क्राइम रिपोर्टिंग और मुस्लिम नौजवानों को ‘आतंकी’ साबित करने की मीडिया में मची है होड़

20 अप्रैल की सुबह एक बार फिर दिल्ली, यूपी और बिहार के क्राइम रिपोर्टरों की मानों लॉटरी निकल आई थी. वजह यूपी पुलिस के एंटी टेररिज़्म स्क्वाड समेत पांच राज्यों की पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन में एक ‘टेरर मॉड्यूल’ का ख़ुलासा थी. यह ख़बर ब्रेक की थी न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने जिसके फौरन बाद टीवी के क्राइम रिपोर्टर ‘देश में फैले आतंकी नेटवर्क’ पर कथा-कीर्तन करते हुए स्क्रीन पर देखे गए. क्राइम रिपोर्टर के लिए इस तरह के ऑपरेशन ‘मौक़े’ होते हैं जहां वो बेहतरीन करतब दिखाते हुए संपादक की नज़र में अपने प्वाइंट्स बनाते हैं.
क्राइम रिपोर्टर जो ख़ुद को हमेशा ओवरलोडेड मोड में पेश करते हैं, उन्हें भनक तक नहीं होती कि हमारी पुलिस फिलहाल किस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. वो हरकत में तब आते हैं, जब एजेंसियां ख़ुद इसका ख़ुलासा करती हैं. ऑपरेशन के बारे में उन्हें उतना ही पता चल पाता है जितना की पुलिस उनतक पहुंचाना चाहती है. अफ़सरों के इस ‘एहसान’ पर क्राइम रिपोर्टर इस हद तक दबा होता है कि वो कभी उसके दावों पर सवाल खड़ा नहीं करता. वो इतने में ही ख़ुश रहता है कि अफसर उसे ख़ुद इनपुट वॉट्सएप करता है.
आमलोगों को मूर्ख बनाने के लिए ऐसी कवरेज डोज़ का काम करती हैं. 2014 के बाद से यह डोज़ बढ़ाई जा रही है. जो मूर्ख नहीं बनना चाहते, न्यूज़ एंकरों और क्राइम रिपोर्टरों के एक-एक शब्द अब कोड़े की तरह उनकी पीठ पर पड़ते हैं. 20 अप्रैल को हुए ऑपरेशन की कवरेज क्या बताती है? यही कि यूपी एटीएस के अफ़सरों ने जो बयान जारी किया, क्राइम रिपोर्टरों ने उसे कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया. एजेंसी ने किसी भी बयान में पकड़े गए लड़कों का संबंध किसी आतंकी संगठन से नहीं जोड़ा लेकिन क्राइम रिपोर्टर उन्हें इस्लामिक स्टेट और खुरासान मॉड्यूल का आतंकी बताते रहे. क्राइम रिपोर्टरों के सवालों पर अगर ग़ौर करें तो साफ पता चलता है कि वो पकड़े गए लोगों को आतंकी मान चुके होते हैं.