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नदीम अख़्तर ‘रिश्वत’ लेना जुर्म है , सब मानते हैं, और रिश्वत देना ? वो भी जुर्म है, और रिश्वत के लेन देन मे मध्यस्थता करना ? ज़ाहिर है वो भी जुर्म है , अब अगर कोई कहे कि रिश्वत लेने वालों का, रिश्वत देने वालों का और रिश्वत के लेन देन मे मध्यस्थता करने वालों का बायकाट करो तो यह बात कहने वाला इस वक़्त का समाज सुधारक कहलायेगा.
उसके नारे लगेंगे, गजरे डाले जायेंगे, और अगर उसके कहने से कुछ लोगों ने रिश्वत लेना देना छोड़ दिया तो कहने वाले की तस्वीरें किताबों मे छप जायेगी, लेकिन अगर कोई सूद (ब्याज) के लेने – देने और सूद के लेन देन मे मध्यस्थता करने को मना करता है तो वो इस दौर का सबसे बड़ा जाहिल, रूढ़िवादी और विकास विरोधी माना जा रहा है क्योंकि कहने वाला मुसलमान है.
ऊपर से मौलवी, मौलवी पर तो रूढ़िवादी, कटटर जैसे अलफ़ाज़ बहुत सूट करते हैं, और मौलवी को कटटर रूढ़िवादी कहकर ख़ुद को आधुनिक, शिक्षित, विकसित मान लेने की फ़ीलिंग भी अलग ही है। इसलिए सूद अच्छी चीज़ हो न हो पर मौलवी ने क्यों कहा ?
मौलवी की मुख़ालफ़त का आलम यह है कि अगर मौलवी नंगे रहने, ज़िना करने या शराब पीने को भी ग़लत बता दे तो कुछ लोग शराब पीकर, नंगे होकर सड़क पर ज़िना करेंगे।
अब बात करते हैं सूद की, सूद शोषण की एक वजह है, सूद की वजह से न जाने कितनों के मकान सूदख़ोर ने क़ब्ज़ा लिये, कितनों के खेत क़ब्ज़ा लिये, न जाने कितने ग़रीबों की लड़कियों, बीवियों के साथ ग़लत काम सूदख़ोरों ने किया, न जाने कितने ग़रीबों को ख़ुदकुशी करनी पड़ी।
सूद एक बड़ी बुराई है इसका ख़त्म होना ज़रूरी है, यह क़ायदा है कि जब किसी बुराई को ख़त्म किया जाता है तो उस बुराई के फलने फूलने, पनपने के रास्ते भी बंद किये जाते हैं, चूँकि मज़हब ए इस्लाम सूद को ख़त्म करना चाहता है इसलिए वो सूद को लेने, देने , सूद के लेन देन मे मध्यस्थता करना इन सबको नाजायज़ क़रार देता है.
और सूद के लेने, देने, लेनदेन की मध्यस्थता करने वालों का सोशल बायकाट करने की भी बात करता है, अब मज़हब ए इस्लाम के विद्वान मज़हब ए इस्लाम के अनुसार ही तो अपनी बात कहेंगे या पब्लिक का रूझान देखकर कहेंगे ? अब तुम्हें नही मानना है तो न मानो लेकिन बात तो तुम्हारी मर्ज़ी के मुताबिक़ नही कही जायेगी। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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