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जापान की औरतों का सांस्कृतिक लिबास किमोनो कहलाता है, भारत के बड़े हिस्से में औरतों का प्रचलित लिबास साड़ी है, लेकिन अमेरिका और यूरोप के सरकारी या गैर सरकारी संस्थानों में आपको कोई भी जापानी औरत किमोनो या भारतीय औरत साडी पहने हुए नहीं मिलेगी.
वो सभी यूरोपीय लिबास में ही मिलेंगी, यहाँ तक की एशिया-अफ्रीका तक के कार्यस्थलों पर भी वहां के लोकल पहनावे का ट्रेंड धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है और उन सबकी जगह भी पश्चिमी पहनावे ने लेना शुरू कर दिया है.
ये वेस्टर्न सिविलाइज़ेशन का कल्चरल वर्चस्व है, जिसमे सभी स्थानीय कल्चर अपनी पहचान खोते जा रहे हैं, समूचा विश्व, वेस्टरन कल्चर के एकतरफा रंग में रंगा जा रहा है.
ऐसे में सिर्फ कुछ मुस्लिम ख्वातीन हैं, जो पश्चिम के इस सांस्कृतिक वर्चस्व को चैलेंज कर रही हैं. अमेरिका के व्हाइट हाउस के कर्मी से लेकर MIT की प्रोफेसर तक में आपको किमोनो और साडी पहने तो कोई औरत नहीं मिलेगी, लेकिन हिजाब में कुछ मुस्लिम ख्वातीन ज़रूर मिल जाएँगी.
जब सारी दुनिया ने वेस्टर्न सिविलाइजेशन के सामने घुटने टेक दिए है, ऐसे में हिजाब पहनने वाली कुछ दीनदार मुस्लिम ख्वातीन ही हैं, जो अमेरिका और पश्चिमी सभ्यता के कल्चरल वर्चस्व को चुनौती दे रही है और पश्चिम को यही बात पसंद नहीं है की कोई उसे चुनौती दे.
पश्चिम का अहंकार उसे किसी दूसरी संस्कृति को अपने नाक के नीचे फलते-फूलते देखना गवारा नहीं करता, यही कारण है की पश्चिम ने अपने सारे प्रोपगेंडा मिशनरी को हिजाब का विरोध करने के काम पर लगा दिया है.
पश्चिमी सभ्यता के सारे ग़ुलाम अपने काम पर लगे हुए हैं , पश्चिमी सभ्यता के गुलामों ने अपनी गुलामी पर पर्दा डालने के लिए, अपनी शर्तों पर जीने वाली, हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं की पहचान पर टारगेट करना शुरू कर दिया है.
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