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कभी भारत माता की जय तो कभी वंदे मातरम् के नाम पर भारत के मुसलमानों को निशाना बनाया जाता है। खुद को राष्ट्रवादी घोषित करने वाले मुसलमानों से राष्ट्रभक्ति का सबूत मांगते हैं लेकिन वो भूल जाते हैं कि मुसलमान भारत की रूह हैं। उन्हें देशभक्ति साबित करने की कोई ज़रूरत नहीं है.
मुसलमानों को भारत माता की जय नहीं बोलने पर पाकिस्तान भेजने की धमकी दी जाती है लेकिन धमकी देने वालों ने इतिहास नहीं पढ़ा है या फिर उन्हें वही इतिहास पसंद है जो उनके मुताबिक हो। 1873 में अजीम उल्ला खान ने ‘मादरे वतन भारत की जय’ का नारा दिया था। जिसे आज तथाकथित राष्ट्रवादियों ने भारत माता की जय कर दिया और फिर इसे बोलने वाले को देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने लगे.
मादरे वतन भारत की जय बोलने से किसी भी हिंदुस्तानी मुस्लिम को परहेज़ नहीं होगा। ‘जय हिंद’ का नारा आबिद हसन सफ़ानी ने दिया। आज़ादी की लड़ाई से लेकर आज तक बोला जाने वाला ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ का नारा भी एक मुस्लिम का दिया हुआ है जिनका नाम हसरत मोहनानी है। अंग्रेज़ों से लोहा लेते वक्त उन्हें देश से भगाने के लिए गांधी ने भारत छोड़ो अभियान चलाया लेकिन ”भारत छोड़ो” का नारा यूसुफ मेहर अली ने दिया।
”साइमन गो बैक” का नारा भी यूसुफ मेहर अली ने दिया था। सन 1921 में बिस्मिल अज़ीमाबादी ने ”सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” का नारा देकर आज़ादी सिपाहियों में जोश भरा। बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर चढ़ा तराना-ए-हिंद ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’ चढ़ा होता है। इसे लिखने वाले भी मुसलमान थे जिनको सब अल्लामा इकबाल के नाम से जानते हैं।
और जब बात देश की आन-बान-शान और पहचान की आती है यानि की हमारे मुल्क़ का झंड़ा हाथों में तिरंगा लेकर आज कल जो तथाकथित राष्ट्रवादि देशभक्ति का पाठ पढ़ाते हैं उन्हें ये भी नहीं पता होगा कि तिरंगे को किसने डिज़ायन किया था। जी हां हमारी शान तिरंगे को भी एक मुसलमान सुरइय्या तय्यबजी ने डिज़ायन किया था।
इत्तिफाक से इनमे से कोई भी हिंदुत्व का प्रचारक नहीं था और ना ही कोई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ/ विश्व हिन्दू परिषद् / या भाजपा का सदस्य था।
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