उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले ज़ी न्यूज़ पर एक पाकिस्तानी भगोड़े “तारेक फतेह” को बैठा कर “फतेह का फतवा” दिलवाया गया जबकि उस शराबी और ऐय्याश कनाडाई नागरिक को कहीं से भी किसी फतवा को देने का अधिकार नहीं था। तीन तलाक का मुद्दा उछाला गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पद की गरिमा को ज़मीदोज़ करके चुनावी रैलियों में तीन तलाक को देश की त्रासदी की तरह सामने लाते रहे।
                  तो उच्चतम न्यायालय ? तीन तलाक पर प्रतिदिन 10 दिनों की सुनवाई का फैसला करता है , हर दिन की सुनवाई में अजीबोगरीब टिप्पणी की जाती हैं और फिर अगले दिन समाचार पत्रों और इलेक्ट्रानिक मीडिया में उसी दिन सुर्खियां बनती हैं , डिबेट कराई जाती है , फिर उच्चतम न्यायालय 7 दिन में ही सुनवाई समाप्त करके फैसला सुरक्षित रख देता है।
                  आज तक वह फैसला सामने नहीं आता , लगभग 4 महीने हो गये , उच्चतम न्यायालय फैसला देना भूल गया , क्युँ भूल गया ? क्युँकि वह फँस गया इस मामले की सुनवाई करके , अपनी लाज बचाने के लिए उसे सुरक्षित रखा फैसला घोंटना पड़ गया। लगातार प्रोपगंडे और भारतीय लोकतंत्र के तीन स्तम्भ , न्यायपालिका , कार्यपालिका और मीडिया के सर्वोच्च पद के लोगों द्वारा तीन तलाक को लेकर मुसलमानों को बदनाम करने की कोशिशें आज भोथरी हो गयीं।
                  अदालत गयीं चंद नास्तिक औरतों के अतिरिक्त भारत की तीनों व्यवस्थाओं की लाख चीख पुकार के बावजूद कोई और मुस्लिम महिला सामने ना आ सकी जिसे इस इस्लामिक व्यवस्था से परेशानी है। क्षुब्ध प्रधानमंत्री ने अब लाल किले के प्राचीर से अपना घटियापन दिखाते हुए फिर तीन तलाक का राग अलापा , और वह प्रधानमंत्री जिसने अपनी पत्नी को लात मार कर घर से बाहर कर दिया हो वह मुस्लिम औरतों को हक दिलाने की बात करता है।
                  दरअसल नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के पद की शपथ लेने के बहुत पहले सैकड़ों बार संघ के जहरीले कार्य करने की शपथ ली है , वह प्रधानमंत्री के पद की बिना राग द्वेष के कार्य करने की शपथ का पालन करने की जगह संघ की ली हुई शपथ का पालन कर रहे हैं। काश की प्रधानमंत्री की जहरीली आँखो से दिन प्रतिदिन ससुराल में मार दी जा रही बहन बेटियाँ भी दिखतीं , वह नहीं दिखेंगी क्युँकि इससे उनको अपने वोटरों को ध्रुवीकरण करने का अवसर नहीं मिलेगा। खेल समझिए
 
 