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ये हिन्दुस्तान के वही मुसलिम सिपाही जिन्होने अपने ही ख़लिफ़ा के ख़िलाफ़ जंग मे अंग्रेज़ो का साथ दिया था. बाद मे इस जंग को अंग्रेज़ो ने जीत कर फ़लस्तीन के इलाक़ो मे यहुदीयों को बसा कर इसराईल नाम के एक मुल्क की बुनयाद डाली थी.
जिसके बाद बैतुलमुक़द्दस पर भी इन्होने क़ब्ज़ा कर लिया और आज मसजिद ए अक़्सा भी यहुदीयों के क़ब्ज़े मे है जो के क़िबला ए अव्वल है और ये वही इज़्ज़त और मुहब्बत का मुसताहिक़ है जो मसजिद नबवी(स) और मसजिद ए हराम है.
पहली जंग ए अज़ीम यानी First World War के दौरान ख़ंदक़ में बैठ कर दुशमन का इंतज़ार करते हुए उस्मानी सिपाही, उस्मानी फ़ौज में पुरी दुनिया से आए हुए मुस्लिम सिपाही थे. ? जिन्होने अपने ही ख़लिफ़ा के लिए दुशमनो के ख़िलाफ़ जंग मे हिस्सा लिया था.
पर बाद मे इस जंग को अंग्रेज़ो ने जीत कर फ़लस्तीन के इलाक़ो मे यहुदीयों को बसा कर इसराईल नाम के एक मुल्क की बुनयाद डाली थी.
जिसके बाद बैतुलमुक़द्दस पर भी इन्होने क़ब्ज़ा कर लिया और आज मसजिद ए अक़्सा भी यहुदीयों के क़ब्ज़े मे है जो के क़िबला ए अव्वल है और ये वही इज़्ज़त और मुहब्बत का मुसताहिक़ है जो मसजिद नबवी(स) और मसजिद ए हराम है.
इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र (जिसमें यह लड़ा गया) तथा इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्व युद्ध कहते हैं.
विश्व युद्ध ख़त्म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी (हैप्सबर्ग) और उस्मानिया ढह गए. यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुई और अमेरिका निश्चित तौर पर एक ‘महाशक्ति ‘ बन कर उभरा.
पहला विश्व युद्ध लगभग 52 माह तक चला और उस समय की पीढ़ी के लिए यह जीवन की दृष्टि बदल देने वाला अनुभव था.
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