40 दिन बारिश के बाद जब हज़रत नूह अलै. ने ज़मीन की खबर लाने के लिए कबूतर को भेजा तो…

जब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने आसमान पर क़ियाम कर लिया, तो शैतान को मौका मिल गया ,चुनांचे उसने पूरी दुनिया को बिगाड़ और गुमराही से भर दिया।  हर दिन नाफ़रमानी, बे हयाई, गंदगी बढने लगी और गुमराही से पूरी दुनिया भर गई।
फिर अल्लाह तआला ने पूरी दुनियां को सुधरने और सीधे रास्ते पर चलने के लिए हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को नबी बनाकर भेजा। हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने नौ सौ पचास वर्ष की उम्र पायी थी और अस्सी वर्ष क#2375; बाद पहली वही आपके पास आयी।

नबी बनते ही हज़रत नूह ने पूरी कौम में दींन की दावत फैलानी शुरू कर दी।लोगों को भलाईयों पर उकसाते और बुराइयों से मन करते, साथ ही अल्लाह तआला से दुआ करते की कौम को हिदायत हासिल हो।  लेकिन कौम के लोग बड़े पत्थर दिल थे, अपने कुफ्र पर जमे रहे और हज़रत नूह को झुठलाने में लगे रहे।
हज़रत नूह ने बड़ी मेहनत की,  तमाम उम्र तब्लीग करते रहे,फिर भी कुल अस्सी आदमियों ने इस्लाम क़ुबूल किया सिर्फ यही थोड़े से लोग थे जो हज़रत नूह के बताये रास्ते पर चलते रहे। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है की फरमाया किसी पैगम्बर ने अपनी कौम से इतनी तकलीफ नहीं उठायी ,जितनी हजरत नूह ने अपनी कौम कौम के हाथो मुसीबत उठायी है।
हजरत नूह की कौम के बुरे लोग उन्हें हमेशा डराया -धमकाया ,करते कहते की अपनी इन ‘नेक’ बातो से बाज  आ जाओ और हमारे बुतो को बुरा-भला कहने से रुक जाओ. उनकी सहायता भी करते हैं/ जब वह भली बाते बताते होते तो उन्हें मार-मारकर बेहाल कर देते, यहाँ तक कि बेटे खबर पाते और उन्हें उठाकर ले आते|
दुश्मनों कि दुश्मनी इस हद तक बढी हुयी थी कि वे मरने के वक़्त अपने बेटों को वाशीयत करते और अपने कुफ्र के अकीदे पर उन्हें जमे रहने की हिदायत करते, कहते, बेटों ! हरगिज अपने बाप-दादा के दींन से फिसलना मत , न नूह कि बातों का असर लेना और जहाँ तक हो हजरत नूह को दुःख और तकलीफ पहुचाना ,चाहे तुम्हारा ठिकाना जहन्नम ही हो।

जब ऐसी मुसीबतों में सात सदियाँ गुजर गयी,तो हजरत नूह अलैह मायूस और तंगदिल होने लगे। जब हालत यह हो गयी तो अल्लाह तआला  ने वहा नाजिल की, उन्हें तसल्ली दी और फरमाया, ऐ नुह  तंग दिल मत होना. अब तुम इन जालिमो से आस मत रखो, उनका साथ छोड़ दो! जो ईमान लाये, सो लाये, बाकी अब ईमान नहीं लाने के| ये तो बख्त है, सब के सब जहन्नम ईधन बनेगे हजरत नुह ने अर्ज किया कि अल्लाह! इनकी नस्ल से भी कोई ईमान लायेगा या नहीं ?
हुक्म हुआ, ये तो ईमान न लायेंगे, वे तो जालिम हैं ज़ालिम फिर भी हजरत नुह ने मुहब्बत और लगाव कि वजह से और इस-लिए भी कि कोई इल्जाम न दे फरमाया कि ऐ लोगो ! ईमान न लाओगे तो यह समझो कि अल्लाह का अजाब
आया.
कौम ने कहा कि हमारे जो बुत है उनकी इबादत हम हरगिज न छोड़ेंगे, तुम एक खुदा कि इबादत कि बात करते हो तो इसके खिलाफ हम तो इन्ही बुतों को पूजेंगे। तुम जो हमसे हेर वक़्त बहस व तकरार करते हो , तो फिर ठीक है ,तुम अगर सच्चे हो तो ले आओ अपने रब का अजाब, हम उसे समझ लेंगे.

