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अब्दुल्लाह बिन उमर रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की एक साहिब की मदीना में मौत हुई और उकी पैदाईश भी मदीना में हुई थी, फिर आप सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम ने उनका जनाज़ा पढ़ने के बाद फरमाया.
काश वो अपने पैदा होने की जगह पर ना मर कर किसी और मुल्क या शहर में मरता , एक शख्स ने अर्ज़ किया क्यूँ या रसूल-अल्लाह सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम ? आप सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया.
जब कोई (मुस्लिम) शख्स अपने पैदाईश के मुक़ाम पर ना मर कर किसी और जगह मर जाए तो उसको अपने पैदाईश के मुक़ाम से लेकर मौत के मुक़ाम तक के फ़ासले की जगह जन्नत में दी जाएगी. सुनन इब्न माज़ा, जिल्द 1, 1614-हसन सही इब्न हिब्बान , 3010
مدینہ ہی میں پیدا ہونے والے ایک شخص کا مدینہ میں انتقال ہو گیا، تو نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے اس کی نماز جنازہ پڑھائی اور فرمایا: کاش کہ اپنی جائے پیدائش کے علاوہ سر زمین میں انتقال کیا ہوتا ایک شخص نے پوچھا: کیوں اے اللہ کے رسول؟ تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جب آدمی کا انتقال اپنی جائے پیدائش کے علاوہ مقام میں ہوتا ہے، تو اس کی پیدائش کے مقام سے لے کر موت کے مقام تک جنت میں اس کو جگہ دی جاتی ہے سنن ابن ماجہ جلد ۱ ۱۶۱۴ حسن
एह हमारे रब्ब हमको ज़ालिम लोगों के हाथ से आज़माईश में ना डाल और अपनी रहमत से कुफ़्फ़ार की क़ौम से निजात अता फरमा.
اے ہمارے رب ہم کو ظالم لوگوں کے ہاتھ سے آزمائش میں نہ ڈال اور اپنی رحمت سے قوم کفار سے نجات عطا فرما
سورة يونس آیت ٨٥-٨٦
अबू बक्र सिद्दीक़ रदी अल्लाहू अन्हु ने रसूल अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम से कहा की मुझे ऐसी दुआ सीखा दीजिए जो मैं नमाज़ में पढ़ा करू तो आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया ये पढ़ा करो
اللَّهُمَّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي ظُلْمًا كَثِيرًا، وَلاَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلاَّ أَنْتَ،فَاغْفِرْ لِي مَغْفِرَةً مِنْ عِنْدِكَ، وَارْحَمْنِي، إِنَّكَ أَنْتَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
अल्लाहुम्मा इन्नी ज़लमतु नफसी ज़ुलमन कसिरन वा ला याग्फिरुज़-ज़ुनुबा इल्ला अन्ता, फ़गफिरली मगफीरतन मीन इन्दिका वा-अरहमनि, इन्नका अन्तल-गफूर अर-रहीम
एह अल्लाह मैने अपनी जान पर बहुत ज़ुल्म किया है और गुनाओं को तेरे सिवा कोई माफ़ नही कर सकता, मेरी मगफिरत फरमा , ऐसी मगफीरत जो तेरे पास से हो और मुझ पर रहम कर बेशक तू बड़ा मगफिरत करने वाला और रहम करने वाला है. सही बुखारी, जिल्द 7, 6326
अब्दुल्लाह बिन मसूद रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह ﷺ ने फरमाया एक अल्लाह के एक बंदे के बारे में हुक्म दिया गया के उसको क़ब्र में में सौ (100) कोडे मारे जाएँ.
वो(इस अज़ाब को कम करने की) इलतेजा और दुआएँ करता रहा यहा तक की एक कोड़ा रह गया. जब ये कोड़ा उसको लगाया गया तो उसकी क़ब्र आग से भर गयी, जब उस सज़ा का असर ख़तम हो गया और उसको होश आ गया तो उसने फरिश्तो से पूछा तुम ने किस वजह से मुझे कोड़ा मारा है?
फरिश्तों ने कहा तुम ने एक नमाज़ बिना पाकी ( यानि नापाकी की हालत में ) के पढ़ी थी, और दूसरा ये की तू एक मज़लूम के पास से गुज़रा था लेकिन तूने उसकी मदद नही की थी. अल-सिलसिला-अस-सहिहा हदीस # 554
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