-
5.8KShares
और इस बात में कोई दो राय नहीं की हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के लिए योग्य है।
पहलाः काबा की ओर मुँह करना|
1- ऐ मुसलमान भाई, जब आप नमाज़ के लिए खड़े हों, तो आप चाहे जहाँ भी हों, फर्ज़ एवं नफ़्ल दोनों नमाजों में अपना चेहरा काबा (मक्का मुकर्रमा) की तरफ कर लें, क्योंकि यह नमाज़ के अरकान में से एक रुक्न है, जिस के बिना नमाज़ शुद्ध (सही) नहीं होती हैं।
2- सलातुल खौफ (डर की नमाज़) और घमासान की लड़ाई में जंगजू से काबा की ओर चेहरा करने का हुक्म समाप्त हो जाता है।
तथा उस आदमी से भी काबा की ओर चेहरा करने का हुक्म समाप्त हो जाता है जो काबा की ओर अपना चेहरा करने में असक्षम हो जैसे बीमार आदमी, या जो व्यक्ति नाव (कश्ती) में, या मोटर गाड़ी, या हवाई जहाज़ पर सवार हो जबकि उसे नमाज़ के समय के निकल जाने का खौफ हो।
इसी प्रकार उस आदमी से भी यह हुक्म समाप्त हो जाता है जो किसी चौपाये या अन्य वाहन पर सवारी की हालत में नफ्ल या वित्र नमाज़ पढ़ रहा हो, जबकि ऐसे आदमी के लिए मुसतहब (बेहतर) यह है कि यदि संभव हो तो तकबीरतुल एहराम कहते समय अपना चेहरा क़िब्ला (काबा) की ओर करे, फिर उस सवारी के साथ मुड़ता रहे चाहे जिधर भी उस का रुख हो जाये।
2- काबा को अपनी नज़र से देखने वाले हर व्यक्ति के लिए ज़रूरी है कि वह स्वयं काब़ा की ओर अपना मुँह कर के खड़ा हो, किन्तु जो आदमी काब़ा को अपनी नज़र से नहीं देख रहा है वह मात्र काब़ा की दिशा की ओर मुंह कर के खड़ा होगा।
गलती से काबा के अलावा किसी और तरफ नमाज़ पढ़ने का हुक्मः
4- अगर कोई आदमी काफी प्रयास और तलाश के बाद बदली या किसी अन्य कारण काबा के अलावा किसी और तरफ मुँह कर के नमाज़ पढ़ ले तो उसकी नमाज़ सही (मान्य) है, और उसे नमाज़ लौटानी नहीं पड़ेगी।
5- और अगर कोई आदमी काबा के अलावा किसी अन्य दिशा की तरफ नमाज़ पढ़ रहा है, और उसी हालत में कोई भरोसेमंद आदमी आ कर उसे किब्ला के दिशा की सूचना दे, तो उसे जल्दी से काब़ा की दिशा में मुड़ जाना चाहिये, और उसकी नमाज़ सही (शुद्ध) है।
दूसराः क़ियाम (खड़ा होना)
6- नमाज़ी के लिए खड़े हो कर नमाज़ पढ़ना ज़रुरी है, और यह नमाज़ का एक रुक्न है, मगर कुछ लोगों पर इस हुक्म का पालन करना अनिवार्य नहीं है, और वे कुछ इस प्रकार हैं:
खौफ (भय और डर) की नमाज़ तथा घमासान जंग के समय नमाज़ पढ़ने वाला आदमी, चुनांचि उस के लिये सवारी पर बैठे बैठे नमाज़ पढ़ना जाइज़ है।
ऐसा बीमार व्यक्ति जो खड़े हो कर नमाज़ पढ़ने से असमर्थ हो, चुनांचि ऐसा आदमी अगर बैठ कर नमाज़ पढ़ सकता है तो बैठ कर नमाज़ पढ़े, नहीं तो पहलू के बल हो कर नमाज़ पढ़े।
