11 हज़ार लड़ाकों के बराबर था ये अकेला 'सिपाही' कोई भी फ़ौज नही हरा सकती थी इसको, जिसकी टुकड़ी में ये मौजूद होता था

जंग-ए-यमामा की जीत से फ़ुर्सत पा कर ख़ालिद बिन वालिद (रज़ी0) ने अपने साथियों में ख़लीफ़ा अबू-बकर (रज़ी0) के फ़ैसले का इलान किया के जो लोग अपने घर जाना चाहते हैं वो जा सकते हैं। ख़ालिद बिन वालिद की टुकड़ी में उस वक़्त 13000 सिपाही थे।
इस इलान के बाद 11000 सिपाही वापस अपने घर को चले गए। अब ख़ालिद रज़ी0 के पास सिर्फ़ 2000 लोग रह गए — किसी जंगी महाज़ से इतनी बड़ी तादाद में सिपाहीयों का चला जाना बड़ा ख़तरा था जिसे देखते हुए हज़रत ख़ालिद ने मदीना हज़रत अबूबकर रज़ी0 से मदद तलब की।
हज़रत अबू बकर ने एक नौजवान को बुलाया और उनसे कहा के ख़ालिद को रसद की ज़रूरत है आपको जाना है। वहाँ मौजूद लोग हैरत से ख़लीफ़ा की तरफ़ देखने लगे की जिस महाज़ से 11000 सिपाही घर को चले गए हों वहाँ उनके बदले में सिर्फ़ एक नौजवान को भेजा जा रहा है।
तब अबू बकर रज़ी0 ने उस नौजवान की तरफ़ देखा और कहा “कोई भी फ़ौज नही हार सकती जिसकी टुकड़ी में ये नौजवान मौजूद हो।”
उस One man Army का नाम “क़ा’क़ा बिन अम्र अल-तमिमि” था। एक बार रसूलल्लाह सल्लहू अलहे वासलम ने हज़रत क़ा’क़ा से पूछा क़ा’क़ा तुमने जंग की क्या त्यारी की है?
हज़रत क़ा’क़ा ने जवाब दिया — अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म और साथ में मेरा घोड़ा। आप सल्लहू अलहे वासलम
ने फ़रमाया — यही मक़सद है। फिर रसूलल्लाह सल्लहू अलहे वासलम ने पुकारना शुरू किया ” सैफुन ली क़ा’क़ा” (क़ा’क़ा के लिए एक तलवार लाओ)
Ridda wars, Battle of Chains, Battle of Yarmouk, Battle of al-Qādisiyyah, Battle of Jalula में क़ा’क़ा बिन अम्र अल-तमिमि की बहादुरी के ऐसे ऐसे कारनामे हैं कि आप सोचने पे मजबूर हो जाएँगे कि क्या कोई इंसान बहादुरी के इस मोकाम तक पहुँच सकता है।