मुस्लिम योद्धा, जो आखिरी सांस तक झांसी की रानी ‘लक्ष्मी बाई’ के लिये लड़े

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वैसे तो सारी दुनिया झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी से परिचित है और इनके बारे मे बहुत गाथाएं भी प्रचलित हैं. जिनको आमतौर पर सभी लोग जानते हैं, लेकिन ये बात आज तक एक रहस्य की तरह ही दबी रह गयी के उनके विश्वास पात्रों में से कुछ मुस्लिम योद्धा भी थे और वे लोग कौन कौन हैं यहाँ कुछ नाम आपको बताते हैं.

उमर मोहम्मद
जनाब उमर मोहम्मद जिन्होंने अपने निडर और साहसिक बहादुरी के कारनामों से अंग्रेजों के हौंसले पस्त कर दिए थे, और ये महारानी लक्ष्मीबाई के बहुत विश्वशनीय लोगों में से एक हुआ करते थे, और इन्होने अपनी आखरी सांस तक महारानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया !

ग़ौस मुहम्मद ख़ान
ये जनाब रानी लक्ष्मीबाई के मुख्य तोपांची मतलब के तोप चलाने वाले थे और इनकी बेमिसाल बहादुरी से ख़ुश हो कर रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हे सोने का कड़ा बतौर इनाम दिया था.. उनका एक 5000 सिपाही फ़ौजी दस्ते का गुट उस वक़्त अंग्रेज़ों के हाथ बिक गया उस दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने ग़ौस मुहम्मद ख़ान से पूछा के अब इन अंग्रेज़ो से जंग कैसे लड़ी जाएगी ? उनकी इस बात पर गौस मुहम्मद ने कहा था ‘जैसे बहादुर और सूरमा लड़ते हैं’ और इसके बाद सारी दुनिया जानती है के रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों से कैसी जंग लड़ी थी।

ख़ुदा बख़्श बशारत अली
रानी लक्ष्मीबाई के फ़ौज मे कई वैसे तो बहुत दस्ते हुआ करते थे, और सबसे बड़े दस्ते के ये कमांडर ख़ुदा बख़्श बशारत अली थे और उस वक़्त इनके साथ 1500 से भी ज़्यादा सिर्फ पठानों की एक टुकड़ी हुआ करती थी और इन्होने भी रानी लक्ष्मीबाई के नमक का बदला अपनी आखरी दम तक चुकाया और दिलोजान से जंगे मैदान मे डटे रहे।

सरदार गुल मुहम्मद ख़ान
ये उन लोगों में से हैं जो रानी लक्ष्मीबाई के मुख्य अंगरक्षक थे, और अपनी आख़री सांस तक इन्होने रानी लक्ष्मीबाई की जान की हिफ़ाज़त की… और गुल मोहम्मद ने अपने जीते जी कभी रानी लक्ष्मीबाई पर आंच न आने दी, यहाँ तक के जब अंग्रेज़ों से लड़ते वक़्त रानी लक्ष्मीबाई ज़ख़्मी हो गईं थीं तो रानी लक्ष्मीबाई को इन्होने ही बाबा गंगा दास की कुटिया तक पहुंचाया था जिसमे इन्होने सरदार राम चंद्रा की भी मदद ली थी इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने आख़री सांस ली।

नवाब अली बहादुर ख़ान
ये जनाब बांदा स्टेट के नवाब जो अली बहादुर (द्वितीय) के नाम से जाने जाते थे. और इनमे और रानी लक्ष्मीबाई में भाई-बहन का रिश्ता था। और ये लक्ष्मीबाई के मुंहबोले भाई कहलाते थे। जब रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों के साथ आखरी लड़ाई हुयी तो उस लड़ाई में भी उनका ये मुस्लिम भाई उनके साथ में ही था और आपको एक बात जो बहुत ही कमलोग जानते हैं के रानी लक्ष्मीबाई का अंतिम संस्कार भी इस मुंहबोले भाई ने की करवाया था। उस वक़्त अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान ग्वालियर के महाराजा सिंधिया, झांसी की रानी के खिलाफ थे, जबकि तात्या टोपे और बांदा के नवाब उनके साथ थे। रानी लक्ष्मीबाई और नवाब अली बहादुर का रिश्ता भाई बहन का था वे उन्हें राखी भी बांधती थीं।

फिर अंग्रेज़ों ने इस लड़ाई के बाद नवाब बहादुर को कैद कर महू भेज दिया था। इसके बाद इन्हें इंदौर में नजरबंद करके रखा गया था। इसके बाद महाराजा बनारस के दबाव में अंग्रेजों ने उन्हें बनारस भेज दिया था, जहां उनका देहांत हो गया। और ये भाई-बहन मतलब के लक्ष्मीबाई और नवाब बहादुर के भाई-बहन के संबंध की परंपरा आज भी चली आ रही है और झांसी के बहुत हिन्दू-मुस्लिम परिवार इस पवित्र रिश्ते को निभा रहे हैं! वहां की कई हिन्दू बहनें आज भी मुस्लिम भाइयों को राखी बांधती हैं।

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