क्या किसी “गैरमज़हब” के इंसान की मौत पर संवेदना प्रकट करना इस्लाम में मना है ?

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गैरधर्म के मृतक को संवेदना :- क्या कहता है इस्लाम ? मुसलमानों कि कट्टरता किसी और धर्म के लोगों की कट्टरता से अधिक विभत्स और घटियापन लिए होती है तो इसका कारण केवल और केवल यह है कि जिस इस्लाम के नाम पर यह ऊलजुलूल गैरइस्लामिक कट्टरता फैलाते हैं उस इस्लाम की इनको खुद समझ नहीं।

इस्लाम में “कुरान” है जिसे समझ कर उस पर अमल करने के लिए कहा गया है , फिर भी समझने में कुछ कमी रह जाए तो हूज़ूर सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम हज़रत मुहम्मद की ज़िन्दगी की तमाम हदीसें मौजूद हैं , उससे समझ को मुकम्मल किया जा सकता है।

पर बहुत कम मुसलमान ऐसा करते हैं।

सवाल यह है कि क्या किसी “गैरमज़हब” के इंसान की मौत पर संवेदना प्रकट करना इस्लाम में मना है ?

सवाल इसलिए कि कुछ कट्टरपंथी श्रीदेवी की मौत पर की गयी संवेदना पर सवाल उठा रहे हैं।

इसे हदीस की रोशनी में समझिए कि इस्लामिक दृष्टि से सही और गलत क्या है।

“इस्लाम” किसी की भी मौत पर ना खुशी मनाने की इजाज़त देता है ना मातम….

इस्लाम के शुरुआती दिनों से लेकर आज तक मुसलमानों का टकराव सबसे अधिक यहूदियों से हुआ है।

पर हम मुसलमान जिसकी पैरवी करते हैं , हूज़ूर सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम हज़रत मुहम्मद एक “यहूदी” की मौत पर भी बेहद गमगीन हो गये थे और रो पड़े थे।

सहाबा ने पूछा के हुज़ूर आप क्यों रहे हो ये तो यहूदी तो मर गया जहन्नम रशीद हो गया।

तब हुज़ूर ने फ़र्माया

“ये यहूदी बाद में था मगर पहले ये मेरा उम्मती थी। मुझे भेजा इसलिए गया है ताके में लोगों को एक अल्लाह की तरफ बुलाने की दावत दूं।”

यह हदीस यदि किसी ने नहीं पढ़ी तो वह जाहिल ही कहलाएगा।

एक और हदीस है कि

आप तो उस मुनाफ़िक़ के जनाज़े की नमाज़ पढाने खड़े हो गए थे जिसने आप को “बरछा” मारा था। आप पर उसी वक्त वही भी नाज़िल हुई थी कि ऐ नबी आप इस के जनाजे की नमाज़ सत्तर बार पढ़ाओगे तब भी हम इसकी मगफिरत नहीं करने वाले।

तब सरकारे दो आलम सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़र्माया

“अगर खुदा मुझे ये कहते कि इस मुनाफ़िक़ “बदबख्त” की सत्तर बार जनाजे की नमाज़ पढ़ाओ तब मैं इसकी मगफिरत कर दूंगा। तो कसम उस ज़ात की जिसके कब्जे में मेरी जान है। मैं इस “बदबख्त” की सत्तर बार जनाजे की नमाज़ पढ़ाता…”

यह इस्लाम का अखलाक है। इस्लाम हमें ये नही बताता है कि किसी की मौत पर हम डिफेंस करें।

कुछ पढ़ लो क्युंकि इस्लाम को आप जैसे कुछ लोगों ने ही बदनाम कर रखा है जाहिलों।

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