निच्लाउल में प्रशासनिक कदम
गुजरात के निच्लाउल में इस साल दुर्गा पूजा‑दशहरा की तैयारी शुरू होते ही प्रशासन ने कई सख़्त निर्देश जारी किए। निच्लाउल नगर निगम ने घोषणा की कि सभी पंडालों में डीजे, लाइट शो या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की अनुमति नहीं होगी। केवल बांसुरी, तबला और ढोलक जैसे पारम्परिक वाद्य ही उपयोग किए जा सकेंगे। यह कदम पिछले वर्षों में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण और शोरगुल वाली घटनाओं को रोकने के लिए उठाया गया माना जा रहा है।
इसके अलावा, ध्वनि स्तर को 70 डेसिबल तक सीमित करने के लिए हर पंडाल में साउंड लेवल मीटर लगाने का निर्देश दिया गया। यदि सीमा पार हुई तो जुर्माना और पंडाल बंद करने का खतरा रहेगा। दहन सामग्री के उपयोग पर भी कड़ी रोक के साथ, केवल कोयले की थैली और बायो‑डाइगैस से ही दीप जलाने की अनुमति होगी।
- डिजिटल स्क्रीन, LED लाइटिंग और धुंवनुमा फव्वारे प्रतिबंधित।
- भारी ध्वनि उत्पन्न करने वाले स्पीकरों की ऊँचाई 10 मीटर से अधिक नहीं हो सकती।
- पुजारी और आयोजनकर्ता को हर दिन 5 बजे तक स्थानीय पुलिस को रिपोर्ट देनी होगी।

स्थानीय प्रतिक्रिया और असर
इन प्रतिबंधों पर स्थानीय निवासी और धार्मिक समूहों की प्रतिक्रियाएँ मिश्रित हैं। कई पंडितों ने कहा कि पारम्परिक संगीत पर ज़ोर देना संस्कृति को बचाने की दिशा में सही कदम है। वहीं कुछ युवा वर्ग ने कहा कि डीजे और लाइट शो के बिना उत्सव का माहौल अधूरा महसूस होगा।
शहर के व्यावसायिक वर्ग ने भी अपनी चिंताएँ जताईं – ध्वनि प्रतिबंध से जगहें खाली हो सकती हैं, जिससे नगर के छोटे व्यवसायों की आय घट सकती है। इसके मद्देनज़र, प्रशासन ने कहा कि सुरक्षा के लिए ये उपाय अनिवार्य हैं और भिन्न‑भिन्न क्षेत्रों में पर्यावरणीय संरक्षण को भी ध्यान में रखा गया है।
स्थानीय पुलिस ने बताया कि प्रतिबंध लागू होने के बाद उन्होंने पहले ही दो‑तीन पंडालों में अनधिकृत ध्वनि की जांच शुरू कर दी है और जुर्माने की प्रक्रिया को तेज़ किया है। इस तरह के कदम निच्लाउल के प्रशासन को अन्य शहरों में भी अनुकरणीय माना जा रहा है, जहाँ साल दर साल ध्वनि व प्रदूषण की समस्याएँ बढ़ती जा रही थीं।