मुसलमान सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है लेकिन शरीयत से छेढ़छाड़ नहीं :मेहँदी हसन ऐनी

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रायबरेली : 1984 में शाह बानो केस पर सुप्रीम कोर्ट के शरई लॉ के खिलाफ़ जजमेंट के बाद देश भर के मुसलमान एक होकर मैदान में कूद पड़े थे,मौलाना अली मियाँ नदवी,मौलाना असद मदनी,मौलाना मिन्नतुल्लाह रहमानी,क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम स. र. की कियादत में देश भर का मुसलमान विचलित हो गया था.

पूरे देश का मुसलमान एकजुट होकर आंदोलन छेड़े

आरपार की लड़ाई के लिये  हर किसी ने काली पट्टी बांध कर आंदोलन किया था,दिल्ली जाम कर दिया था,तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने समझ लिया था कि अगर “मुस्लिम परसनल लॉ”के साथ छेड़छाड़ की गयी तो मुसलमान चुप नहीं बैठेंगें,उन्होंने कोर्ट के फैसले के विपरीत पारल्यामेंट में बिल पास करा कर ये साबित कर दिया था कि “मुस्लिम परसनल लॉ” दुनिया के सभी संविधानों से बढ़ कर है, अब फिर से केन्द्रीय सरकार हाथ धोकर “मुस्लिम परसनल लॉ”के खिलाफ़ पड़ गयी है,

एैसे में ज़रूरत है कि हिकमत के साथ, रोडमैप तै कर के पूरे देश का मुसलमान एकजुट होकर आंदोलन छेड़े,उलमा और दानिशवर हज़रात कियादत करें, और सरकार व अदालत को ये समझाने की कोशिश करें कि किसी भी धर्म की परसनल लॉ से देश की एकता व अखंडता को कोई खतरा नहीं है.

मुस्लिम पर्सनल लॉ पर मुसलमानों के आग्रह के कारणों की तो वे दो हैं,
एक: ये कि (निकाह, तलाक़ आदि) के क़ानून उनके अपने बनाए हुए नहीं, ईश्वर द्वारा बनाए गए हैं। शरीअ़त (इस्लामी विधान) की मौलिक रूप-रेखा अल्लाह की बनाई हुई, तथा इसकी व्याख्या भी अल्लाह के, या विस्तार में जाने पर अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत
मुहम्मद (सल्ल॰) के द्वारा तय की गई है।
किसी मुसलमान धर्म-विद्वान को, या दुनिया के सारे मुसलमान मिल जाएं तो उन्हें भी, उस मौलिक रूप रेखा में, उसकी पैग़म्बरीय व्याख्या में परिवर्तन, कमी-
बेशी का अधिकार प्राप्त नहीं है (समयानुसार, या
आवश्यकतानुसार) उन क़ानूनों की विवेचना और लागूकरण (Interpretation and Application) सिर्फ़ उतनी ही, उसी सीमा के अंतर्गत की जा सकती है जो मौलिक-स्तर पर अल्लाह और उसके
पैग़म्बर ने निर्धारित कर दी है। उस मात्रा की अवहेलना तथा उस सीमा का उल्लंघन करते ही, इस्लाम का तिरस्कार हो जाएगा,
मुस्लिम समुदाय इस्लाम की परिधि से बाहर निकल जाएगा। इस्लाम की वास्तविकता, तथा इस्लाम और मुसलमानों के बीच संबंध, और मुसलमानों के जीवन के कुछ विशेष क्षेत्रों में इस्लामी शरीअत की इस भूमिका से भली-भांति अवगत (Informed) न होने

के कारण ही, हमारे देशबंधुओं को यह उलझन कभी-कभी सताया करती है……
इस लिये सभी इंसाफ़ पसंद देशवासियों को सरकार से अपील करनी चाहिये कि
आर्टिकल 24(1)(25 B) को सामने रखते हुए सरकार हलफनामा वापिस ले,और सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 44 को संविधान से खतम करने का आर्डर दे,

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