सामानियों ने 395 हि./1005 ई. तक यानी कुल 134 साल हुकूमत की। इस अवधि में उनके दस हुक्मरान हुए। इनमें सबसे प्रसिद्ध और अच्छा हुक्मरान इस्माईल सामानी (279 हि./892 ई. से 295 हि./907 ई.) था। इस्माईtjल बडा़ नेक मिज़ाज और न्याय प्रिय हुक्मरान था.
एक बार उसे मालूम हुआ कि शहर ‘रै’ में जिस तराज़ू के बाट में खिराज (ज़मीन का टैक्स) की चीज़ें तौली जाती हैं, वह निर्धारित वज़न से ज़्यादा वज़नी है। इस्माईल ने तुरन्त तहक़ीक़ की। सूचना सही निकली। अत: इस्माईल ने सही वज़न निर्धारित कर दिया और आदेश दे दिया कि विगत वर्षो में लोगों से जितना ज़्यादा खिराज लिया गया है, वह वापस कर दिया जाए।
नसर द्वितीय का काल ज्ञान एवं साहित्य की सरपरस्ती के कारण प्रसिद्ध है और उसके लड़के नूह प्रथम को यह प्रमुखता प्राप्त है कि उसने बुख़ारा में एक विशाल पुस्तकालय क़ायम किया था, जिसमें हर विषय और विद्या के अलग-अलग कमरे थे। मशहूर चिकित्सक और दार्शनिक इब्न सीना ने यहॉं की क़ीमती और नायाब किताबों की बडी़ प्रशंसा की है.
नूह प्रथम के लड़के मंसूर प्रथम के बारे में पर्यटक इब्न हैक़ल ने लिखा है कि वह अपने दौर का सबसे न्यायी हुक्मरान था। सामानियों का एक बडा़ कारनामा ख़ानाबदोश तुर्क क़बीलों के हमले से अपनी रियासत की हिफ़ाज़त करना है। इस उद्देश्य के लिए उत्तरी सीमाओं पर जगह-जगह चौकियॉं क़ायम थीं, जिन्हें ‘रिबात’ कहा जाता था। यहॉं जिहाद के लिए हर समय फ़ौजी तैयार रहते थे।
इसी काल में तुर्को में इस्लाम तेज़ी से फैला और चौथी सदी हिजरी के आखिर तक पूर्वी तुर्किस्तान यानी काशग़र और उससे लगे हुए इलाके़ में और उत्तरी तुर्किस्तान से लेकर रूस में वाल्गा की वादी में इस्लाम फैल गया। सामानी काल में ज्ञान एवं साहित्य की दिल खोलकर सरपरस्ती की गई। आलिमों में इल्मे कलाम (तर्कशास्त्र) के विशेषज्ञ ‘इमाम मंसूर मातरिदी’ (मृत्यु 330 हि./941 ई.) और सूफियों में अबू नसर सिराज (मृत्यु 378 हि./988 ई.) भी इसी काल से सम्बन्ध रखते हैं।
इनकी लिखी हुई किताब ‘अल-लमा’ अरबी में है और इल्मे तसव्वुफ़ की बुनियादी किताबों में गिनी जाती है. चौथी सदी हिजरी के पर्यटकों में तीन नाम प्रमुख हैं। एक असतख़री, दूसरा मुक़द्दसी और तीसरा इब्ने हौक़ल। उसके लेखों से पता चलता है कि ख़ुरासान और विशेषकर तुर्किस्तान ने उस काल में न केवल ज्ञान एवं साहित्य में बल्कि उद्योग-धंधे, व्यापार, कृषि और सभ्यता एवं संस्कृति में बहुत तरक़्क़ी की और यह क्षेत्र दुनिया के सबसे अधिक सभ्य देशों की पंक्ति में आ गया।
मुक़द्दसी लिखता है : ”ख़ुरासान और ”मावराउन-नहर” (तुर्किस्तान) का क्षेत्र तमाम रियासतों से ज़्यादा श्रेष्ठ है। देश धनी है और जीवन के संसाधनों से पूर्ण है। यहॉं हरे-भरे खेत, घने जंगल, नदी और खनिजों की खानें और फूलों के बगीचे हैं। लोग नेक, दानशील और मेहमानों का सत्कार करने वाले हैं। न्याय और इन्साफ़ क़ायम है। न बुरे काम होते है, न ही पुलिस की ज़्यादतियॉं हैं।
देशभर में मदरसे हैं और यहॉं आलिम सभी देशों से ज़्यादा हैं। फ़क़ीहों (इस्लामी विधान के ज्ञाता) को बादशाह का दर्जा हासिल है और धार्मिक जीवन सीधे रास्ते पर है। यह मुसलमानों की एक ऐसी रियासत है जिस पर गर्व कर सकते हैं और इस्लाम का पौधा यहॉं हरा-भरा है। सामानी सुचरित्र हैं। लोगों में एक कहावत मशहूर है कि यदि कोई पेड़ सामानियों से बग़ावत पर उतारू हो जाए तो बिना सूखे नहीं रह सकता।
समरक़ंद, बुख़ारा, ख्वारिज़्म, बलख़, मरू, हरात, नेशापुर और रै सामानी रियासत के सबसे ख़ुशहाल शहर थे। इन शहरों के बारे में मुक़द्दसी ने लिखा है : ”सम्पूर्ण पूर्वी क्षेत्र में समरक़ंद से ज़्यादा फलता-फूलता कोई शहर नहीं। नेशापुर पूर्व का सबसे बडा़ शहर है और इस्लामी दुनिया में उसका जोड नहीं। बलख़ जन्नते ख़ुरासान (ख़ुरासान की जन्नत) है।
बग़ीचे शहर को घेरे हुए हैं और शहर के अधिकतर रास्तों के साथ नहरें और पानी के नल गुज़रते हैं। ‘रै’ सफ़ाई और ख़ूबसूरती में बेमिसाल है। यहॉं आलिम बहुत हैं। कोई वाइज़ (धर्मोपदेशक) ऐसा नहीं जो क़ानूने इस्लाम से वाकिफ़ न हो और कोई हाकिम ऐसा नहीं जो आलिम न हो। मोहतसिब सच्चाई के लिए मशहूर हैं। नगर के वक्ता के भाषणों में साहित्य की मिठास है। रै इस्लामी सभ्यता का एक ऐसा नमूना है जिस पर गर्व किया जा सकता है.