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अगर मैं मुसलमान न होता तो शायद चुन-चुन कर उन लोगों को मार देता जिन्होंनें मुझपर झूठे आरोप लगाकर मुझे फंसाया. चूंकि इस्लाम अमन पसंद मज़हब है इसलिए मैंने हथियार की जगह कलम उठाई. मैंने किताब लिखी. अपने साथ हुए जुल्म को लफ्जों के ज़रिये किताब में दर्ज किया. जेल में 9 साल तक रहा. शुरूआत में मेरी किताब के पन्ने फाड़ दिए जाते थे.
जला दिए जाते थे लेकिन आखिरकार मैं इसे लिखने में कामयाब हो गया. मुंबई ट्रेन ब्लास्ट (वर्ष-2006) में रिहा हुए आरोपी अब्दुल वाहिद शेख का कहना है यह. 29 सितंबर वर्ष 2006 को वाहिद को गिरफ्तार किया गया और 26 नवंबर 2015 को वह रिहा हुए. उन्हें ATS ने उठाया और फिर पुलिस कस्ट्डी में कभी न खत्म होने वाला अत्याचारों का सिलसिला शुरू हुआ.
पुलिस रिमांड में पहदले-दूसरे और तीसरे दर्जे के टॉरचर से आज तक वाहिद के पांव उबर नहीं सके. उनकी पांव की एड़ियों में दिक्कत आ चुकी है। सेब संबंधी ढेरों समस्याओं से जूझ रहे हैं. वह बताते हैं कि कैसे उनकी शर्मगाह में पेट्रोल डाला जाता था, नंगी तारों से करंट लगाया जाता है, फुल ऐसी चलाकर बिल्कुल नंगा खड़ा कर दिया जाता है.
कई दिनों के लिए आंखों पर पट्टी बांधकर एक अंधेरे कमरे में छोड़ दिया जाता है, पांव पर लाठियां मारी जातीं, हाथों पर पटा मारा जाता, फिर फौरन दो लोग ज़बरदस्ती सहारा देकर चलाते. उनका कहना है कि पुलिस का एक ही मकसद होता है कि किसी प्रकार आरोपी स्वीकारनामे पर हस्ताक्षर कर दे। इसके लिए आरोपी के परिवार को बुलाकर भी बेईज्जत किया जाता है.
जब टॉरचर में बारी परिवार की आती है तो इंसान हार मान लेता है. वो सोचता है कि बस परिवार को छोड़ दो, आप जो आरोप लगा रहे हैं सब अपराध मैंने किए हैं। रिश्तेदारों को डराया-धमकाया जाता है कि वे इनके खिलाफ गवाही दें.
वाहिद के जिस रिश्तेदार को इस गवाही पर राज़ी किया गया था कि ट्रेन ब्लास्ट के बाद कुछ पाकिस्तानी वाहिद के एक फ्लैट पर आकर रुके थे लेकिन वह रिश्तेदार पुलिस के सामने तो मान गया लेकिन अदालत में उसने वाहिद के खिलाफ इस तरह की झूठी गवाही नहीं दी.
इस दौरान वाहिद की पत्नी साजिदा ने घर संभाला. उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी की. अदालत में धक्के खाए, वकीलों के पास जाती रहीं। बच्च् संभाले। वाहिद बताते हैं कि इस 9 साल की तपस्या और मुझे छुड़वाने की भागदौड़ में आज वो बहुत बीमार हो चुकी है.
वाहिद जांच एसेंसियों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि वे हमारे घरों से बच्चों की उर्दू की किताबें उठाकर ले गए, आउटलुक और इंडिया टुडे जैसी मैग्ज़ीन उठाकर ले गए जिनपर ओसामा बिन लादेन की तस्वीरें छपी थीं.
बरहाल 9 साल बाद वाहीद जेल से छूटे और उन गवाहों से भी मिले और ATS के लोगों से भी मुलाकात कर पूछा कि उनके साथ ऐसा क्यों किया गया? इन सवालों का एक ही जवाब था कि ऊपर से आदेश था। वाहिद ने कहा कि जो मेरे साथ हुआ उसके नतीजे में तो मुझे बंदूक उठा लेने चाहिए लेकिन मैं मुसलमान हुआ मुझे इस्लाम अमन की तालीम देता है इसलिए मैंने क़लम उठाई और पूरी दास्तां लोगों के सामने रख दी।
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