तथा नफ्ल नमाज़ पढ़ने वाला आदमी, चुनांचि उस के लिए बैठ कर, या सवारी पर सवार होने की हालत में नमाज़ पढ़ने की रुख्सत (छूट) है, और वह रुकू और सज्दा अपने सिर के इशारे से करेगा, तथा बीमार आदमी भी इसी प्रकार अपनी नमाज़ को अदा करेगा, मगर अपने सज्दा में अपने (सिर को) रुकू से कुछ अधिक झुकाएगा।
7- बैठ कर नमाज़ पढ़ने वाले नमाजी के लिए जाइज़ नहीं है कि वह ज़मीन पर कोई ऊँची चीज़ रख कर उस पर सज्दा करे, बल्कि अगर वह अपने माथे को सीधे ज़मीन पर रखने में सक्षम नहीं है तो वह अपने सज्दा को अपने रुक़ू से अधिक नीचे करेगा, जैसा कि हम अभी इस का उल्लेख कर चुके हैं।
कश्ती (नाव) और हवाई जहाज़ में नमाज़ पढ़ने का बयानः
8- नाव (या पानी के जहाज़) और हवाई जहाज़ में फर्ज़ नमाज़ पढ़ना जाइज़ है।
9- तथा उन दोनों में सवार आदमी को अगर गिरने का डर हो, तो उस के लिए बैठ कर नमाज़ पढ़ना जाइज़ है।
10- इसी प्रकार बुढ़ापे या शरीर की कमज़ोरी की बिना पर अपने क़ियाम (खड़े होने) की हालत में किसी खम्भा या लाठी का सहारा लेना जाइज़ है।
नमाज़ का कुछ भाग खड़े हो कर पढ़ना और कुछ बैठ करः
11- रात की नमाज़ (तहज्जुद की नमाज़) को बिना किसी कारण के खड़े हो कर या बैठ कर पढ़ना जाइज़ है, तथा उन दोनों को एकत्रित करना भी जाइज है, चुनाँचि बैठ कर नमाज़ पढ़ने की शुरूआत करे और क़िराअत करे, और रुकू करने से थोड़ी देर पहले खड़ा हो जाए, और जो आयतें बाकी रह गई हैं उन्हें खड़े हो कर पढ़े, फिर रुकू और सजदह करे, फिर इसी प्रकार दूसरी रक़अत में भी करे।
12- और जब वह बैठ कर नमाज पढ़े तो चार ज़ानू हो कर (आल्ती पाल्ती मार कर) बैठे, या कोई अन्य बैठक (आसन) जिस में उसे आराम मिलता हो।
जूता पहन कर नमाज़ पढ़नाः
13- जिस प्रकार आदमी के लिए नंगे पैर नमाज़ पढ़ना जाइज़ है, उसी तरह उस के लिए जूता पहन कर भी नमाज़ पढ़ना जाइज़ है।
14- लेकिन अफज़ल (बेहतर) यह है कि कभी नंगे पैर नमाज़ पढ़े और कभी जूता पहन कर, जैसा कि उस के लिए आसान हो। अतः नमाज़ पढ़ने के लिए उन दोनों को पहनने का कष्ट न करे और न ही (यदि उन्हें पहने हुए है तो) उन दोनों को निकालने का कष्ट करे, बल्कि अगर नंगे पैर है तो नंगे पैर ही नमाज़ पढ़ ले, और अगर जूता पहने हुए है तो जूता पहने हुए नमाज़ पढ़े, सिवाय इस के कि कोई मामला पेश आ जाये।
15- और जब उन दोनों (जूतों) को निकाले तो उनको अपने दाहिने तरफ न रखे, बल्कि उसे अपने बायीं तरफ रखे जबकि उस के बायें तरफ कोई आदमी नमाज़ न पढ़ रहा हो, नहीं तो उन दोनों को अपने दोनों पैरों को बीच में रखे, (मैं कहता हूँ किः इस में हल्का सा इशारा है की आदमी जूतों को अपने सामने नहीं रखेगा, और यह एक शिष्टाचार है जिस की नमाजियों की बहुमत उपेक्षा करती है, अतः आप उन्हें अपने जूतों की ओर नमाज पढ़ते हुए देखेंगे), अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस का आदेश साबित है।
मिम्बर पर नमाज़ पढ़नाः
