जब बुख्तेनस्सर बादशाह ने बैतुल मुक़द्दस को वीरान किया और बनी इस्राइल को…

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या उसकी तरह जो गुजरा एक बस्ती पर*६* और वह ढई पड़ी थी अपनी छतों पर*७* बोला इसे कैसे जिलाएगा अल्लाह इसकी मौत के बाद, तो अल्लाह ने उसे मुर्दा रखा सौ बरस फिर ज़िन्दा कर दिया, फ़रमाया तू यहाँ कितना ठहरा, अर्ज़ की दिन भर ठहरा हूंगा या कुछ कम, फ़रमाया नहीं.

तुझे सौ बरस गुज़र गए और अपने खाने और पानी को देख कि अब तक बू न लाया और अपने गधे को देख कि जिसकी हड्डियां तक सलामत न रहीं, और यह इसलिये कि तुझे हम लोगों के वास्ते निशानी करें और उन हड्डियों को देख कैसे हम उन्हें उठान देते फिर उन्हें गोश्त पहनाते हैं. जब ये मामला उस पर ज़ाहिर हो गया बोला मैं ख़ूब जानता हूँ कि अल्लाह सब कुछ कर सकता है ( २५९ ) { सूर-ए-बक़रह, पारा- ३, आयत संख्या- २५९, रुकु- ३५ }

तफ़सील बहुतों के अनुसार यह घटना हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम की है और बस्ती से मुराद बैतूल मक़्दिस है. जब बुख्तेनस्सर बादशाह ने बैतूल मक़्दिस को वीरान किया और बनी इस्राइल को क़त्ल किया, गिरफ़्तार किया, तबाह कर डाला, फिर हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम वहाँ गुज़रे.

आप के साथ एक बर्तन खजूर और एक प्याला अंगूर का रस और आप एक गधे पर सवार थे. सारी बस्ती में फिरे, किसी शख्स को वहाँ न पाया. बस्ती की इमारतों को गिरा हुआ देखा तो आप ने आश्चर्य से कहा ” कैसे जिलाएगा अल्लाह उसकी मौत के बाद ” और आप ने अपनी सवारी गधे को वहाँ बाँध दिया, और आप ने आराम फ़रमाया.

उसी हालत में आप की रूह क़ब्ज़ कर ली गई और गधा भी मर गया. यह सुबह के वक़्त की घटना है. उससे सत्तर बरस बाद अल्लाह तआला ने फ़ारस के बादशाहों में से एक बादशाह को मुसल्लत किया और वह अपनी फ़ौजें लेकर बैतूल मक़्दिस पहुंचा और उसको पहले से भी बेहतर तरीक़े पर आबाद किया और बनी इस्राइल में से जो लोग बाक़ी रहे थे, अल्लाह तआला उन्हें फिर यहाँ लाया और वो बैतूल मक़्दिस और उसके आस पास आबाद हुए और उनकी तादाद बढती रही.

इस ज़माने में अल्लाह तआला ने हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को दुनिया की आँखों से छुपाये रखा और कोई आप को न देख सका. जब आप की वफ़ात को सौ साल गुज़र गए तो अल्लाह तआला ने आप को ज़िन्दा किया, पहले आँखों में जान आई, अभी तक सारा बदन मुर्दा था, वह आप के देखते देखते ज़िन्दा किया गया.

यह घटना शाम के वक़्त सूरज डूबने के क़रीब हुई. अल्लाह तआला ने फ़रमाया, तुम यहाँ कितने दिन ठहरे. आप ने अन्दाज़े से अर्ज़ किया कि एक दिन या कुछ कम. आप का ख़याल यह हुआ कि यह उसी दिन की शाम है जिसकी सुबह को सोए थे. फ़रमाया बल्कि तुम सौ बरस ठहरे. अपने खाने और पानी यानी खजूर और अंगूर के रस को देखो कि वैसा ही है उसमें बू तक न आई और अपने गधे को देखो.

