अज़ान की आवाज़ और शयातीन का अमल… और इसकी वजह से जैसे ही अज़ान होती है तो…

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इस्लाम

एक शख्स ने किसी बुज़ुर्ग से सवाल किया की क्या वजह है की अक्सर अज़ान की आवाज़ सुनते ही इस इलाके के कुत्ते ज़ोर ज़ोर से रोने जैसी आवाज़े निकालने लगते है ?और अज़ान ख्तम होते ही खामोश हो जाते है। और ऐसा खुसुसन फ़ज़्र की अज़ान के वक़्त ज़्यादातर होता है ? ऐसा क्यों है?

बुज़ुर्ग ने फोरन इसका जवाब उस नौजवान की दिया। और बोले: देखो मियां अल्लाह ताला ने जानवरो को ऐसी हिस (सेंस) अता फ़रमाई है जो की इंसानो को आता नहीं की.

जबकि इंसान को अशरफुल मखलूकात बनाया है (यानि तमाम मख्लूक़ में सबसे से अफ़ज़ल )लेकिन वह हिस नहीं आता की जिस से वह आसमानो में चलते फिरते घुमते शयातीन और बालाओं या आफत को अपनी बरहाना आँखों से देख सके.

लेकिन यह जानवर उन्हें देख सकते है। मगर बेज़ुबान होने की वजह से इंसानो को बता नहीं सकते लेहाज़ा अपने तरीके से अपनी मख़सूस आवाज़ में वह इंसानो को बाख़बर करने की कोशिश करते है तो जब अज़ान जैसे ही शुरू होती है ख़ुसूसन सुबह फज़्र में ९क्युकी जितनी भी बालाएं और शयातीन है वह रात के वक़्त की कसीर तादाद में निकलती है)

तो अज़ान की आवाज़ सुनते ही यह तमाम शयातीन और बालाएं वहां से भागना शुरू हो जाती है जिन्हे देखते ही यह कुत्ते रोना शुरू कर देते है।

कुत्ता जब कहीं किसी इलाके में में बहुत रोने लगता है और बराबर कई दिनों तक ,तो कुछ ही दिन में उस मोहल्ले में किसी न किसी की मौत ह जाती है। लोग मनहूस कह कर उसे मार कर भागते है.

वह बेज़ुबान बेचारा मनहूस थोड़ी है। उसे इल्म हो चूका है की इस इलाके में कोनसी आफत या मौत आने वाली है।वह अपने मख़सूस तरीके और आवाज़ से हमको बाख़बर करने की कोशिश करता है।

यही उल्लू का हाल है। लोगो ने उसको इसी फितरत की बिना पर उसे मनहूस करार दिया है। उसे बर्बादी तबाही की सिंबल बना दिया है ,जब की यह फ़िज़ूल की बात है। जेहालत और लाइल्मी की बीना पर यह सब हो रहा है।