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नबी-ए-पाक मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को चार चीजें बेहद पसंद थी। जिसे वह कभी तर्क नहीं करते थे। एक सुरमा लगाना , दूसरा इत्र लगाना, तीसरा इमामा शरीफ पहनना, और चौथा मिस्वाक करना.
रमजान के महीने में रोजेदार इन प्यारी सुन्नतों का खासा ख्याल रखते हैं। इन प्यारी सुन्नतों से रोजदारों के रूह को सुकून व इबादत में ताजगी मिलती है। इनका इस्तेमाल करने वालों के लिए खुदा के फरिश्ते दुआएं करते हैं.
सुरमा लगाना नबी की मीठी- मीठी सुन्नत है। जब आप सोने लगते तो अपनी मुबारक आँखों में सुरमा लगाया करते। हदीस में आया है कि नबी ने फरमाया इस्मद का सुरमा लगाया करो क्यों कि ये आँखों की रोशनी को बढ़ाता और पलकें उगाता है.
इब्ने माजा की रिवायत है कि तमाम सुरमों में बेहतर सुरमा इस्मद है कि यह निगाह को रोशन करता और पलकें उगाता है। कहा जाता है कि इस्मद इस्फहान में पाया जाता है। उलमा-ए-किराम फरमाते हैं कि इसका रंग सियाह होता है और मश्रिकी मुल्कों में पैदा होता है.
बहरहाल इस्मद का सुरमा मयस्सर आ जाए तो यही अफजल है वरना किसी भी किस्म का भी सुरमा डाला जाए सुन्नत अदा हो जाएगी। हदीस में है कि नबी सोने से पहले आँख में सुरमा इस्मद की तीन सलाइयॉं लगाया करते थे।
इसी तरह नबी को खुशबू बेहद पसंद है और बदबू से आप को बहुत ही अजीयत होती है। लिहाजा आप हर वकत मुअत्तर मुअत्तर रहते हैं। हदीस में आया है कि आप मुश्क सरे अकदस के मुकद्दस बालों और दाढ़ी मुबारक में लगाते.
हदीस में यह भी आया है कि नबी खुशबू का तोहफा रद्द नहीं फरमाते थे। नबी ने फरमाया तीन चीजें कभी नहीं लौटानी चाहिए तकिया, खुशबूदार तेल, और दूध।
इमामा शरीफ नबी की प्यारी सुन्नत है। नबी हमेशा सरे अकदस पर अपनी मुबारक टोपी पर इमामा मुबारका को सजाकर रखा। इमामा मुसलमानों का वकार और अरब की इज्जत है तो जब अरब इमामा उतार देंगे अपनी इज्जत उतार देंगे। नबी ने इमामा की तरफ इशारा करके फरमाया फरिश्तों के ताज ऐसे ही होते हैं। इमामा बाधंने से बुर्दबारी बढेगी.
टोपी पर इमामा हमारा और मुश्किरीन का फर्क है, हर पेच पर कि मुसलमान अपने सर पर देगा उस पर रोजे कियामत एक नूर अता किया जाएगा। बेशक अल्लाअ और उसके फरिश्ते दुरूद भेजते हैं, जुमअ के इमामा वालों पर । इमामा के साथ नमाज दस हजार नेकियों के बराबर है। इमामा के साथ दो रक्अतें बगैर इमामा की सत्तर रक्अतों से अफजल है।
हदीस में आया है कि नबी को चार चीजें पसंद है खतना करना, इत्र लगाना, मिसवाक करना, निकाह करना। हदीस में है कि नबी ने फरमाया कि मिसवाक का इस्तेमाल अपने लिए लाजिम कर लो क्योंकि इसमें मुहँ की पाकीजगी और अल्लाह की खुशनूदी है.
नबी ने फरमाया कि अगर मुझे अपनी उम्मत की मशक्कत और दुश्वारी का ख्याल न होता तो मैं इनको मिसवाक करने का हुक्म देता। नबी ने फरमाया तुम अपने कपड़ों को धोओ और अपने बालों की इस्लाह करो और मिसवाक की जीनत और पाकीजगी हासिल करो क्योंकि बनी इसराईल औरतों ने कसरत से जिना किया। सो कर उठने के बाद मिसवाक करना सुन्नत है।
सोने की हालत में हमारे पेट से बुखारात और गन्दी हवाएं मुहँ की तरफ आती जाती हैं जिसकी वजह से मुहँ में बदबू और जाएके में तब्दीली हो जाती हैं। इस सुन्नत की बरकत से मुहँ साफ हो जाता हैं.
मिसवाक कुव्वते हाफिजा को बढाती है औ बलगम दूर करती है। मिसवाक इंसान की फसाहत में इजाफा करती है। मिसवाक में चौबिस खूबियां हैं। इनमें सब से बड़ी खूबी यह है कि अल्लाह राजी होता है, मालदारी और कुशाद्गी पैदा होती है, मुहँ में खुशबू पैदा हो जाती है, दर्दे सर को सूकुन होता है, दाढ़ का दर्द दूर होता है.
और चेहरे के नूर और दॉंतों की चमक की वजह से फरिश्ते मुसाफह करते हैं। मिसवाक में दस खसलतें है। दांतों की जर्दी खत्म होती है। आँखों की बीनाई को तेज और मसूढ़ों को मजबूत बनाती है।
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