खुदा का अजाब –: जब हजरत नूह मायूस हो गये और…

दुश्मन अपनी दुश्मनी अकड़ते रहे, तो हजरत नूह अलैहिस्सलाम ने बड़ी ही नरमी और आजिजी के साथ अल्लाह को पुकारा और कहा –ऐ खुदा ! जब मै इनको तेरी ताबेदारी और बंदगी कि तरफ बुलाता हूँ, ताकि तू इन्हें बख्शे ,तो ये अपनी अकड में ये अपनी कानो में उँगलियाँ ठूस लेते हैं , अपने चेहरों पर कपडे दल लेते हैं.
और मेरी बात सुनते ही नहीं बल्कि अपने कुफ्र बल्कि अपने कुफ्र में और तेज हो जाते हैं तो अब यह बन्दा मजबूर है|तू तो हर इक पर कुदरत रखता है ,तो ऐ खुदा ! गारत कर दे इन दुश्मनों को, इन इन्कारियों को और इनके मुल्क और इलाके को मत छोड़.
हजरत नूह की यह आवाज अल्लाह ने सुन ली | अजाब का फैसला हो गया कि इस कौम को तूफ़ान से हलाक करके पानी के रास्ते से दोजख की आग में डालेंगे और हजरत नूह और उनके मानने वालों केलिए यह फैसला हुआ कि इन्हें हम इस अजाब से बचायेंगें और नाव में बिठाकर तूफ़ान से महफूज रखेंगें.
इस फैसले को अमली जमा पहनाने से पहले कौम पर ऐसा अजाब आया कि कौम कि नस्ल चलने का सिलसिला रुक गया | इसके बाद अल्लाह के हुक्म से हजरत जिब्रील ने साज का पेड़ बोने का हुक्म दिया, बीस वर्ष कि मुद्दत में यह पेड़ खूब बड़ा हो गया | फिर जिब्रील ने बताया कि अब इस पेंड़ कि लकड़ी से नाव बनाना रू कर दो | हशुजरत नुह अलै० ने नाव बनानी शुरू कर दी |
हजरत नुह अलै० को यह नया काम करते देखकर दुश्मनों को उन्को सताने और चिढाने का मौका मिल गया |वे हजरत नूह अलैहिस्सलाम का मजाक उड़ाते और कहते ,ऐ नूह !अब तुम नबी के रुतबे से गिरकर बढई कब से हो गए,क्या पैगम्बरी के कामों से उकता गये ?नाव तो बना रहे हो ,पर पानी कहाँ है,जिस पर यह नाव चलेगी?
हजरत नूह ने फरमाया तुम,तो अपने अंजाम से बेखबर हो, दुनिया में ऐसे फसे हो कि आखिरत कि खबर ही नहीं. तुम तो आज हमारा मजाक उड़ा रहे हो लेकिन खूब समझ लो कल हमारी बारी आएगी,हम तुम्हारा मजाक उड़ाएगे.
इस तरह हजरत नूह अपनी नाव तैयार करने में जुटे रहे जब नाव तैयार हो गयी तो उन्होंने तख्ती के जोड़ पर हर हिस्से में रोगने कीर लगाया और अल्लाह के हुक्म के मुताबिक शमशाद के तख्तों का ताबूत हजरत आदम के मुबारक जिस्म के लिए बनाया और इसी वजह से अल्लाह ने उनके जिस्म को तूफ़ान से बचाया.
फिर हजरत जिब्रील ने हर जिंस के पक्षी और जानवर, जो धरती पर पाए जाते थे ,हजरत नूह के पास जमा किये |हजरत नूह ने हर जानवर का एक जोड़ा लेकर नाव में चढाया| हजरत नूह के जितने दीनी साथी थे,उन्हें भी नाव में सवार किया |जब ये बयासी लोग नाव में सवार हुए और उनके तमाम समान भी नाव में लद गये,तब अल्लाह का अजाब शुरू हुआ और तनूर से पानी का फव्वारा निकलना शुरू हुआ.

हजरत नूह कि बीवी और उनका बेटा कनआन नाव पर न आये कनआन ने तो कह दिया,मै किसी पहाड़ी पर पनाह ले लूँगा. हजरत नूह बोले,इससे काम न चलेगा,न पहाड़ की पनाह काम देगी ,न किसी झाड़ और न पौधे की इसलिए बेटे ! तुम अब भी आ जाओ.
लेकिन वह नाफरमान बेटा न माना इसी बीच एक मौज आई और उसे डूबा दिया हजरत नूह को उनके डूबने पर बड़ी दया आयी, अर्ज किया कि यह बेटा अपनों मे से है,और ऐ अल्लाह !तूने अपनों को बचने का वायदा किया था उम्मीद है तू अपना वायदा पूरा करेगा|हुक्म हुआ, अपना वह है जो भले कामों वाला है,बुरे कामों वाला अपना नहीं है.
अजाब का मंजर: चालीस दिन तक तूफ़ान का यह पानी जमीन को डुबाता रहा आसमान से वर्षा भी हुयी ,जमीन से पानी के सोते भी फूटे, तमाम आबादियों के मका  ,बाग़ माल जायदाद और तमाम लोग इस तूफ़ान की भेंट चढ़ गये,हर तरफ पानी ही पानी था,यहाँ तक की पहाड़ भी इसमें डूब गये लेकिन नूह कि नाव पे जो लोग सवार थे ,वे झकोले खाते हुए भी,अँधेरा, हवा और अथाह पानी के होते हुए भी अल्लाह कि पनाह में थे अल्लाह ने उन्हें डूबने से बचा लिया था.

