हर जगह कमज़ोर होती जा रही भाजपा की हो सकती पाँचों राज्यों में हार

0
1
शेयर करें
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  

अगले माह से होने वाले चुनाव में केंद्र में सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. भाजपा जहां कुछ महीनों पहले ये उम्मीद कर रही थी कि देश के सबसे एहम राज्य उत्तर प्रदेश में सरकार बनाएगी वहीँ अब इसके क्षेत्रीय नेता ऑफ़-रिकॉर्ड मानने लगे हैं कि पार्टी की हार तय है कुछ यही स्थिति भाजपा गठबंधन की पंजाब में है जहां शिरोमणि अकाली दल रोज़ पीछे जा रहा है और अब लड़ाई आप और कांग्रेस की रह गयी है. गोवा में कुछ स्थिति बेहतर ज़रूर है लेकिन वहाँ भी कोई मज़बूती से नहीं कह पा रहा कि भाजपा जीत ही जायेगी और नार्थ-ईस्ट के राज्य मणिपुर में कांग्रेस के जीतने की प्रबल संभावना है. कुल मिला कर एक उत्तराखंड ही ऐसा राज्य है जहां भाजपा और कांग्रेस का कड़ा मुक़ाबला है.

पंजाब: यहाँ पर स्थिति शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन के लिए बहुत ख़राब है. स्थिति के ख़राब होने का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक रैली के दौरान गृह मंत्री राजनाथ सिंह को यहाँ तक बोलना पड़ गया कि चाहें तो आप वोट ना दें लेकिन आप उन(प्रकाश सिंह बदल) पर जूता ना फेंके. इसके अलावा जो ओपिनियन पोल आ रहे हैं वह भी भाजपा गठबंधन के लिए अच्छी ख़बर नहीं ला रहे. ख़ुद पार्टी के नेता भी अन्दर अन्दर ये मान चुके हैं कि उनकी हार हो चुकी है बस किसी तरह सम्मानजनक स्थिति में पहुँचने की क़वायद पार्टी के नेता कर रहे हैं. हालाँकि गठबंधन के कुछ नेताओं को यक़ीन है कि अंतिम समय में कुछ करिश्मा होगा. फिर ये बात भी सच है कि राजनीति में करिश्मे होंगे, ये सोच कर राजनीति नहीं की जाती.

गोवा: गोवा एक ऐसा प्रदेश है जहां पर पार्टी कुछ मज़बूत नज़र आ रही है लेकिन यहाँ भी उसे आम आदमी पार्टी के एल्विस गोम्स से ख़ासी टक्कर मिल रही है. मनोहर पर्रीकर के केंद्र में आ जाने के बाद भी राज्य में भाजपा कमज़ोर हुई है. देश के सबसे छोटे राज्य में भाजपा अभी भी मुक़ाबले में बनी हुई है.

उत्तराखंड: भाजपा यहाँ कुछ बेहतर स्थिति में नज़र आ रही है लेकिन आम लोगों की राय में कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री हरीश रावत पिछले दिनों चुनाव के मद्देनज़र अच्छी ख़ासी मेहनत कर रहे हैं वहीँ नोटबंदी की वजह से राज्य के लोगों को हुई भारी तकलीफ़ भी उन्हें भाजपा से दूर कर रही है. फिर भी इस राज्य में भाजपा कड़े मुक़ाबले में है.

मणिपुर: नार्थ-ईस्ट के इस राज्य में भाजपा की स्थिति पिछले दिनों बेहतर हुई है और कुछ ओपिनियन पोल की मानें तो भाजपा यहाँ अपने दम पर सरकार में आ सकती है. हालाँकि इस बारे में अभी भी कुछ कहना मुश्किल ही है क्यूंकि मणिपुर अक्सर चौंकाने वाले नतीजे देता रहता है. कुल 60 सीटों वाले इस राज्य में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का भी थोडा बहुत ज़ोर रहता है. राज्य के भाजपा नेता लेकिन आश्वस्त है कि कई विकल्प होने के बावजूद भी लोग उनकी पार्टी को चुनेंगे.

उत्तर प्रदेश: देश के सबसे अधिक आबादी वाले और सबसे अधिक लोकसभा सीट वाले इस राज्य में पार्टी बहुत दिनों से वापसी को लेकर कोशिशें जारी रखे है. 2002 से लेकर हर चुनाव से पहले पार्टी के नेताओं का दावा रहता है कि इस बार वह बहुमत से सरकार में आ रहे हैं लेकिन हर बार उनकी पार्टी तीसरे पायदान पर रहती है. एक समय पर उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी हो जाने के बावजूद भी पार्टी दूसरे नंबर पर आने को तरस गयी है. पार्टी की सबसे बड़ी समस्या इसके नेताओं की महत्वाकांक्षा है. लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा के पास यूं तो बहुत वोट नहीं हैं और शहर के बाहर छोडिये शायद शहर में ही बहुत से लोग उन्हें नहीं जानते लेकिन वह भी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में हैं. कुछ ऐसी ही दावेदारी में राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को कहा जाता है. इसके अलावा केशव प्रसाद मौर्या भी अपना ही वर्चस्व बढाने में लगे हैं तो आदित्यनाथ जैसे नेता हैं जो हमेशा विवाद में तो रहते हैं लेकिन उनके साथ के लोग भी उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं. कुछ यही हाल वरुण गाँधी का है. सब मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं लेकिन सब ये भी चाहते हैं कि दूसरा आगे ना बढ़ने पाए. इस चक्कर में पार्टी कभी मज़बूत नहीं हो पाती. 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश में 71 सीटें मिल तो गयीं लेकिन उसके बाद केंद्र सरकार में बनी पार्टी की सरकार से लोग ख़ुश नहीं हैं. इन सबके अलावा पार्टी को दलित विरोधी और मुस्लिम विरोधी पार्टी माना जाता है जिस वजह से पार्टी को इन जातियों के वोट तो मिलते ही नहीं हैं या फिर शायद बहुत कम मिलते हैं और उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जहां पर दलित-मुसलमान दोनों ही बड़ी संख्या में मौजूद हैं.इसके अलावा भाजपा ने उन नेताओं को भी उत्तर प्रदेश में टिकट दे दिए हैं जिन पर अपराध के संगीन मामले दर्ज हैं. हालाँकि इस पर भाजपा के नेता ये कह देते हैं कि वह तो सभी ने टिकट दिए हैं लेकिन फिर भाजपा का सुशासन लाने का दावा फीका पड़ जाता है. पार्टी में अब परिवारवाद भी ख़ूब बढ़ गया है. कुल मिला कर भाजपा की स्थिति उत्तर प्रदेश में पहले से अच्छी नहीं और ख़राब होने जा रही है. हर बार की तरह इस बार भी पार्टी तीसरे ही नंबर पर रहने वाली है या फिर हो सकता है दूसरे पर आ जाए लेकिन भाजपा अभी भी प्रदेश में 100 सीटों के आंकड़े से बहुत दूर है.

Comments

comments

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here