नबी मुहम्मद (स.अ.व.) ने क्यों गुलाम की जगह लेकर 4 रात लगातार चक्की चलाई, और इसके बाद….

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दोस्तों आपसे गुज़ारिश है की इस क़िस्से को पढ़ने के बाद अपने सभी भाई बहनों तक ज़रूर शेयर करना. ऐलान नबुव्वत के चंद रोज़ बाद नबी-ए-करीम सलअल्लाह अलैहि वसल्लम जब एक रात में मक्का की एक गली से होते हुए गुज़र रहे थे, अचानक हुज़ूर को पास के एक घर से किसी के ज़ोर ज़ोर रोने की आवाज़ सुनायी दे रही थी.

और उस आवाज़ में इतना दर्द भरा था कि उस वक़्त आप सल अल्लाहअलैहि वसल्लम बेइख़्तयार उस घर में अंदर दाख़िल हो गए और देखा की एक ये नौजवान था जो देखने में हब्शी मालूम पढ़ रहा था. वह उस वक़्त रो रहा था और रट हुए ही अपने बेजान बाज़ुओं से चक्की पीस रहा था.

आप सल अल्लाह अलैहि वसल्लम उसके पास जाकर बैठ गे और जब उससे रोने की वजह पूछी तब उसने बताया कि मैं एक ग़ुलाम हूँ, और सारा दिन में मशक्कत के साथ अपने मालिक की बकरीयां चराता हूँ उनका ध्यान रखता हूँ और शाम ढलने पर जब घर आता हूँ सारे दिन भर की मेहनत की वजह से थक के चूर हो जाता हूँ लेकिन मेरा ज़ालिम मालिक मुझे गंदुम की एक बोरी रात में पीसने के लिए दे देता है जिसको पीसने में सारी रात लग जाती है.

और में अपनी फूटी अपनी क़िस्मत पर रो रहा हूँ, मेरी भी क्या क़िस्मत है मैं भी तो एक गोश्त-पोस्त का बना हुआ इंसान हूँ, सभी लोगों की तरह मेरा जिस्म भी आराम मांगता है और मुझे भी नींद सताती है जैसे बाकी लोगों को आती है लेकिन मेरे ज़ालिम मालिक को मुझ पर कोई तरस नहीं आता.

और फिर सुबह होते ही वापिस फिरसे वही सिलसिला चालू हो जाता है. क्या मेरे मुक़द्दर में इसी तरह सारी ज़िंदगी रो-रोकर के गुज़ारना लिखा हुआ है ?

उसकी यह बात सुनकर नबी-ए-करीम सल अल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मैं तुम्हारे मालिक से कह कर तुम्हारी मशक़्क़त तो कम नहीं करवा सकता हूँ, क्योंकि हो सकता है वो मेरी बात न माने लेकिन मैं तुम्हारी थोड़ी मदद कर सकता हूँ, जिससे तुम सो जाओ और आराम कर सको तो मैँ तुम्हारी जगह पर चक्की पीसता हूँ.

वो ग़ुलाम नबी की बात सुनकर बहुत ख़ुश हो गया और उनका शुक्रिया अदा करके वह सो गया और आप सलअल्लाह अलैहि वसल्लम उसकी जगह पूरी रात चक्की पीसते रहे और जब गंदुम ख़त्म हो गई
तो आप उसे जगाए बग़ैर ही वापिस तशरीफ़ ले आए.

दूसरे दिन रात के वक़्त हुज़ूर फिर वहां से गुज़रे आपने देखा की रोज़ाना की तरह वो आज भी छक्के पीस रहा है तो फिर आपने पिछली रात की तरह उसको सुला दिया और खुद उसकी जगह चक्की पीसते रहे.

अब तीसरे दिन भी यही सिलसिला चला आप उस ग़ुलाम की जगह सारी रात चक्की पीसते और सुबह को ख़ामोशी से अपने घर तशरीफ़ ले आते थे. चौथी रात जब आप वहाँ गए तो उस ग़ुलाम ने हुज़ूर से पूछ ही लिया, और बोला ऎ अल्लाह के बंदे आप कौन हो? और मेरा इतना ख़्याल क्यों कर रहे हो ?

में एक गुलाम हूँ हम गुलामों से ना किसी को कोई डर होता है और ना कोई फ़ायदा और ना ही में आपके इस काम के बदले आपको कुछ दे सकता हूँ तो फिर आप ये सब कुछ किस लिए कर रहे हो. आप सल अल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मैं ये सब इंसानी हमदर्दी के तहत कर रहा हूँ इसके अलावा मुझे तुम से कोई ग़रज़ नहीं.

उस ग़ुलाम ने कहा कि आप कौन हो ? नबी-ए-करीम सल अल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया क्या तुम्हें इल्म है कि मक्का में एक शख़्स ने नबुव्वत का दावा किया है. उस ग़ुलाम ने कहा हाँ मैंने सुना है कि एक शख़्स है जिस का नाम मुहम्मद (स.अ.व.) है और लोग उसे अल्लाह के नबी के नामसे जानते हैं. आप सल अल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मैं वही मुहम्मद हूँ.

ये सुन कर उस ग़ुलाम ने कहा कि अगर आप ही वो नबी हैं तो मुझे अपना कलिमा पढ़ाईए क्यों कि इतना शफ़ीक़ और मेहरबान कोई नबी ही हो सकता है जो गुलामों का भी इस क़दर ख़्याल रखे आप सल अल्लाह अलैहि वसल्लम ने उन्हें कलिमा पढ़ा कर मुस्लमान कर दिया फिर दुनिया ने देखा कि उस ग़ुलाम ने तकलीफें और मशक़्क़तें बर्दाश्त की लेकिन दामन-ए-मुस्तफा ना छोड़ा.

उन्हें जान देना तो गवारा था लेकिन इतने शफ़ीक़ और मेहरबान नबी का साथ छोड़ना गवारा ना था आज दुनिया उन्हें बिलाल ए-हब्शी रज़ी अल्लाह अन्ह के नाम से जानती है. नबी-ए-करीम सलअल्लाह अलैहि वसल्लम की हमदर्दी और मुहब्बत ने उन्हें आप सल अल्लाह अलैहि वसल्लम का बे लौस ग़ुलाम बना कर रहती दुनिया तक मिसाल बना दिया….

जैसा की हमने ऊपर लिखा था और आप भी बराये मेहरबानी इस क़िस्से को आप हज़रात दूसरे तक ज़रूर शेयर करें आज आप यह मेसेज अगर किसी 1 को भी शेयर करदें तो आप सोच भी नही सकते कितने लोग “अल्लाह” से तौबा कर सकते हैं और इंशा अल्लाह इसका सिला आपको अल्लाह ज़रूर देंगे…. शेयर करना न भूलें शुक्रिया !

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