सफाई के दौरान मिले टीपू सुल्तान के रॉकेट, विशेषज्ञ बोले इनके सामने आज की तकनीक भी फेल

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कर्नाटक के शिमोगा जिले में एक कुएं की सफाई के दौरान 18वीं शताब्दी के 100 से अधिक रॉकेट के अवशेष मिले हैं कुएं से मिले इन रॉकेट के अवशेषों को महत्तवपूर्ण पुरातात्विक खोज माना जा रहा है इन रॉकेटों का प्रयोग 18वीं शताब्दी में मैसूर में शहजाद फतेह अली खान उर्फ टीपू सुल्तान द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ किया गया था|

इन रॉकेट के अवशेषों में से तीन रॉकेटों को बेंगलुरु के सरकारी संग्राहलय में रखा गया है और बाकी अवशेषों में से दो रॉकेटों को UK ब्लूविच के हथियार घर में रखवा दिया गया है साथ ही बाकी के अवशेषों को जनता से दूर रखकर उनपर रिसर्च की जाएगी|

बेंगलुरु मिमर की खबर के अनुसार जिस सरकारी संग्राहलय में दो रॉकेटों को रखा गया है उस संग्राहलय के असिस्टेंट डायरेक्टर शेजेशवाड़ा नायक ने जानकारी देते हुए कहा कि ‘करीब एक से दो महीने पहले जब इन रॉकेटों की खोज हुई थी तब वे किसी खोल की तरह लग रहे थे|

उन्होंने कहा कि इन सभी 100 रॉकेटों का प्रयोग लगभग 700 साल तक लड़ाइयों में किया गया है हैदर अली द्वारा लड़ी गई लड़ाइयों में इन लोहे के रॉकेटों का प्रयोग किया गया था जबकि उससे पहले जंग में सिर्फ लकड़ी और कागज आधारित रॉकेटों का इस्तेमाल किया जाता था|

उसके बाद टीपू सुल्तान द्वारा रॉकेट के सार्वधिक इस्तेमाल और उनमें परिवर्तन का दौर आता है मीडिया के अनुसार ये 100 रॉकेटों को मार्च या अप्रैल 2018 के दौरान पब्लिक एग्जिबिशन में रखा जाएगा इस देश में सबसे पहले टीपू सुल्तान ने ही रॉकेट लांचर का इस्तेमाल किया था टीपू ने अंग्रेजों से चार लड़ाईयां लड़ीं थी|

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