एक बुजुर्ग क़ातिल ईरानी हकीम का हैरतअंगेज़ क़िस्सा, जो बादशाह को ज़हर देने…

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खुद पर यकीन और सामने वाले के जहन को पढ़ने की सलाहियत हो तब एक इंसान सिकंदर बनता है. सिकंदर की रफ़्तार और जीत के सिलसिले पर उस वक़्त रोक लग गयी जब उसे फारस में जंग के दरम्यान तेज़ बुखार ने गिरफ्त में ले लिया।

बुखार की शिद्दत यह थी कि सिकंदर ए आज़म को किसी रुख चैन नही मिल रहा था , वह नँगी तलवार लिए घायल भेड़िया की तरह खेमे के पर्दे फाड़ रहा था , और चीख रहा था, कई बेहतरीन तबीब जो उसका इलाज़ करने में नाकाम हो गए उनकी गर्दने उड़ा चूका था.

इस वजह से अब न कोई हकीम डर की वजह से आ रहा था और न सिकंदर को चैन आ रहा था, अचानक एक बुजुर्ग ने सिकंदर के एक सिपाही से संपर्क किया और कहा कि वह बादशाह को ठीक कर सकता है. सिपाही ने कहा , दिवाने , ख़ुदकुशी को निकले हो क्या , बादशाह कितने ही ताबिबो को मार चूका है।

हाक़िम बुजुर्ग ने कहा अगर तू मुझे तुरंत नही ले गया तो मै तेरी शिकायत करूँगा। सिपाही डर की वजह से हाक़िम को लेकर चल दिया , और खेमे के सामने खड़े सिपाहियों के सुपर्द करदिया। सारा माजरा सुनने के बाद दरवाजे पर खड़े सिपाही ने अंदर जाने की हिम्मत न हुई तो बाहर से तेज़ आवाज़ में बोला , बादशाह सलामत कोई तबीब आये हैं जो आपका इलाज़ करना चाहते हैं।

बादशाह बोला जल्दी अंदर भेजो। हाकिम ने अंदर जा कर देखा तो पूरा खेमा तहस नहस हुआ पड़ा है , बादशाह कर्ब से चीख रहा है। तबीब ने बादशाह को शांत किया और नब्ज़ देख कर दवाई पीसना शुरू कर दिया, तबीब बार बार सिकंदर की तरफ देखता और दवाई पीसता रहा , सिकंदर भी उसे एक टक ताके जा रहा था।

जब दवाई तैयार हुई तो उसे छान कर अर्क निकाल कर एक प्याले में बादशाह को पीने के लिये दिया , सिकंदर होंटों की तरफ प्याले को ले जा रहा था कि एक सैनिक बदहवासी लिए खेमे में घुसा , सिकंदर गुस्से से तिलमिला गया , सिपाही बुरी तरह हांफ रहा था और कुछ भी बोलने की हालत में नही था , देख कर साफ़ पता चल रहा था कि मुसलसल कई रातें चलने से उसका यह हाल है.

बस उसने बेहोशी से पहले हाथ में पकड़ा खत सिकंदर को दे दिया। अब सिकंदर एक हाथ में प्याला था और एक हाथ में खत ,, वह कभी खत को पढ़ने लगता तो कभी हकीम की तरफ देखने लगता। हाकिम ने उत्सुकता से पूछा , बादशाह सलामत क्या लिखा है इस खत में।

सिकंदर ने वह खत हकीम को दिया और प्याला पि लिया। हकीम ने खत पढ़ा तो ऑंखें खुली रह गयी। खत हकीम के बारे में ही था , जिसमे लिखा था के तबीब के रूप में एक फ़ारसी (ईरानी) जासूस आपको ज़हर देने आएगा। हकीम अपने घुटनों पर नादिम हो बैठ गया और हैरत से पूछने लगा, बादशाह सलामत फिर आपने यह अर्क क्यू पी लिया, सिकंदर जो कि अर्क पी कर राहत महसूस कर रहा था बोला: कि यह सच है.

कि तुम मुझे क़त्ल करने आये थे पर तुमने इरादा बदल दिया और यह बात तुम्हारी आँखों से बयां हो रही थी इसलिय पि लिया। लेकिन तुमने इरादा क्यू बदला। बुजुर्ग ईरानी हकीम ने कहा कि सच है मुझे आपको जहर देने के लिए भेजा गया था.

किन एक मुस्तहिक़ मरीज को देख एक क़ातिल ने मेरे अंदर दम तोड़ दिया और हिकमत हावी हो गयी ,, मेरे मक़सद पर मैंने अपने फ़र्ज़ को तरजीह दे कर सुकून महसूस किया। मै क़त्ल या शिफ़ा दोनों में से शिफ़ा को चुना, और आपने मुझे अगर आज छोड़ दिया तो ईरान से मार्के में आप मुझे सफ़हे अव्वल में पाएंगे।

क्यू कि उस वक़्त मेरा मकसद और फ़र्ज़ दोनों ही आपको हराना और हो सके तो कत्ल करना होगा। और सिकंदर ने उसके नज़रिये से खुश हो कर , उसे अमान दे दी। ताहम उसने दिल ही दिल में सराहना की कि यह जिंदगी जीने का मुकम्मल नज़रिया है।

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