औरंगाबाद इज्तिमा की तैयारियां शुरू, करोड़ो लोग करेंगे शिरक़त- 5 किलोमीटर होगी सफों की लम्बाई

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बहुप्रतीक्षित औरंगाबाद का तबलीगी इज्तेमा की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं, ये देश ही नहीं दुनिया का भी अबतक का सबसे बड़ा इज्तिमा माना जा रहा है, दूर दूर की जमातों समेत विदेशों की जमाते भी इज्तिमा की तैयारी में जुटी पड़ीं हैं|

लोग अपने जोश और जज्बे से इज्तिमा की तैयारियों में जुटे पड़े हैं, इस इज्तिमा मे करोडो लोगों के आने की उम्मीद लगाई जा रही है कई किलोमीटर लम्बा पंडाल है, जमातो का जमवाड़ा लग रहा है, देश के कौने कौने का आदमी नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग इज्तिमा में आ रहें हैं और इज्तिमा की तैयारियों में हाथ बटा रहें हैं|

तबलीगी जमात जिसके बारे में कहा जाता है की ये इस्लामी ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है जिसके 25 लाख कार्यकर्ता 24 घंटे अल्लाह की राह में अपना बिस्तर उठाये एक बस्ती से दूसरी बस्ती हूमते रहते हैं. और एक इश्वर की दावत के साथ साथ इस्लाम के सिद्धांतों से अनजान और बेखबर लोगो को इस्लाम की सही शिक्षा का नमोना पेश करते हैं|

दुनिया भर में तबलीगी जमात को फोलो करने वालो की अच्छी खासी तादाद है, सांख्यिक ऐतबार से ये तादाद  पचास करोड़ से भी ज्यादा है, जिसपर तबलीग के आला ओहदेदार अपने रब का शुक्र अदा करते है और उम्मत (मुहम्मद सल्ल. के बाद के लोग) की इस्लाह के लिए रोते रहते है और दुआएं करते हैं.

  • दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है तबलीग जमात जिसके 25 लाख कार्यकर्ता हर समय बिस्तर लेकर रहते हैं अल्लाह की राह में
  • 24 फरवरी 2018 को शुरू होगा एतिहासिक इज्तेमा
  • 26 फरवरी को दुआ के साथ समाप्त होगा
  • नमाज़ की सफ की लम्बाई 3 किलोमीटर, जो 5 किलोमीटर तक बिछाई गयीं हैं
  • एक करोड़ लोगो के रुकने की व्यवस्था
  • साशन प्रशाशन का भरपूर सहयोग

24 फरवरी से शुरू होकर ये इज्तिमा औरंगाबाद में तीन दिन तक चलेगा जिसमे तबलीग जमात के दूर दराज से आये आलिम और मुफस्सिरीन हजरात अपनी तकरीरो से लोगो को दो चार करेंगे, 26 तारिख को आखिरी दुआ की जाएगी जिसमे करोडो लोग शामिल होने की उम्मीद है|

तैयारिया देखकर और लोगो का अकर्षण को देखकर तो यही लगता है की ये तादाद एक करोड़ से ऊपर पहुँच जाएगी, लोग जोश और जज़्बे के साथ तैयारियों में मशगूल हैं, इज्तिमा की तैयारियों का काम हलका (इलाका) के आधार पर बाँटा गया है, सभी टीमें अपने  अपने काम को जिम्मेदारी के साथ अंजाम दे रही हैं|

अम्र बिल मारुफ़ और नही अनिल मुनकर की देते हैं दावत- जानिए
हमने कहा इस्लाम ने हर एक मारूफ़ और हर एक मुनकर की वज़ाहत की है और मुस्लिम पर लाज़िमी है कि वो हर मारूफ़ जो उसके ज़िम्मे हैं उन्हें अंजाम दे और हर मुनकर से इज्तिनाब करे। यहां एक सवाल पैदा होता है कि; क्या वो हर उस मारूफ़ का हुक्म देता है.

जिन मारूफ़ात पर वो ख़ुद अमल करता है या वो इन मारूफ़ात में से अधिकतर का हुक्म देता है या उन मारूफ़ात में से कुछ क़दरे कम का हुक्म देता है? इसी तरह ये सवाल कि क्या वो हर एक मुनकर को रोकता है जिससे वो ख़ुद इज्तिनाब करता है, या वह उनकी अक्सरीयत से रोकता है या जिनसे वो ख़ुद गुरेज़ करता है इनमें से कुछ कम को रोकता है ?

