रेशमा की दर्द भरी दास्तान- मुझे गिराया, बुर्का फाड़कर मुंह पर तेज़ाब फेंक दिया’

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हर आम लड़की की तरह रेशमा भी अपने घर-परिवार में खुश थी। उसकी बड़ी बहन गुलशन की शादी हुई। लेकिन गुलशन का पति उसे दहेज़ के लिए परेशान करता रहा। जब गुलशन को लगा कि बर्दाश्त करने की हद ख़त्म हो गई है, वो पति से अलग हो गई।

एक गोरी, लंबी और ‘सुंदर लड़की। यानी एक ऐसे लड़की जिसे आम भाषा में लोग ‘खूबसूरत’ मानते हैं। तेज़ाब से जला हुआ चेहरा। जो बिगड़ गया है। एक आंख पूरी तरह खराब हो चुकी है। आम मान्यताओं से ट्रेन हुआ एक दिमाग कभी नहीं मानेगा कि ये लड़की किसी फैशन इवेंट में रैंप वॉक कर सकती है.

उसने डिवोर्स फाइल कर दिया। जिसके बाद उसके पति ने अपना बच्चा उसके पास से किडनैप कर लिया। रेशमा अपनी बहन और दो सहेलियों के साथ एक एग्जाम देने जा रही थी। चारों रेलवे स्टेशन पर थीं। गुलशन से खुन्नस खाया हुआ उसका पति आया। और गुलशन के ऊपर तेज़ाब फेंका। पर तेज़ाब उसकी बांह पर पड़ा.

रेशमा बहन को संभाल ही रही थी कि जीजा और उसके आदमियों ने उसे धक्का दे गिरा दिया। उसका बुर्का फाड़ मुंह पर तेज़ाब डाल दिया। “वो मेरी बहन को ही नहीं, उसके पूरे परिवार को चोट पहुंचना चाहता था। उसे पता था मैं घर में सबसे छोटी थी, सबकी लाडली थी।

मुझे चोट पहुंचा कर वो पूरे परिवार को चोट पहुंचा सकता था। इसलिए उसने ऐसा किया। तेज़ाब गिरने पर जो दर्द हुआ उसको मैं बयां भी नहीं कर सकती। मैं और मेरी बहन सड़क पर गिरे कराहते रहे। चीखते रहे, रोते रहे। लेकिन कोई नहीं आया। ऐसा नहीं था कि पूरा स्टेशन खाली था। अछि खासी चहल-पहल थी। बहुत देर बाद एक भला आदमी आया।

जिसने बाइक से मुझे और मेरी बहन को घर छोड़ा। मैं ऐसी हालत में थी कि मुझे याद भी नहीं है कि वो कौन था। बस इतना याद है कि मैं उसे कस के पकड़कर बैठ गई थी। और मेरे शरीर पर गिरे एसिड से वो भी जल गया था।” घर वालों ने रेशमा को अस्पताल में भर्ती करवाया। जहां पता चला कि उसकी आंख पूरी तरह से गल गई है। जिसका अब इलाज नहीं हो सकता।

घर में सबसे सुंदर दिखने वाली, जवान, चहकती हुई लड़की अब जब अपने आप को शीशे में देखती, रो पड़ती। कहती, ‘ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ अल्लाह? जिंदा लाश सी जीने लगी थी। कई बार खुद की जान लेने की कोशिश की। हमने अपने लिए एक ऐसा समाज गढ़ रखा है कि अगर कोई हमारी बनाई हुई ‘नॉर्मल’ की परिभाषा में फिट नहीं होता, हम उसे खुद से अलग कर देते हैं। रेशमा अब नॉर्मल नहीं लगती थी। उसके अंदर हिम्मत नहीं थी खुद का ये रूप बर्दाश्त कर पाने की। और ये मत भूलिए, कि जिनपर तेज़ाब फेंका जाता है उनके बारे में लोग कहते हैं.

‘खुद ही दोस्त बनाती फिरती थी। अब देखो नतीजा।’

इसे घरवालों का सपोर्ट मानिए, या रेशमा की इच्छाशक्ति। कि उसने हार नहीं मानी। और एक दिन वो रिया शर्मा से मिली। जो ‘मेक लव नॉट स्कार्स’ नाम का NGO चलाती हैं। धीरे धीरे रेशमा का खोया हुआ कॉन्फिडेंस वापास आने लगा। और अब वो इतनी ऊचाइयों पर पहुंच गई हैं कि न्यूयॉर्क फैशन वीक के लिए चुनी गई हैं।

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