी चीजों के मूल्य निश्चित कर दिये थे. राजधानी के चतुर्दिक खालसा गाँवों में भूमिकर नकद के बदले अन्न के रूप में लिया जाने लगा.
अन्न दिल्ली नगर की राजकीय अन्न-शालाओं में संचित किया जाता था ताकि दुर्मिक्ष के समय सुल्तान इसे बाजारों में भेज सके. अन्न का कोई भी व्यक्तिगत रूप में संचय नहीं कर सकता था. बाजारों पर दीवाने-रियासत एवं शहना-ए-मंडी (बाजार का दारोगा) नामक दो अधिकारियों का नियंत्रण रहता था.
सुल्तान को बाजारों की दशा की सूचना देने के लिए गुप्तचरों का एक दल नियुक्त था. व्यापारियों को अपना नाम एक सरकारी दफ्तार में रजिस्ट्री कराना पड़ता था. उन्हें अपनी सामग्री को बेचने के लिए बदायूं द्वार के अन्दर सराय-अदल नामक एक खुले स्थान पर ले जाने की प्रतिज्ञा करनी पड़ती थी. उन्हें अपने आचरण के लिए पर्याप्त जामिन देना पड़ता था.
सुल्तान के नियमों का उल्लंघन करने पर कठोर दण्ड की व्यवस्था थी. दुकानदारों द्वारा हल्के बटखरों का व्यवहार रोकने के लिए यह आज्ञा थी कि वजन जितना कम हो उतना ही मांस उनके शरीर से काट लिया जाए. बाजारों में अनाज का अपरिवर्तनशील मूल्य उस समय का एक आश्चर्य ही समझा जाता था.
अलाउद्दीन ख़िलजी ने ही भारत में लोगों को व्यापार करना सिखाया और अपने साम्राज्य को दक्षिण की दिशा में बढ़ाया। उनका साम्राज्य कावेरी नदी के दक्षिण तक फैल गया था.
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