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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है। “अल-आला” अल्लाह के अच्छे नामों में से एक नाम है। अल्लाह तआला ने फरमाया : (سَبِّحِ اسْمَ رَبِّكَ الْأَعْلَى) [سورة الأعلى : 1]. “अपने “अल-आला” (सर्वोच्च) रब के नाम की पवित्रता का वर्णन करो।” (सूरतुल-आला : 1) ”अल-आला” वह अस्तित्व है जिसे हर प्रकार से संपूर्ण सर्वोच्चता प्राप्त हो।
अल्लामा सअदी रहिमहुल्लाह कहते हैं : (“अल-अली” तथा “अल-आला” वह अस्तित्व है जो हर प्रकार से संपूर्णतया सर्वोच्च हो, व्यक्तिगत रूप से सर्वोच्च हो, पद व प्रतिष्ठा और सिफात (गुणों) के एतिबार से सर्वोच्च हो तथा प्रभुत्व व सत्ता के एतिबार से सर्वोच्च हो। चुनाँचे वही अर्श (सिंहासन) पर मुस्तवी (बुलन्द) है तथा वह राज्य पर सत्तावान है।
तथा वह महानता, उच्चता, तेज, प्रताप, सुन्दरता और संपूर्णता के सभी गुणों से सुसज्जित है और उनमें अंतिम सीमा को पहुँचा हुआ है।” “तफ्सीर सअदी” (पृष्ठ संख्याः 946) से समाप्त हुआ।
इस विषय में महत्ता के लिए शैख़ मुहम्मद हमूद नजदी की पुस्तक “अन-नहजुल अस्मा फी शर्ह अस्माइल्-लाहिल हुस्ना” (1/321-337) देखें। इस नाम के अनुसार अमल इस प्रकार होगा कि सबसे पहले महान सर्वोच्च अल्लाह की उच्चता के अर्थ को समझा जाए। अतः हम ईमान (विश्वास) रखें कि अल्लाह सुब्हानहु व तआला अपनी ज़ात के साथ अर्श पर बुलन्द है, और उसे प्रबलता और प्रभुत्व की ऊंचाई प्राप्त है.
वह अपने बन्दों पर संपूर्ण अधिकार रखता है, वह जो चाहता है फैसला करता है, और वह जो चाहता है कर गुज़रता है। वही सभी मख़लूक़ात (प्राणियों) पर अधिकार रखता है, अतः कोई भी उसकी शक्ति एवं अधिकार से बाहर नहीं निकल सकता है।
और वह प्रतिष्ठा व सम्मान और वैभव के एतिबार से भी ऊंचा है, चुनाँचे आकाशों और धरती में उसी के लिए सर्वोच्च गुण है, और वही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है, वह बड़े सम्मान व प्रतिष्ठा वाला है, इस में उस की मख़लूक़ात में से कोई उस के समान नहीं है, तथा उस में किसी प्रकार का कोई ऐब (दोष) नहीं है।
फिर इस नाम की अपेक्षाओं के अनुसार उस की उपासना करे। इस प्रकार कि बन्दा अपने रब के सामने सिर झुकाये, अपनी निर्धनता, उसकी ओर अपनी अवश्यकता और उस के सामने अपनी कमज़ोरी का एहसासा करे। और यह कि वही हर तरह के सम्मान और प्रताप का ह़क़दार है, तथा पृथ्वी और आकाश की कोई भी बात उस से छिपी नहीं है।
इसलिए वह अपने रब की पूजा-वन्दना करने में तेज़ी दिखाए, और अपने दिन व रात के हर पल में उससे डरता रहे, अपनी कथनी और करनी में उसे अपना निरीक्षक समझे और उस के आदेश तथा निषेध का सम्मान करे। तथा लाभ के लिए “व लिल्लाहिल अस्माउल हुस्ना” (पृष्ठ संख्या : 259-262) नामक पुस्तक का अध्ययन करें। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
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