इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत का क़िस्सा

शेयर करें
  • 1.3K
    Shares

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म 3 सफ़र सन 57 हिजरी क़मरी को मदीना नगर में हुआ था।  सन 65 हिजरी क़मरी में अपने पिता इमाम ज़ैनुल आबेदीन की शहादत के बाद आपकी इमामत का दौर शुरू हुआ।  इमाम बाक़िर (अ) ने 19 वर्षों तक ईश्वरीय मार्गदर्शन के दायित्व का निर्वाह किया.

सात ज़िलहिज अर्थात आज ही के दिन सन 114 हिजरी क़मरी में बनी उमय्या के तत्कालीन शासक हेशाम बिन अब्दुल मलिक के आदेश पर आपको शहीद कर दिया गया.

इमाम मुहम्मद बाक़िर की क़ब्र मदीने के जन्नतुल बक़ी नामक क़ब्रिस्तान में है।  पांचवे इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर आप सबकी सेवा में संवेदना प्रकट करते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के बाद इस्लामी शिक्षाओं और ईश्वरीय आदेशों को समझने का एकमात्र स्रोत पवित्र क़ुरआन ही बचा था।  पवित्र क़ुरआन जैसे महान स्रोत को समझना हरएक के बस की बात नहीं थी।  ऐसे में किसी ऐसे की आवश्यकता थी जो पवित्र क़ुरआन का पूर्ण ज्ञान रखता हो.

खेद की बात यह है कि पवित्र क़ुरआन का संपूर्ण ज्ञान रखने वाले कुछ लोग उस समय मौजूद थे किंतु तत्कालीन शासकों ने उन्हें किनारे लगा रखा था।  उधर लोगों को इस्लाम को सही रुप से पहचाने की जिज्ञासा तेज़ होती जा रही थी.

उनके सवालों का सही जवाब देने के लिए किसी एसे की ज़रूरत थी जो सवाल करने वाले को संतुष्ट कर सके।  उस समय इस्लाम के नाम पर जो लोग स्वयं को इस्लाम के जानकार के रूप में पेश कर रहे थे उनकों पवित्र क़ुरआन का गहरा ज्ञान नहीं था और वे उसकी गहराइयों से अवगत नहीं थे.

एसे वातावरण में कुछ तथाकथित धर्मगुरू और ज्ञानी, इस्लाम की अनुचित व्याख्याएं कर रहे थे।  दूसरी ओर इस्लाम की सही पहचान रखने वाले मौजूद थे किंतु तत्कालीन शासक इस डर से उन्हें जनता के बीच आने नहीं देते थे कि कहीं उनकी लोकप्रियता के कारण उनकी दुकान न बंद हो जाए। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इन बातों को समझ रहे थे.

उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार के बारे में कहा था कि लोगों मैं जब भी तुमको पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कोई कथन या इस्लामी सिद्धांत बताऊं तो तुमको इस बात का अधिकार है कि तुम मुझसे उसके प्रमाण के बारे में पूछो और मैं उसका उत्तर दूं.

अपने इस कथन के माध्यम से इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम लोगों को यह बताना चाहते थे कि वे इस्लामी शिक्षाओं के बारे में तर्क के साथ अपनी बात का जवाब सुनें ताकि वे संतुष्ट हों और तथाकथित इस्लाम के दावेदारों और पाखंडियों से दूर रह सकें.

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम जब लोगों के साथ बैठकर उनके सवालों के जवाब देते तो वे उन लोगों का समर्थन किया करते थे जो क़ुरआन की सही व्याख्या करने में सक्षम होते थे।  यहां पर इस बारे में एक घटना की चर्चा करते हैं।  इमाम के ज़माने में हसन बसरी नामके एक ज्ञानी थे जो पवित्र क़ुरआन के व्याखयाकार कहे जाते थे.

एक बार हसन बसरी, इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की सेवा में उपस्थित हुए।  उन्होंने कहा कि मैं क़ुरआन के बारे में आपसे कुछ पूछना चाहता हूं। इमाम ने उनसे पूछा कि क्या तुम बसरे के रहने वालों के धर्मगुरू हो तो इसपर उन्होंने कहा कि हां ऐसा कहा जाता है.

इमाम ने कहा कि क्या बसरे में कोई एसा भी है जिससे तुम धार्मिक मामलों के सवाल मालूम कर सको।  हसन बसरी ने कहा कि नहीं. इसपर इमाम ने कहा कि फिर बसरे के सारे लोग धार्मिक बातें समझने और जानने के लिए तुम्हारे ही पास आते होंगे।  उन्होंने कहा कि हां एसा ही है.

इमाम ने कहा कि तुम्हारे ऊपर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है।  इसके बाद इमाम मुहम्मद बाक़िर ने कहा कि मैंने तुम्हारे बारे में एक बात सुनी है।  पता नहीं वह बात तुमने कही है या लोगों ने झूठ ही तुम्हारी ओर से फैला दी है। हसन बसरी ने कहा कि वह क्या बात है?

