रक्षामंत्री और संघ हिम्मत करके यह क्यों नहीं कहते कि यह सरकार संघ की ही है

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संघ का किसी घटना में योगदान है या नहीं अथवा कोई व्यक्ति संघ का सदस्य कब होता है और कब नहीं होता आदि मुद्दों को लेकर असमंजस की स्थिति अधिकतर बनी ही रहती है। कल जब रक्षामंत्री मनोहर परिकर ने पाकिस्तान की सीमा पर सर्जिकल स्ट्राइक कर पाने की स्वयं तथा प्रधानमंत्री की क्षमता के लिए श्रेय संघ को दिया.

देश के समक्ष फिर यह असमंजस खड़ा कर दिया कि सफलता के लिए यदि संघ को श्रेय जा सकता है तो फिर कई मोर्चों पर सरकार की असफलता के लिए अपनी कमियां संघ के सदस्य होने के नाते भी गिनी जाएं इस बात की कोई गुंजाइश है या नहीं?

जेएनयू में कन्हैया की देशभक्ति पर तो बीजेपी वालों ने बहुत विवाद किया, लेकिन जो कश्मीरी युवक जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगेÓ नारे लगा रहे थे वह आज तक पकड़े नहीं जा सके हैं। उसके लिए न तो संघ के सदस्य रहे गृहमंत्री राजनाथ सिंह जिम्मेदारी लेते हैं, न ही राममाधव जो कि जम्मू-कश्मीर सरकार के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं वह अपनी जिम्मेदारी लेते हैं, न रक्षामंत्री और न ही वह महबूबा मुफ्ती तो बीजेपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बनी हुई हैं उन युवकों के बारे में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं कर पाने की जिम्मेदारी स्वीकारते नजर आते हैं।

देशद्रोहियों को दिल्ली में नारे सुनने के बाद भी सजा न दे पाने को किस श्रेणी की देशभक्ति माना जाए, यह तय कौन करेगा? जुलाई में भारतीय वायु सेना का विमान एएन 32 चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर की रूटीन उड़ान के दौरान 29 अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ बंगाल की खाड़ी में गुम हो गया था। यह विमान कहां गया?, इसमें बैठे व्यक्तियों की स्थिति के बारे में सरकार ने क्या कोई आधिकारिक सूचना देश को देने की जरूरत समझी?

इस पूरे मामले के लिए क्या सरकार और स्वयं रक्षामंत्री संघ के कार्यकर्ता होने के नाते कोई जिम्मेदारी अपनी और प्रधानमंत्री की तय करेंगे? पिछले 15 साल से मध्यप्रदेश में संघ के आर्शीवाद से चलने वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुए व्यापम घोटाले में शिकार बने प्रदेश के युवा और मौत के घाट चढ़े 50 से भी ज्यादा लोगों के लिए अभी तक न्याय न दिला पाने के लिए क्या भाजपा सरकार में संघ से जुड़ाव रखने वाले लोगों की असफलता के लिए संघ की तरफ से कोई कार्यवाही अथवा जिम्मेदारी स्वीकारने की जरूरत दिखलाई?

इसमें केंद्रीय सरकार के अंतर्गत काम करने वाली सीबीआई भी कुछ नहीं कर सकी है, संघ को इस बात के लिए मोदी सरकार की जिम्मेदारी पर भी ध्यान क्यों नहीं देना चाहिए? राहुल गांधी पर महात्मा गांधी की हत्या में नाथूराम गोड़से को संघ से जुड़ा हुआ बताने के कारण न्यायालय में मामला चल रहा है। इस मामले में इस देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी हस्तक्षेप हुआ और उसमें राहुल गांधी को अपने बयान को वापस लेने की सलाह भी दी गई।

यहां एक काम न्यायालय भी कर सकता है कि वह यह अपेक्षा तो संघ से कर ही ले कि किसी व्यक्ति को संघ अपना सदस्य कब मानता है? और कब किसी सदस्य की सदस्यता समाप्त होती है, साथ ही किसी घटना के लिए कैसे संघ अपनी जिम्मेदारी तय करता है या संघ की जिम्मेदारी मानी जानी चाहिए? यह इसलिए भी जरूरी है कि 1992 में बाबरी विध्वंस के समय लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार आदि कई नेताओं के घटना से पहले और घटना के बाद दिए गए बयानों और अपनी जिम्मेदारी के संबंध में काफी भिन्नताएं रहीं हैं और संघ की तरफ से भी आज तक यह समझ नहीं आता कि उस पूरी घटना में क्या भूमिका थी? संघ का उस समय क्या प्लान था क्या वह घटना उनके द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सहायता प्राप्त थी या उसमें संघ की कोई रूचि या हस्तक्षेप था ही नहीं? 1984 के दंगों में कई आरोप आरएसएस के लोगों पर भी लगाए गए थे आरएसएस ने कभी नहीं बताया कि उन आरोपों में कोई सच्चाई थी या नहीं?

