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इस्लाम में फ़र्ज़ वो होता है जिसे करना ज़रूरी होता है उसे छोड़ नहीं सकते अगर छोड़ दिया जाये तो वह काम करने का कोई फायदा नहीं पहुँचता। जैसा की नमाज़ में सात फ़र्ज़ है अगर एक भी छूट गया तो नमाज़ नहीं होगी।
इस्लाम धर्म के पांच सतून होते हैं जिन्हें इस्लाम के पांच स्तंभ भी कहा जाता है। हर मुस्लिम को इन सिद्धांतों या स्तंभों के अनुसार अपना जीवन जीना होता है। मुस्लिम धर्म की नींव इन्हीं सिद्धान्तों पर ईमान लाकर यानि इनको मानकर ही पूरी होती है। यह पांच सिद्धांत निम्न हैं-
शहादात
यह इस्लाम धर्म का सबसे प्रमुख सिद्धान्त है। किसी भी मुसलमान को कलमा पढ़ना यानि शहादत देना बेहद जरूरी है।ला इलाहा इलल्लाह ,मोहम्मदुर रसूल्लुल्लाह ,सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इसका मतलब होता है की मै गवाही देता हूँ की नहीं कोई माबूद सिवाय अल्लाह के और मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के सच्चे रसूल और नबी हैं।
सलात
सलात यानि नमाज़ मुस्लिम जीवन का बेहद अहम हिस्सा है। एक मुसलमान व्यक्ति को दिन में पांच बार नमाज़ ज़रूर पढ़नी चाहिए।
ज़कात
ज़कात यानि दान देना। मान्यतानुसार हर मुसलमान को अपनी वार्षिक कमाई का 2.5% गरीबों और जरूरतमंदों को दान में देना जरूरी समझा गया है।
रमज़ान
इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से नौवां महीना रमज़ान का होता है। रमज़ान के पूरे महीने में मुसलमान रोज़ा यानि व्रत रखते हैं।
हज
हज इस्लाम का पांचवां और आखिरी स्तंभ है। इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने में हज यात्रा शुरू होती है। मान्यतानुसार हर मुसलमान को जिंदगी में एक बार हज जरूर करना चाहिए।अगर खुदा ने आपको इतना दिया की आप ज़रूरी काम करने के बाद हज का खर्च उठा सकते हो तो आपको हज ज़रूर करना चाहिए।
इस्लाम के यह पांच सिद्धान्त हर मुसलमान का फर्ज माना जाता है। इनको पूरा ना करना एक गुनाह के समान माना जाता है। इस्लाम के इन पांच सिद्धान्तों को मानकर कोई भी शख्स मुस्लिम समूह में शामिल हो सकता है लेकिन इसी के साथ उसको और भी कई कर्तव्य पूरे करने होते हैं।
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