गर्भ को चीरने वाले मुस्लिम महिलाओं को ‘आजादी’ दिलाना चाहते हैं।

शेयर करें

तीन तलाक के मुद्दे पर मीडिया में जो कुछ प्रकाशित व प्रसारित हो रहा है और इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो कह रहे हैं, उससे मुस्लिम समुदाय के अंदर लैंगिक न्याय का संघर्ष कमज़ोर हो रहा है। मीडिया, तीन तलाक की पीड़िताओं का तमाशा बना रही है। टीवी चैनल कहीं से भी एक मौलवी को पकड़ लाते हैं और उससे ऊलजलूल बातें कहलवाकर पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करते हैं। मुस्लिम महिलाओं को लैंगिक न्याय स्वयं के संघर्ष से ही प्राप्त हो सकेगा। हां, उन्हें प्रजातांत्रिक संस्थाओं से मदद की ज़रूरत पड़ेगी। इस मुद्दे के राजनीतिकरण से मुस्लिम महिलाओं के हितों को नुकसान पहुंचेगा। मुस्लिम महिलाओं के लिए जो ज़रूरी है वह यह है कि वे एकजुट हों और स्त्रीवादी आंदोलन और उदारवादी प्रजातांत्रिक शक्तियों का सहयोग और समर्थन हासिल करें।

एक बार में तीन बार ‘तलाक‘ शब्द का उच्चारण कर, वैवाहिक संबंध तोड़ने की प्रथा इन दिनों इसलिए चर्चा में है क्योंकि उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे पर सायरा बानो नामक महिला द्वारा दायर याचिका की सुनवाई कर रहा है। इस तरह के तलाक को ‘तलाक-ए-बिदत‘ ( तलाक की वह विधि जो धर्मशास्त्र की दृष्टि में गलत परंतु वैध है) कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे तीन तलाक कहा जा रहा है। उलेमा का कहना है कि तीन तलाक तब भी वैध है जब वह गुस्से में या नशे में दिया गया हो या फोन, एसएमएस या डाक के ज़रिए भेजा गया हो। इस विधि से जिस महिला को तलाक दिया जाता है, उसे तुरंत अपना वैवाहिक निवास छोड़ना पड़ता है। उसे आगे फिर कभी अपने पति के घर आने की इजाज़त नहीं होती और ना ही उसे अपने बच्चों से मिलने दिया जाता है। तलाक की यह प्रथा घोर निंदनीय और घिनौनी है और इसका किसी भी तरह से बचाव नहीं किया जा सकता। इसके बाद भी, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने शपथपत्र में तीन तलाक को शरिया कानून का हिस्सा बताया है। बोर्ड का कहना है कि शरिया कानून, दैवीय है और मुसलमानों को उसका पालन करने का संवैधानिक अधिकार है। हम कई बार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि तीन तलाक असंवैधानिक तो है ही, वह कुरान के भी खिलाफ है।

मुस्लिम महिलाओं के रक्षक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मुद्दे पर भुवनेश्वर में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 16 अप्रैल, 2017 को टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘हमारी मुस्लिम बहनों के साथ न्याय होना चाहिए। उनके साथ अन्याय नहीं होना चाहिए…अगर कोई सामाजिक बुराई है तो समाज को जागना चाहिए और न्याय प्रदान करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए’’। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके अगले दिन, 17 अप्रैल, 2017 को, कहा,  ‘‘जो लोग इस ज्वलंत मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं वे अपराधियों जैसे हैं’’। उन्होंने तीन तलाक की तुलना द्रोपदी के चीरहरण से की और समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की मांग की।

प्रधानमंत्री और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री, दोनों मुसलमान महिलाओं के रक्षक बन रहे हैं। वे उन्हें अमानवीय मुस्लिम पर्सनल लॉ के चंगुल से निकालने का दंभ भर रहे हैं। परंतु उन्हें उनके अतीत से जुड़े कई प्रश्नों का उत्तर देने की ज़रूरत है। जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस समय (2002) राज्य में हुए दंगों में मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अमानवीय यौन हिंसा हुई थी। उस समय दोनों में से किसी ने भी इस पर दुःख या पछतावा व्यक्त नहीं किया था और ना ही मुस्लिम महिलाओं के साथ हुए अन्याय के दोषियों को सज़ा दिलवाने की बात कही थी। उस समय उन्हीं की पार्टी के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को राजधर्म का पालन करने की सलाह दी थी। तत्कालीन गुजरात सरकार ने सांप्रदायिक दंगों के डेढ़ लाख से अधिक पीड़ितों, जो विभिन्न राहत शिविरों में बहुत बदहाली में अपने दिन बिता रहे थे, की किसी प्रकार की सहायता करने से इंकार कर दिया था। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक समय यह कहा था कि अगर एक हिन्दू महिला की मुसलमान से शादी कर उसका धर्मपरिवर्तन करवाया जाता है तो सौ मुस्लिम महिलाओं की हिन्दू पुरूषों से शादी करवाकर उन्हें हिन्दू बनाया जाएगा!

गर्भ को चीरने वाले बने मुस्लिम महिलाओं के मुक्तिदाता

सन 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों में हिन्दू श्रेष्ठवादियों ने मुस्लिम महिलाओं के विरूद्ध घिनौनी यौन हिंसा की थी। उन्होंने गर्भवती मुस्लिम महिलाओं के पेट चीर कर गर्भस्थ शिशु को मारा तक था। अब वही लोग मुस्लिम महिलाओं की उनके पुरूषों के दमन से रक्षा करने का दावा कर रहे हैं। मोदी ने गुजरात की हिंसा को औचित्यपूर्ण सिद्ध करने के लिए उसे क्रिया की प्रतिक्रिया बताया था। उन्होंने कभी इस बात पर अफसोस जाहिर नहीं किया कि उनकी नाक के नीचे वीभत्स हिंसा हुई। जिन लोगों पर बलात्कार और हिंसा के आरोप थे, वे लगातार बरी होते जा रहे थे। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए विशेष जांच दल का गठन किया। बिलकीस बानो बलात्कार कांड का मुकदमा मुंबई की एक अदालत में हस्तांतरित किया गया। इसके बाद ही कुछ आरोपियों को सज़ा मिल सकी।

Comments

comments