जो मोमीन दुसरे से नाराज़ रहे और बात न करे तो उसका क़यामत के दिन- देखें और शेयर करें !

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हज़रत अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सललल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया की किसी मोमीन के लिए ये जायज़ नही की दूसरे मोमीन को 3 दिन से ज़्यादा छोड़ दे (यानी नाराज़ रहे) , अगर 3 दिन गुज़र जाए.

तो वो उस से मिले और सलाम करे अगर उसने सलाम का जवाब दिया तो सवाब में दोनो शरीक हो गये और अगर सलाम का जवाब नही दिया तो वो (जवाब ना देने वाला) सारा गुनाह ले गया. सुनन अबू दाऊद, जिल्द 3, 1481-सही

अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सललल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया किसी मुसलमान के लिए ये जायज़ नही की अपने भाई को 3 दिन से ज़्यादा छोड़ दे ( यानी उस से नाराज़ रहे) जिसने 3 दिन से ज़्यादा छोड़ दिया और मर गया तो वो दोज़ख में दाखिल होगा. सुनन अबू दाऊद, जिल्द 3,1483-सही

अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है रसूल-अल्लाह सललल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जन्नत के दरवाज़े पीर (सोमवार) और जुमेरात (गुरुवार )के दिन खोले जाते हैं, फिर हर उस बंदे की मगफीरत हो जाती है.

जो अल्लाह ताला के साथ शिर्क नही करता और सिवाए उस शख्स के जो कीना रखता है अपने भाई से (उसकी मगफीरत नही होती ) और हुक्म होता है इन दोनो को देखते रहो जब तक की मिल जाए, इन दोनो को देखते रहो जब तक की मिल जाए, इन दोनो को देखते रहो जब तक की मिल जाए. सही मुस्लिम, जिल्द 6, 6544

نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: کسی مومن کے لیے درست نہیں کہ وہ کسی مومن کو تین دن سے زیادہ چھوڑے رکھے، اگر اس پر تین دن گزر جائیں تو وہ اس سے ملے اور اس کو سلام کرے، اب اگر وہ سلام کا جواب دیتا ہے، تو وہ دونوں اجر میں شریک ہیں اور اگر وہ جواب نہیں دیتا تو وہ گنہگار ہوا، اور سلام کرنے والا قطع تعلق کے گناہ سے نکل گیا ۔
سنن ابی داؤد جلد ۳ ۱۴۸۱

رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: کسی مسلمان کے لیے درست نہیں کہ وہ اپنے بھائی کو تین دن سے زیادہ چھوڑے رکھے، لہٰذا جو تین سے زیادہ چھوڑے رکھے پھر وہ ( بغیر توبہ کے اسی حال میں ) مر جائے تو وہ جہنم میں داخل ہو گا ۔
سنن ابی داؤد جلد ۳ ۱۴۸۳

حضرت ابوہریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت کی کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا : ” پیر اور جمعرات کے دن جنت کے دروازے کھول دیے جاتے ہیں اور ہر اس بندے کی مغفرت کر دی جاتی ہے جو اللہ تعالیٰ کے ساتھ کسی کو شریک نہیں بناتا ، اس بندے کےسوا جس کی اپنے بھائی کے ساتھ عداوت ہو ، چنانچہ کہا جاتا ہے : ان دونون کو مہلت دو حتی کہ یہ صلح کر لیں ، ان دونوں کو مہلت دو حتی کہ یہ صلح کر لیں ۔ ان دونوں کو مہلت دو حتی کہ یہ صلح کر لیں ۔ ” ( اور صلح کے بعد ان کی بھی بخشش کر دی جائے ۔ ) صحیح مسلم جلد ۶ ۶۵۴۴

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