जब मुहम्मदﷺ की आँखों से आ गए आंसू, बेहद हैरतअंगेज़ किस्सा, पढ़ें और सबको शेयर करें

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मुहम्मदﷺ* मक्का के बाजार से गुज़र रहे थे। देखा कि बाज़ार के बाहर एक बूढी औरत हाथ में 2 थेले लिए खडी थी… वो बेचारी इतनी बूढी और कमज़ोर थी कि एक थेला उठाती थी तो दूसरा ज़मीन पे रखना पड़ता और दूसरा उठाती थी तो पहला ज़मीन पे रखना पड़ता था. वो बेचारी एक एक करके थेला उठाती थी आगे लेके जाती थी, रखती थी.

फिर वापस आती थी… और दूसरा थेला उठाती थी और इसी तरह आगे लेके जाती थी. सब की नज़र पड रही थी वो बूढी इधर उधर देख रही थी… “कोई हे जो मेरा सामान घर पोंहचा दे… ” सामने से *मुहम्मदﷺ* आ रहे थे उस बूढी औरत पर नज़र पड़ी… पास आ कर फ़रमाया:- “या उम्मा मा तफालि माँ क्या में थेला उठाने में मदद करूं…?

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बेचारी बूढी माँ थी कहती हे:- ” एक तू उठाले… एक में उठा लेती हुं…” नबी ने कहा माँ रहने दे… एक थेला एक कंधे पे टांगा, दूसरा दूसरे कन्धे पे टांगा, और आगे आगे चलने लगे… वो बूढी औरत, पीछे पीछे चलते हुए दुआ देती रही… “ए जवान ऊपर वाला तेरी उमर में बरकत अता फरमाए… ऐ जवान उपर वाला तुझे बहोत रोज़ी दे…”

फिर वो बूढी औरत कहती हे:- “बेटा तेरे कंधे तो नहीं दुखते…” *मुहम्मदﷺ* कहते हे:- “कन्धा तो दुखता नहीं, तेरे पाँव दुखते हो तो, माँ तुझे भी कन्धे पे बिठालुं…” वो बूढी औरत कहती है:- “अल्लाह तुझे बहोत अच्छा रखे…” चलते चलते जब बूढी अम्मा का घर आया। बूढी अम्मा ने कहा:- “हाज़ा ब्यती… ” (ये मेरा घर हे…) *मुहम्मदﷺ* ने दोनों थेले नीचे रखे… और कहा:- “माँ में जा रहा हुं…”

माँ ने कहा:- “तूने मेरे थेले उठाये, उसकी कितनी मज़दूरी हुई…?” नबी की आँख से मोती की तरह आंसू का क़तरा गिरा, कहा:- “मेने आप को माँ कहा है, क्या कोई बेटा अपनी माँ से मज़दूरी लेता हे…?”

वो बूढी माँ रो पड़ी . कहने लगी:- “ला इबनि, ला इबनि… ” (ना मेरे बेटे, ना मेरे बेटे, नहीं लेता मजदूरी नहीं लेता…) लेकिन बेटा एक वसीयत तो सुन के जा, बूढी माँ हुं मक्के में एक ज़माने से रहती हुं…” *मुहम्मदﷺ* रुक गए, पुछा:- “हा माँ… बता क्या वसीयत हे…?”बूढी माँ ने कहा:- “देख बेटा मक्के में बहोत वक़्त से रहती हुं, बाल भी सफ़ेद हो गए हैं… मक्का में एक आदमी निकला हे *मुहम्मद* नाम का… उसके जाल में कभी मत फंसना…

वो मिया बीवी में भी तोड़ डाल देता हे… बच्चे और बाप में भी तोड़ डाल देता हे… अरे बेटा सुन, वो जादूगर हे… लोग उसको नजूमी कहते हें… अरे लोग उसको मजनून कहते हें… लोग उसको दीवाना कहते हें… उसके पास कभी मत जाना…” नबी की आँखों में आंसू आ गए… रोते रोते कहा:- “हाँ, माँ तूने जैसा कहा वैसा ही करूँगा।” वो बूढ़ी तजर्बेकार औरत थी, पुछा:- “बेटा, रोता क्यों हे… ?” कहा:- “कोई बात नहीं अम्मा, तुझे ज़रुरत पड़े तो वापस बुला लेना… में तैयार हुं…” ये कह कर *मुहम्मदﷺ* जाने लगे, तो अम्मा ने कहा:- “ना, तुझे ये बूढी औरत का वास्ता, पहले ये बता, तू रोता क्यों हे…?”

फरमाया:- “जिस *मुहम्मद*के ड़र से तू मक्का छोड़ के जा रही हे… जिस *मुहम्मद* से तू मुझे रोक रही हे… वो *मुहम्मद* में ही हुं…” मेरे दोस्तों वो माँ थी। माँ ने *मुहम्मदﷺ* का जुमला सुना तो रोते हुए कहा:- “बेटा… *मुहम्मद* तू ही हे… तो ये बूढी औरत दुआ करती हे कि, अगर तू जादूगर हे तो, अल्लाह पुरे मक्का वालो को जादूगर बना दे… अगर तू नजूमी हे तो, अल्लाह पुरे मक्का वालो को नजूमी बना दे… अगर तू मजनून हे तो, अल्लाह पुरे मक्का वालो को मजनून बना दे…

इस वक़्त में मक्का को ऐसे जादूगर की जरुरत हे
फिर वो बूढी औरत कहती हे:- “बेटा तू जादूगर नहीं हो सकता… तू नजूमी नहीं हो सकता… तू मजनून नहीं हो सकता… में इस ज़मीन के ऊपर गवाही देती हुं… अल्लाह ने तुझे इस ज़माने का नबी बना कर भेजा हे…” और कलमा पढ़ के मुसलमान हो गयी। जब नबी जाने लगे… बूढी माँ ने कहा:- “बेटा, माँ बच्चों पे अहसान करती हे, तू ऐसा बेटा हे जो माँ पे अहसान कर के जा रहा हे…” ये थे *मुहम्मदﷺ* ये हे *मुहम्मदﷺ* की तालीम
*दुवाओ की गुजारीस* सबको शेयर करें दुसरौ को भी ईल्म हासिल करने का मौका दे।।

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