इससे पहले कि हम इस विषय को संबोधित करें हमें ये समझ लेना होगा कि इस विषय की मुनासबत से शरीयत का हम से क्या मुतालिबा है और वो हक़ीक़ते-हाल में किस हद तक अंजाम दिया जाता है। शरीयत का मुतालिबा ये है कि इस्लामी समाज इस तर्ज़ पर स्थापित हो कि इसमें राइज कोई एक तसव्वुर भी शरअ में उल्लेखित नज़रियात के विरोध में ना हो और ना ही इस समाज में कोई ऐसा ही अमल अंजाम पाए जो शरअ में ना-मंज़ूर हो।

और शरअ में बयान किए हर एक हराम मुनकर को समाज में रोका जाता हो और उसकी सज़ा दी जाती हो। दूसरे शब्दो में अल्लाह (سبحانه وتعالى) का हर एक फ़रमान जो अहकाम हो या अक़ीदा हो समाज में उस पर पाबंदी होती हो और बरक़रार हो।

हर एक मुनकर जो घटित (happened) हुआ हो या उसके होने का अन्देशा हो तो उसका तआक़ुब (pursued/पीछा) करके ख़त्म किया जाता हो अल्लाह (سبحانه وتعالى) ने मुसलमानों पर इस ज़िम्मेदारी को अंजाम देने के हुक्म नाज़िल किए हैं और अल्लाह ने इस फे़अल कवाअली वाज़ीम तरीन अमल क़रार दिया है और इसमें बेहद अज्रे अज़ीम रखा है

इमाम ग़ज़ाली (رحمةاللہ) अपनी किताब अहया-उल-उलूमूद्दीन में फ़रमाते हैं :
अम्मा बाद; बेशक दीन में सबसे आला और अज़ीम स्तंभ अम्र बिल मारुफ़ और नही अनिल मुनकर है । यही मिशन है जिसके साथ अल्लाह (سبحانه وتعالى) ने तमाम अंबिया-ए-किराम को भेजा था अगर उसका वजूद ख़त्म हो जाए और उससे संबधित इल्म और पाबंदी को नज़रअंदाज़ किया गया हो तो नबुव्वत से जारी ये सिलसिला मुअत्तल हो जाएगा.

दीन नापैद हो जाएगा और ऐसा अर्सा कि जिसमें दीन ग़ैर मौजूद हो ग़ालिब रहेगा, गुमराही और जहालत फैलने लगेगी फ़साद और बदउनवानी अपनी इंतिहा को पहुंच चुका होगा और इसका भुगतान नाक़ाबिल मरम्मत हो जाएगा और सरज़मीनें तबाह हो जाएगी और अवामुन्नास हलाक होंगे।

वो जिन पर दीन की ज़िम्मेदारी आइद डाली गई है
यानी हुक्काम, अफराद और जमात पर अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ इस विषय पर तफ़्सीली गुफ़्तगु में जाने से पहले हमें एक और बात अच्छी तरह जान लेनी चाहीए कि वो कौन लोग हैं जिन पर शरई क़वानीन को नाफ़िज़ करने की ज़िम्मेदारी डाली गई है।

क्योंकि मुसलमान उम्मत में अफराद (individuals), हुक्काम (rulers) और जमातें शामिल है शरअ ने इन विभिन्न श्रेणीयों के तहत लोगों के ज़िम्मे विशेष अहकामात सपुर्द किए हैं जिसकी उन्हें हर हाल में पाबंदी करनी है। चुनांचे उसके बाद उनको नसीहत, उनका एहतिसाब व मवाख़ज़ा (accountibility), उनकी इस्लाह उन पर आयद किए गए इन अहकामात की ज़िम्मेदारीयों की अदायगी में नाकामी के हिसाब से की जाती है।

लिहाज़ा इन श्रेणी के अफ़राद की अपनी ज़िम्मेदारी से संबधित इस बात की हक़ीक़त अगर हमारी नज़रों में धुँदली हो जाएगी तो नतीजतन हमारे लिए अम्र बिल मारुफ़ और नही अनिल मुनकर के फ़रीज़े को अंजाम देना निहायत ही दुशवार हो जाएगा चुनांचे इस बात की वज़ाहत के लिए हम निम्न लिखित बिन्दू बयान करते हैं :

शरई अहकामात का एक विशेष हिस्सा ख़लीफ़ा या अमीर के ज़िमी सुपुर्द किया गया है जिन पर अमीर के अलावा किसी को भी अमल दरआमद करने का इख्तियार नहीं दिया गया है इसी तरह शरई अहकामात का एक दूसरा विशेष हिस्सा व्यक्ति के ज़िम्मे किया गया है.

जिनकी अफराद के ज़रीए अंजामदेही में नाकामी की स्थिति में ख़लीफ़ा उन्हें अपने मातहत अंजाम देता है इनके अलावा कुछ अहकाम ऐसे हैं जो शरअ ने ख़लीफ़ा के ज़िम्मे किए हैं लेकिन उन्हें ख़ास हालात के तहत अफराद अंजाम दे सकते हैं और कुछ अहकामात ऐसे हैं जो शरअ ने जमात या गिरोह के ज़िम्मे किए हुए हैं.

फर्द की ज़िम्मेदारी

जहां तक अफराद पर आइद अहकामात का ताल्लुक़ है तो इनमें इबादात, रोज़ा, हज, ज़कात और मुनकिरात से इज्तिनाब जैसे ख़मर (शराब वग़ैराह), जुआँबाज़ी, सूद, चोरी, क़त्ल, ज़िना, फ़हाशी, झूठ, धोकेबाज़ी, ग़ीबत ज़नी और इसी किस्म के तमाम मुनकिरात से गुरेज़ वग़ैरा ऐसे अहकामात शामिल हैं.

