मुसलमानों की 1300 साल की हुकूमत…. उरूज से लेकर ज़वाल तक

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अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मक्का से मदीना हिजरत करके जाते है तो वहा एक छोटी सी हुकूमत क़ायम करते है । वो इस्लामी हुकूमत धीरे-धीरे अपनी अपने उरूज पर पंहुचती है उसके बाद हज़रत अबू बक्र रज़ि की खिलाफत आती है।

हज़रत उमर-बिन-ख़त्ताब रज़ि की खिलाफत आती है हज़रत उसमाने ग़नी रज़ि की खिलाफत आती हज़रत अली रज़ि की आती है उसके बाद इस्लाम का वो निज़ाम मुंतक़िल होता है बनू उमय्या की तरफ उसके बाद बनू अब्बास की तरफ और ऐसे करते करते ये ये इस्लामी हुकूमत 1300 साल हुकूमत करती है।

ये वो ही हुकूमत है जिसे अल्लाह ने मुंतखब फरमाया अपने नबी के ज़रिये जिसका पौधा मदीने मे उगाया जिसके साए मे पूरी दुनिया आराम और चैन सुकून से सांस ले रही थी अपने अद्ल और इंसाफ के साथ रहती है । ये तारीख इस बात की भी गवाह है जहा हक़ होता है वंहा बातिल भी होता है बातिल का बस नही चल पा रहा था ।

उन लोगो ने मिल कर ये कोशिश की कैसे इनको तोड़ा जाए कैसे इनको नेस्तनाबूद करके दुनिया से ख़त्म कर दिया जाए। लेकिन जब उनको पता चला इनके अंदर इत्तेहाद और इत्तेफाक की ज़ंजीर है जो कभी टूटती नही इसी वजह से वो 1300 साल से मात खा रहे है।

तो उन्होंन मेहनत कर के मुसलमानो की सोच को बदल दिया फिक्र को बदल दिया इसके लिए उन्होंने ऐसे लिटरेचर ऐसी किताबे को लिखने के लिए मुसन्निफो की जमात तैयार की जिन्होंने इस्लाम को पढ़ा और शक पैदा करने के लिए ऐसी किताबे लिटरेचर लिखे जिनकी वजह से मुसलमानो का ऐतमाद खुद इस्लाम से हट गया फिर उन्होंने इस्लामी आखिरी हुकूमत जो तुर्की मे थी जिसको खिलाफते उस्मानिया कहा जाता है उसको इन्होने 3 मार्च 1924 को खत्म किया गया ।

उस दिन से इस क़ौम पर जो ज़वाल आया वो आज तक क़ायम है । कल तक जो एक हुकूमत थी जो क़यादत करती थी वो अवाम की देखभाल करती थी अपनो की भी पाकदार थी ग़ैरो की भी पाकदार थीं अदलो इंसाफ करते थे ज़ालिम का हाथ पकड़ते थे मज़लूम की हिमायत करते थे लोगो के आंसू पोछते थे.

वो अमीरुल मोमिनीन जो घर घर जाकर हर मज़हब के मानने वालो की बाज़पोसी करते थे हत्ता कि यहूदी नसरानीयो की भी खैरियत लेते थे लेकिन 3 मार्च 1924 को कमाल अता तुर्क जो एक यहूदी था उसकी सरबराही मे मुस्लिम हुकूमत को दुनिया से खत्म कर दिया गया।

इसके लिए इन्होंने मुसलमानो की फिक्र को बदला मुसलमानो के माज़ी के सबक़ को भुला दिया दुनिया मे आने का मक़सद भुला दिया । जब तक इस्लामी हुकूमत का आखिरी वक्त था उस वक्त का खलीफा आखिरी सांस ले रहा था शेर बूढ़ा हो चुका था.

उस वक्त फ्रांस ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उम्मुल मोमिनीन हज़रत आएशा रज़ि पर एक स्टेज शो रखा जिसमे उनको एक्टर और एक्टर्स को दिखाना था जब ये खबर खलिफतुल मोमिनीन को हुई तो उन्होंने वहा के सफ़ीर से कहा मेरे नबी की शान मे ग़ुस्ताख़ी हुई तो ऐसा लश्कर छोड़ूगां तुम्हारी जड़े ख़त्म हो जाऐंगी।

ये सुनते ही वो स्टेज शो खत्म हो गया । एक आवाज़ पर वो भी बूढ़ी हो चुकी आवाज़ पर हुकूमते फ्रांस हिल गया ये मेयार इस्टेटस रहा हमारा ।

आज वो दिन है जब हमारी उस आवाज़ को भी खत्म कर दिया गया ये वो दिन है ये ही वो दिन जब हम इस दुनिया से खिलाफते उस्मानिया को खत्म कर दिया गया ये हमारी तबाही का दिन है वो तबाही जो आज तक चली आ रही है । हमे हर दिन याद रहता लेकिन अपनी बर्बादी का दिन याद नही और वो किस वजह से हुई ।

अपनी नस्लो को ये बताए हमारी 1300 साल हुकूमत रही है जंहा मुसलमानो के पर्चम के नीचे मुसलमानो को दुनिया वालो को अद्ल और इंसाफ का दर्स दिया जाता था। उस मुसन्निफ ने ये बताया है हमने मुसलमानो को तोड़ने के लिए उनकी फिक्रो को बदला उनके माज़ी को भुलाया नई नई चीज़े उनमे रचाई बसाई जिसकी वजह से ये अपने माज़ी को उठा कर ना देखे उन्होंन क्या करा है वो ना करे।

अल्लाह के रसूल फरमा कर गए है तुम कभी गुमराह नही हो सकते जब तक किताबुल्ला सुन्नते रसूलुल्लाह पर क़ायम रहोगे । और एक हदीस का मफहूम भी है तुम जब तक कामयाब नही हो सकते तुम वो करो जो तुम्हारे पिछलो ने किया। ज़रूरत है हम वो करे जो हमारे पिछलो ने किया अल्लाह के हुक्मो को पूरा करे अल्लाह के रास्ते का ख़ुरूज को जिंदा करे क्योंकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने तमाम सहाबा को ख़ुरूज के लिए उभारा है।

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