अब्दुल ग़नी खानः भारत की जंग ए आजादी का वह योद्धा जिसे उसके धर्म के कारण इतिहास में जगह नहीं मिली

इतिहास लिखने में धर्म और जाति के नाम पर बहुत पक्षपात हुआ जिसके कारण ना जाने कितने क्रान्तिकारीयो को आज़ादी के इतिहास में से या तो मिटा दिया या फिर उनके नाम को वो कद नही मिला जिसके वह लायक थे, स्वर्गीय मस्त राम कपूर और स्वर्गीय जैन ने आज़ादी के आन्दोलनो में जिन दस्तावेजों को घूम घूमकर संग्रहित किया व इनका संकलन कर जब इसका प्रकाशन किया तब उसमे बताया गया की आज़ादी में शामिल नायको के साथ किस प्रकार का भेदभाव हुआ!
ऐसे ही नायको में एक नाम अब्दुल ग़नी खान (ग़नी चाचा) का भी है, मध्यप्रदेश के सागर जिले के शनिचरी मौहल्ले से ताल्लुक़ रखने वाले यह नायक एक महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ एक आदर्श वादी सोच व धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के प्रमुख कट्टर समर्थक थे जिसका एक उदाहरण इस घटना से भी लगाया जा सकता है कि जब महात्मा गांधी ने आज़ादी के समय “गौ-वध-बंदी” का समर्थन किया तो अब्दुल ग़नी खान ने इसमे प्रमुख भूमिका निभाई!
अंग्रेजी हुकूमत गाय के नाम पर हिन्दू और मुस्लिम में टकराव पैदा कर एक दूसरे को दुश्मन बनाये रखना चाहती थी जिससे हिन्दू मुस्लिम आपस में लडते रहे व स्वतंत्रता आंदोलन से भटक जाये, जिसके कारण उसने भारत मे गाय के कत्ल के लिए दर्जनो कत्लखाने खुलवाये जिसमें एक कत्ल खाना सागर जिले के रतौना नामक गांव में अंग्रेजी हुकूमत तैयार करवा रही थी गौकशी के लिए, लेकिन धर्मनिरपेक्ष सोच के महानायक अब्दुल ग़नी,हिन्दू भाइयों की आस्था (गाय) को कत्ल होने से बचाने के लिए बाग़ी बनकर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बहादुर सिपाही की तरह खड़े हो गये और सागर जिले व आसपास के क्षेत्रों में घुमघूमकर हिन्दू व मुस्लिम साथियों को एक साथ खड़ा कर दिया जिसके कारण अंग्रेजो की घिनौनी मंशा पर पानी फिर गया व गौकशी के लिए खुलने वाला कत्ल खाना खुलने से पहले ही बंद हो गया!
अब्दुल ग़नी खान ने गाँव के मसायल पर साप्ताहिक अखबार “देहाती दुनिया” शुरू किया जिसे वह खुद लिखते थे, छापते थे व स्वयं ही बांटते भी थे! इस अखबार के माध्यम से वह गाँव गाँव में आज़ादी की अलख को जलाये रखना चाहते थे क्योंकि आँखों में आज़ाद भारत का सपना था, अंग्रेजी हुकूमत इनकी बग़ावत को समझ चुकी थी जिसके कारण ग़नी चाचा का एक लंबा समय जेलों में गुज़रा लेकिन महात्मा गांधी के विचारों के कट्टर समर्थक अब्दुल ग़नी खान को अंग्रेज झुका ना सके!
वर्ष 2009 में सागर के रघु ठाकुर ने जो अब्दुल ग़नी खान के बारे में अधिक जानकारी रखते थे, क्योंकि इनके पिता (भवानी सिंह) व “ग़नी चाचा” अंग्रेजी हुकूमत के समय साथ साथ जेल में रहे थे ने उस समय के तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री “अर्जुन सिंह” से केन्द्रीय विश्वविधालय के स्टेडियम का नाम अब्दुल ग़नी खान रखने का अनुरोध किया जिसे स्वीकार्य कर व कुछ समय बाद स्टेडियम का नाम अब्दुल ग़नी खान रख दिया गया, लेकिन अफसोस 8 वर्ष बाद आज भी वह स्टेडियम अभी तक अधुरा ही है! व इनके नाम पर बनने वाले स्टेडियम पर सियासत और फिराका़ परस्त ताकतों ने इस महान स्वतंत्रता सेनानी का ज़बरदस्त विरोध भी किया!
जिस आज़ादी के लिए अब्दुल ग़नी खान (ग़नी चाचा) ने एक लंबा समय जेलों में गुज़ारा, हिन्दू धर्म की आस्था को बचाने के लिए अंग्रेज़ो से बग़ावत की, गुलामी की ज़जीरो से अपने वतन को आज़ाद कराने के लिए गांव गांव जाकर लोगों को आज़ादी के आंदोलन के लिए खड़ा किया, धर्म निरपेक्ष सोच के लिए हिन्दू मुस्लिम को एक बनाए रखा आज आज़ाद भारत में उनके नाम पर भरपूर सियासत हुई जिसके कारण इतने वर्षो बाद भी वह स्टेडियम अधूरा ही है।