16- लोगों को सिखाने के लिए इमाम का किसी ऊंची जगह जैसे कि मिम्बर पर नमाज़ पढ़ना जाइज़ है, अतः वह उस पर खड़े हो कर तकबीर कहे, क़िराअत करे और रुकू करे, फिर उलटे पैर मिम्बर से नीचे उतरे यहाँ तक कि मिम्बर के किनारे जमीन पर सजदह करे, फिर मिम्बर पर वापस लौट जाये और दूसरी रकअत में भी वैसा ही करे जैसा कि पहली रकअत में किया था।
नमाज़ी का अपने सामने सुत्रा रख कर और उस के क़रीब हो कर नमाज पढ़ना वाजिब हैः
17- नमाज़ी का अपने सामने सुत्रा रख कर नमाज़ पढ़ना वाजिब है, और इस बारे में मस्जिद और मस्जिद के अलावा के बीच, तथा छोटी और बड़ी मस्जिद के बीच कोई अंतर नहीं है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह कथन सामान्य हैः “तुम बिना सुत्रा के नमाज़ न पढ़ो, और तुम किसी आदमी को अपने सामने से हरगिज़ गुज़रने न दो, अगर वह नहीं मानता है तो उस से झगड़ा करो, क्योंकि उस के साथ एक मित्र (अर्थात शैतान) होता है।”
18- तथा उस से क़रीब रहना ज़रूरी है ; क्योंकि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस बात का ह़ुक्म दिया है।
19- तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सजदह करने की जगह और उस दीवार के बीच जिस की तरफ आप नमाज पढ़ते थे तक़रीबन एक बकरी के गुज़रने के बराबर फासिला होता था, इसलिए जिस ने ऐसा किया उस ने जितना निकट रहना वाजिब है उस को अंजाम दे दिया।
( मैं कहता हूँ किः इस से हमें पता चलता है कि लोग जो चीज़ उन सभी मस्जिदों में करते हैं जिन्हें मैं ने सीरिया वगैरह में देखा है कि वे लोग मस्जिद के बीच में दीवार या खम्भे से दूर हो कर नमाज पढ़ते हैं, यह कार्रवाई (कृत्य) अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हुक्म और आप के कर्म (अमल) से ग़फ़लत और लापरवाही का नतीजा है)
सुत्रा की ऊंचाई की मात्राः
20- सुत्रा का ज़मीन से लगभग एक बित्ता (9 इंच) या दो बित्ता ऊंचा रखना वाजिब है। क्योंकि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है किः “जब तुम में से कोई आदमी अपने सामने कजावे के अंतिम भाग की लकड़ी की तरह (कोई चीज़) रख ले तो उसे चाहिए कि वह नमाज़ पढ़े, और उस काजावे के बाद से गुज़रने वाले की वह कोई परवाह न करे।
( कजावे के अंत में जो खम्भा होता है उसे अरबी भाषा में “अल-मुअख्खरह” कहते हैं, और ऊँट के लिए कजावा ऐसे ही होता है जिस प्रकार कि घोड़े के लिए काठी होती है। तथा हदीस से इंगित होता है की धरती पर लकीर खींचना (सुत्रा के लिए) पर्याप्त नहीं है, और इस बारे में जो हदीस वर्णित है वह ज़ईफ (कमज़ोर) है )।
21- और नमाज़ी सीधे सुत्रा की ओर चेहरा करेगा, क्योंकि सुत्रे की ओर नमाज़ पढ़ने के हुक्म से यही अर्थ ज़ाहिर होता है, और जहाँ तक उस से दायें या बायें तरफ हट कर इस तरह खड़े होने का संबंध है कि ठीक उसी की ओर मुँह न हो, तो यह साबित (प्रमाणित) नहीं है।
Comments
comments