जब आप सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम ने फरमाया, शैतानों को बशारत मत दो वरना वे उसी पर …
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अल्लाह हम से क्या चाहता है ? (1) इतने सारे उपकारों के बावजूद वह हम से क्या चाहता है? वह हम से रोज़ी और खाना नहीं चाहता, धन और पैसे नहीं चाहता। अल्लाह ने फरमाया|
لَا نَسْأَلُكَ رِزْقًا ۖ نَّحْنُ نَرْزُقُكَ ۗ وَالْعَاقِبَةُ لِلتَّقْوَىٰ سورة طه 132
हम तुमसे कोई रोज़ी नहीं माँगते। रोज़ी हम ही तुम्हें देते है, और अच्छा परिणाम तो धर्मपरायणता ही के लिए निश्चित है|
बस वह हमसे एक चीज की मांग करता है जिसका फायदा भी हमें ही मिलने वाला है, वह यह है कि हम इबादत केवल उसी की करें, अल्लाह ने फरमाया\
وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ ﴿٥٦﴾ مَا أُرِيدُ مِنْهُم مِّن رِّزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَن يُطْعِمُونِ ﴿٥٧﴾ إِنَّ اللَّـهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ
मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी करे (56) मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ (57) निश्चय ही अल्लाह ही है रोज़ी देनेवाला, शक्तिशाली, दृढ़ (सूरः ज़ारियात 56-58)
सही बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है, हज़रत मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि एक दिन मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे सवार था, आपने मुझ से कहा: हे मुआज़! मैंने कहा: हाज़िर हूं ऐ अल्लाह के रसूल, आप ने फरमाया: क्या तुमको पता है कि अल्लाह के बन्दों पर क्या अधिकार है?
और बन्दों के अल्लाह पर क्या अधिकार है? मैंने कहा: अल्लाह और उसके रसूल ही अधिक जानते हैं. तब आपने कहा:
فإنَّ حقَّ الله على العباد أن يعبدوه ولا يُشركوا به شيئًا، وحق العباد على الله ألا يعذب مَن لا يشرك به شيئًا
बन्दों पर अल्लाह का अधिकार यह है कि वे केवल उसी की उपासना करें और उसके साथ किसी अन्य को शरीक न करें, और बन्दों का अल्लाह पर अधिकार यह है कि जो अल्लाह के साथ किसी को साझी न ठहराए उसे यातना न दे|
यह सुन कर हज़रत मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: “ क्या लोगों को बशारत न दे दूँ?” आप सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “उन्हें बशारत मत दो वरना वे उसी पर भरोसा कर लेंगे”.(बुख़ारी 2856, मुस्लिम 30)