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सुन्नत की पैरवी: दीन ए इस्लाम मे रसूलुल्लाह सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इताअत (आज्ञापालन) इसी तरह फ़र्ज़ हैं जिस तरह अल्लाह की इताअत (आज्ञापालन) फ़र्ज़ हैं|
अल्लाह ने क़ुरआन मे इरशाद फ़रमाया:
“जिसने रसूल की इताअत की उसने अल्लाह की इताअत की|” (सूरह निसा 4/80) “ऐ लोगो! जो ईमान लाये हो अल्लाह और रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इताअत करो और अमाल(कर्म) बर्बाद न करो|” (सूरह मुहम्मद 47/33)
“मुहम्मद सल्लललाहो अलेहे वसल्लम अपनी मर्ज़ी से कोई बात नही कहते वो जो कुछ भी कहते हैं उन पर वहयी की जाती हैं|” (सूरह नजम 53/3)
लिहाज़ा नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने इस उम्मत को जो भी कुछ बताया वो अपनी मर्ज़ी से नही बताया बल्कि वो हुक्मे इलाही बताया चाहे वो वुज़ु का तरीका हो या नमाज़ का, चाहे वो तरीका निकाह का हो या तलाक का|
तमाम बात जो भी आपने अपनी जुबान मुबारक से कही वो सिर्फ़ अल्लाह के हुक्म से कही और ये तमाम बाते अल्लाह ने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को वह्यी (जिब्रील अलै0) के ज़रिये बताई|
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की ज़िन्दगी मे ऐसी बहुत सी बाते मिलती हैं के जब तक अल्लाह की तरफ़ से वहयी ना आ जाती तब तक आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम सहाबा रज़ि0 के सवालात का जवाब न देते थे|
हज़रत उवैस बिन सामित रज़ि0 अपनी बीवी हज़रत खौला रज़ि0 से जिहार (बीवी को अपने लिये हराम कर लेना) कर बैठे, तो हज़रत खौला रज़ि0 नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की खिदमत मे हाज़िर हुई| मसला ब्यान किया तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने उस वक्त तक कोई जवाब न दिया जब तक वहयी न नाज़िल हो गयी|
इसी तरह जब आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से रूह के बारे मे सवाल किया तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम उस वक्त तक खामोश रहे जबतक वह्यी न नाज़िल हुई|
इसी तरह से और बहुत से वाकयात हैं के जब जब सहाबा को कोई मसला पूछना होता और नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम कोई जवाब न होता तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम तब तक जवाब न देते जब तक अल्लाह वहयी नाज़िल न कर देता|
क़ुरआन और सुन्नत-अकीदे और अमल की मुहाफ़िज़:
अकाइद और आमाल मे तमामतर बिगाड़ क़ुरआन और सुन्नत की हुक्मऊदूली करने से होते हैं| अमूमन गैर इसलामी अकायद उन इलाको मे होते हैं जहा क़ुरआन और सुन्नत की तालिम आम नही होती| इसके उल्टे क़ुरआन और हदीस को थामे रखना तमाम झूठे अकाइद और अमाल से महफ़ूज़ रहने का एक वाहिद तरीका हैं|
218 हिजरी मे मामून रशीद की हुक्मरानी के दौरान एक गलत अकीदा के क़ुरआन अल्लाह की मखलूक हैं| मामून रशीद ने तमाम उल्मा से मनवाने की कोशीश की तो इमाम अहमद बिन हंबल रह0 उस झूठे अकीदे क सामने पहाड़ बन कर खड़े हो गये| जेल के ताज़ादम जल्लाद दो कोड़े मार कर पीछे हट जाते और इमाम अहमद बिन हंबल से पूछा जाता क़ुरआन मख्लूक हैं या गैर मख्लूक?
हर बार इमाम अहमद बिन हंबल की ज़ुबान से एक ही जवाब निकलता – मुझे क़ुरआन और सुन्नत रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से कोई दलील ला दो तो मान लूगां| ज़रूरत और हिकमत का कोई मशवरा इमाम अहमद बिन हंबल को नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के फ़रमान पर अमल करने से ना रोक सका| जिसका नतीजा आज हमारे सामने हैं के ये उम्मत आज इस फ़ितने से महफ़ूज़ हैं|
गौर करे के अगर इमाम अहमद बिन हंबल ने उस वक्त ये बात तसलीम कर ली होती तो उनके मानने वाले आज क़ुरआन को अल्लाह का मख्लूक ही तसलीम करते न के अल्लाह का कलाम| लेकिन ऐसा न हुआ और इमाम अहमद बिन हंबल नबी का इस फ़रमान – “मैं तुम्हारे बीच ऐसी चीज़ छोड़े जा रहा हूं जिसे मज़बूती से थामे रखोगे तो कभी गुमराह न होगे| अल्लाह की किताब और उसके नबी कि सुन्नत” पर साबित कदम जमे रहे|’
क़ुरआन और सुन्नत उम्मते मुस्लिमा की इत्तेहाद की बुनियाद हैं:
उम्मते मुस्लिमा मे इत्तेहाद की ज़रूरत किसी वज़ाहत की मोहताज नही| साम्प्रादायिकता और गिरोह्बन्दी ने दीन व दुनिया दोनो हिसाब स हमे बड़े भारी नुकसान पहुंचाया हैं| जिसे हम खुद इस मुल्क मे काफ़ी लम्बे वकफ़े से देख रहे हैं और इस हकीकत से आगाह हैं हमारे दीन की तरक्की मे हमारी ये नाइत्तेफ़ाकी एक बड़ी रुकावट हैं|
अगर हम अपने मआशरे मे इस्लामी कानून नाफ़िस करने का ख्याल भी करते हैं तो सबसे पहली बात जो वो ये के हुक्मरान किस जमात का होगा और कानून कौन सा होगा फ़िकह का या क़ुरआन और हदीस का और अकसर तो क़ुरआन और सुन्नत की तालीम से भी वाबस्ता नही बल्कि अंधी अकिदतमंदी और शख्सियत परस्ती के कायल हैं जबकी अल्लाह का फ़रमान हैं:
“और सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और आपस म तफ़र्के मे न पड़ो|” (सूरह अल इमरान 3/103)
बावजूद आज इसके इस उम्मत मे तफ़रका हैं लिहाज़ा हुक्म ए इलाही यानि इस्लामी कानून नाफ़िस करने की तमामतर कोशिशे बेकार हैं क्योकि हम फ़िर्को मे बंटे हैं जबकि अल्लाह खालिस क़ुरआन और हदीस पर जमा होने का हुक्म दे रहा हैं जैसा ऊपर क़ुरआन की आयत गुज़री|
इस आयत मे अल्लाह ने गिरोहबन्दी से मना कर खालिस अल्लाह की बात यानि क़ुरआन और सुन्नत को थामने का हुक्म दिया| इसके अलावा जब तक उम्मत क़ुरआनऔर सुन्नत पर 100% इत्तेफ़ाक नही करेगी तब तक इस उम्मत मे इत्तेहाद नही पैदा हो सकता|
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