संघ और सरकार के संबंधों को लेकर भी काफी ऊहापोह की स्थिति बनाकर रखी जाती है। मीडिया हो या सामाजिक चिंतक या राजनीतिक विश£ेषक सभी लोग यह जानते हैं कि यदि आरएसएस, बीएचपी, बजरंगदल से जुड़े लोग यदि हिन्दुत्व संबंधी किसी भी कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हैं तो उसका राजनीतिक फायदा किस पार्टी को दिलाने की मन्शा उनकी होती है। वर्तमान की मोदी सरकार के द्वारा भी संघ के कार्यालय जाने और संघ को सरकार का रिपोर्ट कार्ड बताने अथवा संघ के समर्थन से किसी मंत्री अथवा पार्टी का पदाधिकारी बनने या न बन पाने की खबरें भी निरंतर और सार्वजनिक रूप से जनता के बीच रहती हैं।

इनका कभी सार्वजनिक रूप से संघ ने या सरकार ने खण्डन भी नही किया। सीधी सी बात है कि संघ को एक मौका है अपने कुछ लोगों को सरकार में इतना अच्छा काम करके उदाहरण प्रस्तुत करने का जो ईमानदारी, देशप्रेम और मानवीय समर्पण से ओतप्रोत हो और जिसे देखकर देश की जनता स्वयं बोल उठे कि वास्तव में संघ जैसा कोई नहीं, तो देश स्वयं ही कांग्रेस को, नेहरू को, इंदिरा को भूल जाएगा, इटली में पैदा हुईं सोनिया गांधी का नाम तक नहीं लेगा और जिसे कुछ उत्साही लोग पप्पू कहकर अपने आप को अकलमंद देशभक्त समझते हैं उन्हें भी नाहक अपनी ऊर्जा व्यर्थ नहीं गंवानी पड़ेगी।
अगर कश्मीर में अनुच्छेद 370 पर कोई सफलता नहीं मिलती, अगर राम मंदिर नहीं बन पाता, अगर दलितों पर अत्याचार से हजारों लोग गुजरात में ही हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लेते हैं, यदि मध्यप्रदेश सरकार की आरक्षण नीति के कारण सपाक्स और अपाक्स के रूप में कर्मचारी ही बंट जाते हैं, यदि चुनावों में मुसलमानों को रिझाने की जरूरत भी सरकार को पड़ती है.

तो इन चीजों के लिए संघ की जिम्मेदारी या तो तय हो या फिर मौका देखकर अवसरवादी रवैया न अपनाया जाए। यदि कश्मीर में से 370 अनुच्छेद हटाने में सफलता मिल जाए तो वह संघ की सफलता हो जाए और यदि नहीं हटा पाएं तो वह कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेस की देशद्रोही कार्यवाही की वजह से न हुआ कार्य बता दिया जाए यह देश के लिए कोई परिपार्टी नहीं सुनिश्चित करेगा सिवाए इसके कि राजनीति में अवसरवाद और चुनावी जुमले ही काम करते हैं।

यदि सोनिया गांधी इटली में जन्म लेने के कारण भारतीय नाविकों की हत्या करने वाले इटली मेरीन के केस में पक्षपात करने का आरोप झेल सकती हैं तो महिला पर आरोप लगाने वाले पुरूष प्रधान समूह को इतना पुरूषार्थ तो अपनी सरकार होने पर रखना ही चाहिए कि वह इस देश को गर्व के साथ साक्ष्य प्रस्तुत कर सके, कि इटली में पैदा हुई महिला के प्रभाव वाली सरकार और इस भारत में पैदा हुए असली राष्ट्रवादी लोगों की सरकार के द्वारा की गई कार्यवाही में वास्तविक अंतर यह है।

लेकिन ऐसा हुआ भी नहीं और न ही ऐसा करने का कोई कार्यक्रम भविष्य में संभावित भी नहीं लगता। राजनीति अपनी जगह ठीक है और सत्ता के लिए कुछ मुद्दे जनता को आकर्षित करने के लिए जुमलों के रूप में भी ठीक हैं, लेकिन हम अपनी नई पीढ़ी और बच्चों को क्या यही सिखाएंगें कि बेटा राजनीति का अर्थ अपनी सरकार बनवाने के लिए किसी पर कोई भी आरोप लगा देना और अच्छे कार्यों की शाबाशी भरपूर लेना तथा असफलता की जिम्मेदारी दूसरों पर टाल देना ही राजनीति होती है।

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