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आईशा रदी अल्लाहु अन्हा से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम जब आँधी या तेज़ हवा देखते तो फरमाते “अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका मीन खैरिहा वा खैरी मा फीहा वा खैरी मा उरसिलत बीहि वा आऊज़ुबिका मीन शर्रीहा वा शर्री मा फीहा वा शर्री मा उरसिलत बीहि”
या अल्लाह मैं तुझसे इस के खैर (भलाई) का सवाल करता हूँ और उस खैर का जो इसमें है और उस खैर का भी सवाल करता हू जो इसके साथ भेजी गयी है, और या अल्लाह मैं तुझसे इसकी बुराई से पनाह चाहता हूँ , और उस बुराई से जो इसमें है और उस बुराई से भी जो उसके साथ भेजी गयी है. जामिया तिरमिज़ी , जिल्द 2, 1374-सही
अबू बक्र रदी अल्लाहू अन्हु ने रसूल-अल्लाह सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम से कहा की मुझे सुबह और शाम को कोई दुआ पढ़ने का हुक्म दे दीजिए तो आप सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया इस दुआ को तुम सुबह को शाम को और सोते वक़्त पढ़ लिया करो.
अल्लहुम्मा आलीमल-गैबी वा अश-शहादती फ़ातिर अस-सामावती वा अल-अर्द , रब्बा कुल्ली शैइन वा मालिकाहु, अश्-हदू अन ला ईलाहा इल्ला अन्ता , आवुजूबिका मीन शर्री नफसी वा मीन शर्री अश-शैतान वा शिरकीही.
तर्जुमा: एह अल्लाह एह गैब और खुली बातो को जानने वाले , आसमान और ज़मीन को पालने वाले , हर चीज़ के रब्ब और मालिक, मैं गवाही देता हूँ की तेरे सिवा कोई माबूद नही और मैं तुझसे अपने नफ्स की बुराई और शैतान की बुराई और उसके शिर्क से पनाह माँगता हूँ. जामिया तिरिमिज़ी , 1316 जिल्द 2-सही
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