फिर तूफान के ख़त्म होने का हुक्म हो गया,कहा गया जमीन !अपने पानी को थाम |आसमान!अब पानी का काम नहीं |जब नाव से उतरने का वक़्त करीब आया तो हजरत नूह ने कव्वे को फरमाया कि जल्दी पानी का हाल मालूम करके एलान करे ,ऐसा न हो कि कही जाकर ठहर जाए|कव्वा जाकर मुर्दार खाने में लग गया और यहाँ भूल गया कि हजरत नुह ने कुछ कहा था | इसलिए उसे हजरात्नुह ने बाद-दुआ दे दी और वह हमेशा के लिए जलील व ख्वार कर दिया गया | अपनी ना फ़रमानी कि वजह से मुर्दार खाना उसके भाग्य में लिख दिया गया|
फिर कबूतर को हुक्म दिया कि वह पता लगाए वह जैतून के पत्तो को चोंच में लेकर वापस आया पत्तो ही के बुनियाद
पर हजरत नुह ने यह अंदाज लगाया कि पानी अब काफी खसक गया है और अब पेड़ो के सर पानी से ज़ाहिर हो गए कि | इस खबर से दिल का गम और रंज दूर हुआ.
अब तो कबूतर के जिम्मे यह काम कर दिया गया कि वही जाये और ये खबर लाए कि पानी अब किस दह तक घटा।कबूतर हर दिन उड़ता और पानी की कमी की खबर किसी न किसी तरह पहुंचता था। एक दिन कबूतर के पांव में कीचड़ लगी हुई पायी गयी ,यह इस बात का सबूत था की जमीन पर से पानी बिलकुल खिसक गया है। हज़रत नूह को बेहद.
उन्होंने कबूतर के हक़ में दुआ की,जा तुझे खुद मखलूक की निगाह में प्यारा बना देगा,हर आदमी तुझे चाहेगा। तफ़्सीर लिखने वाले कहते हैं कि हक़ तआला ने हुक़्म दिया की मई एक पहाड़ी पर नाव को ठहराऊंगा और तमाम नाव वालों को उस पहाड़ पर उतार दूंगा।
रिवायत है कि नाव में बैठे लोग बू और गंदगी से बड़फी तकलीफ उठा रहे थे और समझ में नही आता था कि क्या करे। हज़रत नूह ने अल्लाह से दुआ की और इस मुसीबत को दूर करने की दरख्वास्त की। हुक़्म हुआ कि अपना हाथ हाथी की पीठ पर रखो।
हज़रत नूह के हाथ रखते ही एक सूअर का जन्म हुआ उसने सब नाजासतें खाकर गंदी फिजा को बेहतर बना दिया। इसी तरह ज्यों ही हज़रत नूह ने अल्लाह के हुक़्म से शेर के माथे पर हाथ डाला, क़ुदरत से बिल्ली निकली और उसने सरे चूहों को खा लिया।
सब पहाड़ों ने अपनी बुलंदी पर फक्र करते हुए सर बुलंद किया, मगर जूड़ी पहाड़ ने छोटापन ही दिखाया।अल्लाह तआला ने उसके इस छोटेपन की वजह से उसे इज्जत बख्शी और नूह की नाव उस पहाड़ पर ठहराई गयी,पीर उसी पहाड़ के नीचे तमाम लोग उतरे ,वहां एक गांव आबाद किया।इस गांव का नाम सुके आमानीन था।
जब यह गांव पूरी तरह आबाद हो गया तो एक बार फिर एक ऐसी वेब चली की पूरी आबादी तबाह हो गयी ,सिर्फ हज़रत नूह और उनके तीन बेटे बाकी रह गए –हम,साम और याफ्स ,बाकि सब फणा हो गए।  अल्लाह तआला ने वहा भेजी की मने तेरी कौम को कुफ्र और नाफ़रमानी की वजह से हलाक़ किया।  अब जो बचे हैं,उनको तूफान जैसी अजाब का शिकार न बनाऊंगा।
फिर अल्लाह तआला ने नूह की नस्ल में ऐसी बरकत रखी कि चालीस वर्ष की मुद्दत में कई शहर और गांव आबाद हो गए।  हज़रत नूह ने मुल्क शाम, फारस,खुरासान,इराक वगैरह के इलाक़ा सैम को दे दिया,पश्चिमी मुल्क हब्शा वगैरह हम को दिया और चीन तुर्किस्तान वगैरह याफ्स को दिया। एक दिन जिब्रील और इजराइल ने हज़रत नूह से पूछा इस लंबी उम्र बाद तुमने इस फनी दुनिया को कैसा पाया,कहा धुंए की तरह की थोड़ी देर रुक कर एक दरवाजे से दाखिल हुआ और दूसरे से निकल गया।
जब हज़रात नूह बीमर हुए और इंतकाल फरमा गए तो उनके बेटों ने उनको बैतूल  मुक़द्दस में दफन किया,वे उनकी जुदाई से बेहद परेसान व ग़मगीन रहे। हज़रत नूह सच्चे पैगम्बर थे,वह हमेशा अपनी कौम को अल्लाह की खुशी हासिल करने की तरफ बुलाते रहे।  वह बड़े इबादत गुजर थे।