देखा कि वह मरा हुआ था, गल गया था, अंग बिखर गए थे, हड्डियां सफ़ेद चमक रही थीं. आप कि निगाह के सामने उसके अंग जमा हुए, हड्डियों पर गोश्त चढ़ा, गोश्त पर खाल आई, बाल निकले, फिर उसमें रूह फूंकी गई. वह उठ खडा हुआ और आवाज़ करने लगा. आप ने अल्लाह तआला की क़ुदरत का अवलोकन किया और फ़रमाया मैं ख़ूब जानता हूँ कि अल्लाह तआला हर चीज़ पर क़ादिर है.

फिर आप अपनी उसी सवारी पर सवार होकर अपने मोहल्ले में तशरीफ़ लाए. सरे अक़दस और दाढ़ी मुबारक के बाप सफ़ेद थे, उम्र वही चालीस साल की थी, कोई आप को पहचानता न था, अन्दाज़े से अपने मकान पर पहुंचे. एक बुढ़िया मिली जिसके पाँव रह गए थे, वह अन्धी हो गई थी. उसने आप को देखा था.

आप ने उससे पूछा कि यह उज़ैर का मकान है, उसने कहा हाँ, और उज़ैर कहाँ, उन्हें गायब हुए सौ साल गुज़र गए. यह कहकर ख़ूब रोई. आप ने फ़रमाया, मैं उज़ैर हूँ. उसने कहा सुबहानल्लाह, यह कैसे हो सकता है, आप ने फ़रमाया, अल्लाह तआला ने मुझे सौ साल मुर्दा रखा, फिर ज़िन्दा किया. उसने कहा, हज़रत उज़ैर दुआ की क़ुबुलियत वाले थे, जो दुआ करते क़ुबूल होती.

आप दुआ कीजिये कि मैं देखने वाली हो जाऊं, ताकि मैं अपनी आँखों से आप को देखूं. आप ने दुआ फ़रमाई वह आँखों वाली हो गई. आप ने उसका हाथ पकड़कर फ़रमाया, उठ ख़ुदा के हुक्म से. यह फरमाते ही उसके मारे हुए पाँव दुरुस्त हो गए. उसने आप को देखकर पहचाना और कहा, मैं गवाही देती हूँ कि आप बेशक उज़ैर हैं.

वह आप को बनी इस्राइल के मोहल्ले में ले गई. वहाँ एक बैठक में आप के बेटे थे, जिनकी उम्र एक सौ अट्ठारह साल की हो चुकी थी और आप के पोते भी, जो बूढ़े हो चुके थे. बुढ़िया ने बैठक में पुकारा कि यह हज़रत उज़ैर तशरीफ़ ले आए. बैठक में मौजूद लोगों ने उसे झुठलाया. उसने कहा मुझे देखो, आप की दुआ से मेरी यह हालत हो गई.

लोग उठे और आप के पास आए. आप के बेटे ने कहा कि मेरे वालिद साहब के कन्धों के बीच काले बालों का एक हिलाल था. जिस्मे मुबारक खोल कर दिखाया गया तो वह मौजूद था. उस ज़माने में तौरात की कोई प्रतिलिपि यानी नुस्खा न रहा था. कोई उसका जानने वाला मौजूद न था. आप ने सारी तौरात ज़बानी पढ़ दी.

एक शख्स ने कहा कि मुझे अपने वालिद से मालुम हुआ कि बुख्तेनस्सर के अत्याचारों के के बाद गिरफ़्तारी के ज़माने में मेरे दादा ने तौरात एक जगह दफन कर दी थी उसका पता मुझे मालूम है. उस पते पर तलाश करके तौरात का वह नुस्खा निकाला गया और हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम ने अपनी याद से जो तौरात लिखाई थी, उससे मुक़ाबला किया गया तो एक अक्षर का फ़र्क़ न था.

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