अबू हुरैरा नबी से बोले, अमीर लोग हज और उमराह कर लेते हैं लेकिन गरीब क्या करे ? नबी ने कहा उनके लिए ये है दुआ

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हालाँकि जिस तरह हम नमाज़ पढ़ते हैं वो भी पढ़ते हैं और जैसे हम रोज़ा रखते हैं वो भी रखते हैं लेकिन माल और दौलत की वजह से उन्हे हम पर फोवक़ियत हासिल है.

( यानि उनके पास माल ज्यादा है ) जिसकी वजह से वो हज करते हैं, उमराह करते हैं जिहाद करते हैं और सदक़ा देते हैं और हम मोहताजी की वजह से उन कामों को नही कर पाते.

इस पर आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ने फरमाया की मैं तुम्हे एक ऐसा अमल बताता हूँ की अगर तुम उसकी पाबंदी करोगे तो जो लोग तुमसे आगे बढ़ चुके हैं तुम उन तक पहुँच जाओगे और तुम्हारे मर्तबे तक फिर कोई नही पहुँच सकता और तुम सबसे अच्छे हो जाओगे सिवा उनके जो यही अमल शुरू कर दें.

हर नमाज़ के बाद 33 मर्तबा तसबीह ( सुबहानअल्लाह) और तम्हीद  ( अल्हाम्दुलिल्लाह) और तकबीर ( अल्लाहू अकबर) कहा करो फिर हम मैं इकतिलाफ हो गया किसी ने कहा की हम तसबीह 33 मर्तबा , तम्हीद   33 मर्तबा और तकबीर 34 मर्तबा कहे.

मैने इस पर आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम से दोबारा मालूम किया तो आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम  ने फरमाया सुबहानअल्लाह और अल्हाम्दुलिल्लाह और अल्लाहू अकबर कहो ताकि हर एक उनमें से 33 मर्तबा हो जाए. सही बुखारी, जिल्द 2, #843

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