इमाम ने कहा कि लोग यह कहते हैं कि हसन बसरी का मानना है कि ईश्वर ने अपने बंदों के कामों को स्वयं उनके हवाले कर दिया है।  यह सुनकर हसन बसरी ख़ामोश हो गए और कुछ नहीं बोले। जब हसन बसरी ख़ामोश हो गए तो इमाम मुहम्मद बाक़िर ने यह बताने के लिए कि उनसे क़ुरआन को समझने में कहां ग़लती हुई है, हसन बसरी से पूछा कि यदि ईश्वर पवित्र क़ुरआन में किसी की सुरक्षा की गारंटी ले ले तो क्या इस गारेंटी के बाद उसको डरने की ज़रूरत है या नहीं।

हसन बसरी ने कहा कि बिल्कुल नहीं।  इमाम ने कहा कि सूरे सबा की आयत संख्या 18 में ईश्वर कहता है किः और सबा जाति के लोगों के बीच और उन शहरों में जिनमें हमने बरकतें दी हैं, लोग रहते हैं और हमने उनके बीच यात्रा को निर्धारित किया है।  हमने उनसे कहा है कि वे दिन और रात कभी भी शांतिपूर्ण ढंग से यात्रा कर सकते हैं।

इमाम बाक़िर ने कहा कि मैंने सुना है कि इस आयत की व्याख्या करने में तुमने ग़लती की है।  यदि वास्तव में एसा ही है तो तुमने स्वयं को भी नुक़सान पहुंचाया और अपने मानने वालों को भी क्षति पहुंचाई।  उन्होंने कहा कि मैंने सुना है कि सूरे सबा की 18वीं आयत में जिस स्थान का उल्लेख किया गया है उसके बारे में तुमने कहा कि वह मक्का है।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि यदि तुम्हारी बात सही है तो फिर यह बताओ कि जो लोग हज करने के लिए मक्के आते हैं उनको अपने लुटने का डर नहीं रहता या रास्ते में उनपर डाकू हमले नहीं करते? उन्हें रास्ते में कोई डर नहीं होता और उनका सामान नहीं लूटा जाता?

हसन बसरी ने कहा कि हां वे डरते भी हैं और उनके सामान लूट भी लिए जाते हैं।  इमाम ने कहा कि इस हिसाब से तुमने आयत की जो व्याख्या की है वह सही नहीं है।  इमाम मुहम्मद बाक़िर ने कहा कि आयत में जिस पवित्र भूमि का उल्लेख किया गया है उससे मुराद पैगम्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन हैं।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इस बात पर विशेष रूप में बल दिया करते थे कि वे हर बात को ईश्वरीय मानदंडों के आधार पर समझने की कोशिश करें न कि अपनी बुद्धि के आधार पर।  वे कहते थे कि अगर इंसान हर बात को अपनी बुद्धि और अपने हिसाब से अच्छाई या बुराई के आधार पर समझेगा तो बहुत से स्थानों पर उससे ग़लती हो सकती है।

एसे में वह संतुलन का मार्ग खो देगा।  इमाम फ़रमाते हैं कि अगर तुमपर अत्याचार किया जाए तो तुम उसके बदले में अत्याचार न करो।  अगर तुम्हें धोखा दिया जाए तो तुम धोखा देने की कोशिश न करो।  अगर तुम्हारी प्रशंसा की जाए तो तुम फ़ौरन खुश न हो।  यदि तुम्हारी बुराई की जाए तो तुम दुखी न हो।

इमाम के काल में शासकों की ओर से जनता पर जब कोई अत्याचार किया जाता था तो वे इसपर ख़ामोश नहीं बैठते थे।  वे उचित अवसर पर शासकों के अत्याचारों और उनके क्रियाकलापों के बारे में लोगों को अवश्य बताते थे।  इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का मानना था कि लोगों के कल्याण या उनके विनाश में शासकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  वे कहते थे कि अगर शासक ईमानदार हो तो वह समाज को अच्छाई की ओर ले जा सकता है।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के काल में बनी उमय्या के पांच शासक रहे जिनमें से हरएक, दूसरे की तुलना में अत्याचारी और क्रूर था।  इनमे से अन्तिम शासक “हेशाम बिन अब्दुल मलिक” था।  वह अन्य शासकों की तुलना में बहुत अधिक अत्याचारी और क्रूर था।  उसको जनता में इमाम की लोकप्रियता बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।

वह किसी भी स्थिति में इमाम को सहन नहीं कर पा रहा था।  उसने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने के उद्देश्य से इमाम को मदीने से अपने शासन केन्द्र शाम अर्थात बतमान सीरिया बुलवाया।  जब इमाम वहां पहुंचे तो लोग उनके पास आने लगे और इमाम भी लोगों का मार्गदर्शन करने लगे।

जब हेशाम ने यह देखा तो वह इमाम बाक़िर को मदीना वापस भेजने पर विवश हुआ।  मदीना भेजने के बाद उसने यह सोचा कि इनका जीवित रहना मेरे लिए मौत के समान है।  एसे में उसने इमाम बाक़िर को अपने रास्ते से हटाने का निर्णय किया।  हेशाम बिन अब्दुल मालिक ने ज़हर देकर आज ही के दिन इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को शहीद करवा दिया।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर आपकी सेवा में पुनः संवेदना प्रकट करते हैं।  कार्यक्रम के अंत में इमाम का एक कथन पेश कर रहे हैं।  इमाम बाक़रि अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जिस व्यक्ति में तीन चीज़ें पाई जाती हों तो समझ लो कि उसका ईमान पक्का है।

पहली बात यह है कि जब वह खुश हो तो यह खुशी उसे किसी बुरे काम की ओर प्रेरित न करे।  दूसरी बात यह कि जब उसे ग़ुस्सा आए तो यह ग़ुस्सा उसे सच के रास्ते से न हटाए।  तीसरे यह कि जब उसके पास शक्ति या सत्ता आ जाए तो वह अपने हक़ से अधिक उससे न ले।

Comments

comments