दिल्ली कब्रिस्तान मामला; केजरीवाल के मंत्री गोपाल राय के बिगड़े बोल कहा ‘औकात में रहो सालों’

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आम आदमी पार्टी की मिलीभगत से दिल्ली में वफ्फ बोर्ड की ज़मीन, कब्रिस्तान पर कब्ज़ा. मुस्लिम समुदाय के वोट बटोरकर केजरीवाल सरकार ने उन्हें जबरदस्त तरीके से ठगा है. पिछले 6 महीने में ४-5 कब्रिस्तान मुस्लिमों के हाथ से छीन लिए गए हैं और इतना ही नहीं आज कुछ लोगों ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के दफ्तर के बाहर विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश की तो इनमे से तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है.

केजरीवाल के मंत्री गोपाल राय ने कहा ‘औकात में रहो सालों’

जो लोग गिरफ्तार हुए हैं उनके नाम तोराब नियाज़ी, हाजी जावेद अली और मोहम्मद हारिस दूर हैं यह लोग दिल्ली ‘आम आदमी पार्टी’ के दफ्तर के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. और इन नेता लोगों को मुस्लिम लोगों द्वारा उनके बफ्फ बोर्ड की जमीन, कब्रिस्तान वापस मांगना बिल्कुल भी रास ना आया.

एक लाइव वीडियो के जरिए दिल्ली के तमाम युवाओं ने केजरीवाल सरकार को चेतावनी दी है और कहा है कि हमें हमारे बफ्फ बोर्ड और कब्रिस्तान की जमीन वापस दी जाए, ये लोग कहते हैं कि हमने केजरीवाल सरकार को वोट करते हुए और उनके जीतने के बाद काफी फक्र महसूस किया था कि शायद केजरीवाल सरकार हमें कुछ राहत दे सकती है लेकिन यहाँ इसका उल्टा हुआ इन लोगों ने पिछले 3 साल में मुस्लिमों के लिए कोई काम ना करते हुए इनका हक़ छीन लिया है.

जब यह मुस्लिम भाई लोग आम आदमी पार्टी के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे उस वक्त ‘गोपाल राय’ जोकि दिल्ली सरकार में मंत्री हैं उन्होंने मिलने के लिए अंदर बुलाया और जब यह लोग अंदर उनसे बात करने के लिए गए तो दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ने ‘औकात में रहो सालों’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया और उन्हें काफी भला बुरा कहा. उसके बाद जब इन लोगों ने उनसे कहा कि पहले तमीज से बात कीजिए तो दफ्तर में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने और ‘जंगपुरा विधायक प्रवीण’ कुमार ने इनसे मारपीट भी की जिसमें यह लोग मामूली रुप से जख्मी भी हो गए हैं.

अगर ऐसे ही एक समुदाय विशेष एक धर्म विशेष को निशाने पर रखकर जगह जगह इस तरह की बड़ी वारदातें अंजाम दी गईं तो फ़िर इस देश में गृह युद्ध कभी भी छिड़ सकता है. अभी भी मुसलमानों को यहां की क़ानून व्यवस्था और न्यायपालिकाओ पर यक़ीन है लेकिन ऐसी घटनाओं से यह यक़ीन दिन बा दिन कमज़ोर होता जा रहा है.सवाल एक और भी की अगर ये प्राथना स्थल अल्पसंख्यकों का ना होकर बहुसंख्यकों का होता तो क्या होता तब भी यह प्रशासन यह मीडिया ऐसे ही अपनी बगलों में मूंह डालकर बैठे रहते ?

आजादी के बाद से आज तक के इतिहास में यह पहली बार ऐसा हुआ है कि दिल्ली सरकार ने मुसलमानों का हक़ मारकर उनकी जमीन छीन ली हो और कब्रिस्तान पर कब्जा करा दिया गया हो आपको बताते चलें कि कुछ महीनों पहले दिल्ली के सोनिया विहार में एक मस्जिद पर भी ठीक इसी तरह से कब्जा करने की कोशिश की गई थी और मस्जिद को भी तोड़ दिया गया था.

करीबन एक हज़ार आदमियों का झुंड आता है और बरछा कुदाल,घन, सब्बल लेकर मस्जिद की छत से ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए मस्जिद को तोड़ना शुरू करदेते हैं. और देखते ही देखते मस्जिद ज़मीन दोज़ हो जाती है. सवाल यह उठता है कि यह भीड़ तंत्र कभी तो किसी अख़लाक़ को पीट पीटकर उसकी जान ले लेता है तो यही भीड़ तंत्र किसी को ज़िंदा आग के हवाले करदेता है,यह वही भीड़ तंत्र है जिसने 1992 में बाबरी शहीद की तो इस ही भीड़ तंत्र ने गुजरात,मुज़फ्फरनगर को अंजाम दिया.

आखिर उस भीड़ को मस्जिद शहीद करने की इजाज़त किसने दी ? पुलिस भी सवालों के घेरे में है कि एक डेढ़ मंज़िल इमारत तोड़ने में करीबन 2/3 घन्टे तो लगे ही होंगे तो क्यों पुलिस वहां नहीं पोहची. स्थानीय लोग बता रहें हैं कि मस्जिद तोड़ने वालों में से 99% बहारी थे यानी के वही गुजरात,मुज़फ्फरनगर, और सहारनपुर वाला फॉर्मूला की भीड़ बाहर से बुलाओ मारों काटो लूटो और ग़ायब हो जाओ.

एक तरफ़ अमन शांति का परचम लहराने की बात करने वाले सेक्युलर लोग तो कभी दलाल और भांड मीडिया की आज आंखों पर पट्टी बंधी लगती है.? एक समुदाय की प्राथना स्थल ज़मीन दोज़ कर देने की ख़बर दिखाना तो दूर किसी काने सेक्युलर का मुंह नही खुल रहा ?

भीड़ ही अगर सब फैसले करने लगीं तो यक़ीन जानिए यह संविधान खतरे में है.ये पुलिस प्रशासन यह न्यायपालिकाएँ सब पर ताले मार देने होंगे. एक भीड़ जो “जय श्री राम”के नारे लगाते हुए कैसे फैसला सुना सकती है ?

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