इस्लाम में महिलाओं के सम्मान के बारे में हज़रत मुहम्मद साहब ने ये फ़रमाया था

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इस्लाम में महिलाओं के सम्मान को लेकर आधुनिक लेखको ने तरह तरह की भ्रांतियां फैला दी हैं। जिसके कारण इस्लाम धर्म को लेकर भी लोगों की ये धारणा है कि वहां नारी की बहुत उपेक्षा होती है, मुसलमान एक से ज़ाया शादियां करते हैं और नारी को मात्र भोग की वस्तु समझा जाता है। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

लेकिन सच्चाई इससे एकदम अलग है। ये सही है कि लोग इस्लाम की ग़लत व्याख्या करके इसका फ़ायदा उठाते हैं लेकिन इस्लाम में नारी को हव्वा की बेटी को सम्मान के योग्य समझा गया है और उसको मर्द के समान ही अधिकार दिए गए हैं।

इस्लाम में महिलाओं का स्थान

इस्लाम में महिलाओं को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है और उन्हें जीवन के हर भाग में महत्व दिया गया है। माँ, पत्नी, बेटी, बहन, विधवा और चाची-मौसी के रूप में भी उसे सम्मान दिया गया है।

माँ के रूप में सम्मान

क़ुरआन में साफ कहा गया है कि माँ के प्रति कृतज्ञ होने का मतलब है मेरे (ख़ुदा) के प्रति कृतज्ञ होना। क़ुरआन में लिखा है-“हमने मनुष्य को उसके अपने माँ-बाप के मामले में ताकीद की है – उसकी माँ ने निढाल होकर उसे पेट में रखा और दो वर्ष उसके दूध छूटने में लगे – मेरे प्रति कृतज्ञ हो और अपने माँ-बाप के प्रति भी क्योंकि अंततः तुम्हें मेरी ओर ही आना है।

कुरआन ने यह भी कहा गया है- माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। अगर उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बूढ़े हो जाते हैं तो उन्हें ‘उँह’ तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टा्पूर्वक बात करो और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ फ़ैलाए रखो और कहो, “मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।

इस बारे में पैग़बर मुहम्मद एक वाक़्या सुनाते हैं। एक व्यक्ति उनके पास आया और पूछा कि मेरे अच्छे व्यवहार का सब से ज़्यादा अधिकारी कौन है?

पैग़बर ने फरमायाः तुम्हारी माँ…।
उसने पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारी माँ…।
पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारी माँ…।
पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारे पिता…।
यानी मां को पिता की तुलना में तीन गुना अधिक अधिकार प्राप्त है। हदीस में लिखा है कि माता पिता की अवज्ञा का मतलब अल्लाह की अवज्ञा है।

पत्नी के रूप में सम्मान

क़ुरआन में लिखा है कि पुरुष को अपनी पत्नी से भला व्यवहार करना चाहिए। पत्नी में कोई एक बुरी आदत की वजह से पति को उसे बुरा नहीं समझना चाहिए क्योंकि हो सकता है उसमें कुछ अच्छी आदतें बी हों।

बेटी के रूप में सम्मान

पैग़बर मुहम्मद ने फरमाया है कि “जिसने दो बेटियों का पालन-पोषन कर उनका अच्छी जगह निकाह करवा दिया वह इन्सान क़यामत के दिन हमारे साथ होगा। जिसने बेटियों की परवरिश के दैरान कष्ट उठाया और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रहा तो यह उसके लिए नरक के दरवाज़े बंद कर देंगी।

बहन के रूप में सम्मान

क़ुरआन में लिखा है कि अगर किसी की तीन बेटियाँ या तीन बहनें हैं और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता है तो उसे स्वर्ग मिलेगा।

विधवा के रूप में सम्मान

इस्लाम ने विधवाओं की भावनाओं का न सिर्फ़ बड़ा ख़्याल रखा गया है बल्कि उनकी देख भाल और उन पर ख़र्च करने को बड़ा पुण्य बताया गया है। पैग़बर मुहम्मद ने कहा है: ”विधवाओं और निर्धनों की देख-रेख करने वाला ऐसा है मानो वह हमेशा दिन में रोज़ा रख रहा हो और रात में इबादत कर रहा है।

ख़ाला यानी के ( मौसी ) के रूप में सम्मान

इस्लाम ने खाला के रूप में भी महिलाओं को सम्मनित करते हुए उसे मां का दर्जा दिया गया है। साभार: फेसबुक

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