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किसी शख्स पर शहवत का इस क़दर ग़लबा हो के अगर निकाह न करे तो ज़रूर जिनकारी में मुब्तला हो जायेगा, और उसको बक़द्रे ज़रूरत नफ़्क़ा-खर्चा और महर पर हक़ीक़तन या हुकमन क़ुदरत भी हासिल है.
शरअन उस पर फ़र्ज़ है कि शादी करके अपनी इस्मत-पाकदामनी की हिफाज़त करे. वाजिब: अगर किसी पर शहवत का ग़लबा है कि शादी न करे तो जीना में मुब्तिला होने का खौफ है लेकिन यक़ीन नहीं.
और उसको बीवी के नान व नफ़्क़ा (खर्च) पर क़ुदरत भी हासिल है ऐसे शख्स पर शादी करके अपनी इस्मत-पाकदामनी की हिफाज़त वाजिब है.
सुन्नत: अगर कोई शख्स निकाह के क़ाबिल हो गया, नान नफ़्क़ा (खर्चे) पर क़ुदरत हासिल है और हमबिस्तरी पर भी क़ुदरत है, निकाह से कोई और शरई रुकावट मौजूद नहीं, ऐसे शख्स के लिए निकाह करके बा इज़्ज़त ज़िंदगी गुज़ारना शरअन मस्नून है.
क्योंकि यह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दाएमी अमल है और शादी से ए’राज़ करने वालो पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रद्द फ़रमाया, लिहाज़ा ऐसा शख्स इत्तेबा ए सुन्नत की निय्यत से अपनी इस्मत की हिफाज़त और सालेह औलाद के हुसूल की निय्यत से शादी करे तो अजरो सवाब होगा.
हराम: अगर किसी शख्स में बीवी के हुक़ूक़ अदा करने की ताक़त न हो, मसलन नामर्द है या नान नफ़्क़ा पर हक़ीक़तन या हिकमतन क़ादिर नहीं, नीज़ मिज़ाज की सख्ती वगेरा, किसी वजह से उसको यक़ीन है के बीवी के हुक़ूक़ अदा नहीं हो सकेंगे, ऐसे शख्स के लिए निकाह करना हराम है.
मकरूह तहरीमी: जिस शख्स को बीवी पर ज़ुल्म का यक़ीन तो न हो, लेकिन ग़ालिब गुमान यही है कि ज़ुल्म हो जायेगा, ऐसे शख्स के लिए जब तक अदा ए हुक़ूक़ पर क़ुदरत न हो निकाह करना मकरूह तहरीमी है. Source: Muslim Issues
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