मुसलमानों के तमाम अफ़राद को इन तमाम अहकामात की पाबंदी का हुक्म है वो चाहे दारुल-कुफ्र में मौजूद हो या दारुल-इस्लाम में रहते हो और चाहे वो इस्लामी सरज़मीनों (देशों) में रहते हो या कुफ्र सरज़मीनों (देशों) में मुक़ीम हो । यहां पर हरगिज़ ये नहीं देखा जाता कि रसूल (صلى الله عليه وسلم) और उनके अस्हाब (رضی اللہ عنھم) ने सिर्फ़ मक्का मुकर्रमा की हद में कौन सा फे़अल अंजाम दिया और.

सिर्फ़ मदीना मुनव्वरा की हद में कौन सा फे़अल अंजाम दिया है बल्कि अफराद के लिए ज़रुरी शरई क़वानीन की पाबंदी इबादात, मामलात, मतऊमात (खाने पीने की चीज़ें), मलबूसात (वेश-भूशा), अख़्लाक़ीयात और तमाम इस्लामी अक़ाइद, इन मामलात में है अफराद पर इन तमाम अहकामात की पाबंदी हर हाल में आइद है।

हर अफराद अपने अहले-ख़ाना के बारे में ज़िम्मेदार है शरअ ने अफराद को वली (सरपरस्त) मुक़र्रर किया है। कोई मुस्लिम व्यक्ति अगर दारुल-कुफ्र में रहता है और वहां का इक़्तिदार उसे इन इन्फ़िरादी क़िस्म के इस्लामी अहकामात को अंजाम देने से रोकता हो तो उस पर आइद होता है कि वो इस जगह से ऐसी किसी दूसरी जगह हिज्रत इख्तियार करे जो या दारुल-इस्लाम हो या ऐसा दारुल-कुफ्र हो जहां उसे ये शरई इन्फ़िरादी अधिकार हासिल हो.

तबलीग जमात के एक कार्यकार्त ने मेसेज भेजा है जिसमे उन्होंने इज्तेमा में आने की अपील की है-

अल्लाह के फज़ल से तक़रीबन ( एक करोड़ ) से ज्यादा लोग  आने की उम्मीद हे इज्तेमा में  नमाज़ की सफ की लम्बाई ३ किलोमीटर होगी जो 5 किलोमीटर के दायरे तक फैली होंगी इंशाअल्लाह. जहा से बयांन  होगा यानि स्टेज उसके दरमियान और जो आखरी मजमा बैठा होगा उसका फासला तकरीबन ५ किलोमीटर से ज्यादा होगा.

पूरे हिंदुस्तान की तारीख में ऐसा और इतना बड़ा इज्तेमा आज तक नहीं हुआ. आज तक किसी इज्तेमा से पहले इज्तेमा की मेहनत के लिए बीस हज़ार जमाते नहीं निकली लेकिन अल्लाह ने अपने फज़ल से इस इज्तेमा की मेहनत के लिए इतनी जमाते निकाली.

आप को बताता चलु पूरे दुनिया में सबसे ज्यादा लोग जो आते हे वो हज के मौके पर तक़रीबन ४० लाख या बहोत ज्यादा ५० लाख उसके बाद टूँगी बांग्लादेश इज्तेमा में लोगो का आना होता हे.  टूँगी बांग्लादेश इज्तेमा में नमाज़ की सफ की लम्बाई १ से १.५ किलोमीटर होती हे.

और यहाँ औरंगाबाद में ३ किलोमीटर की सफे होंगी तो आप अंदाजा लगाए ये इज्तेमा कितना बड़ा होगा. इज्तिमा की तैयारियां लगभग साल भर  पहले से हो रहें हैं, स्थानीय लोगो में ख़ुशी का माहौल हैं तो छोटे मोटे कारोबारी अपनी सामर्थ्य के हिसाब से इज्तिमा में अपना माल और वक़्त दे रहें हैं.

इतना बड़ा इंसानियत का समुन्दर अल्लाह को राज़ी करने के लिए जमा होगा इनका मकसद सिर्फ अल्लाह को राज़ी करना और मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि व सल्लम के लाये हुए दिन को अपनी ज़िन्दगी से लेकर क़यामत तक आखरी इंसान के ज़िन्दगी में लाना हे.

सिर्फ मुंबई शहर से अब तक तक़रीबन बीस हज़ार बसें बुक हो चुकी हे अब बसें मिलना मुष्किल हे ट्रैन की टिकटे और रिजर्वेशन फुल हो चुकी हे हम कही महरूम ना रह जाए जल्दी से अपने नज़दीकी मस्जिद में राब्ता कायम कर के अपने जाने की टिकट बुक कराये और दिन  की मेहनत में अपना हिस्सा लगाए.

अल्लाह को उन बन्दों पर बड़ा प्यार आता हे जो अल्लाह के दिन लिए अपना जान माल वक़्त कुर्बान करते हे.
अल्लाह सबका पहुंचना आसान फरमाए कुबूल फरमाए और  आलम के इंसानो के लिए हिदायत का जरिया फरमाए.

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