साल 1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वंस से उठी सांप्रदायिक हिंसा की आग ने हिंदू मुसलमान की खाई को चौड़ा कर दिया था. लेकिन ये कहानी एक ऐसे मुसलमान पुरातत्व विज्ञानी की है जिसने 8वीं शताब्दी के प्राचीन हिंदू मंदिर को बचाने के लिए मध्य प्रदेश के खनन माफ़िया से लोहा लिया. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी मदद मांगी. चंबल के डाकुओं से मदद से भी मदद मांगी. बात साल 2005 की है. पुरातत्व विज्ञानी केके मोहम्मद ने ग्वालियर से 40 किलोमीटर दूर बटेश्वर स्थित 200 मंदिरों के जीर्णोद्धार का जिम्मा संभाला. 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच बने ये मंदिर पूरी तरह जमींदोज हो चुके थे. ये क्षेत्र भी डाकुओं और खनन माफियाओं से प्रभावित था. लेकिन के के मोहम्मद इस काम को करने का मन बना चुके थे.
डाकुओं ने की मोहम्मद की मदद
बटेश्वर के जमींदोज़ हो चुके 200 प्राचीन मंदिरों को फिर से ज़िंदा करना अपने आप में एक भागीरथ प्रयास था.
केके मोहम्मद बताते हैं, “ग्वालियर पहुंचने पर लोगों ने बटेश्वर के प्राचीन मंदिर के बारे में बताया. इसके साथ बताया कि ये डाकुओं का इलाका है, काम करना बहुत मुश्किल है. और कुछ भी करने से पहले डाकुओं से इजाज़त लेनी होती है. डाकुओं को पता चला कि कोई मुसलमान है, वो भी जिनके नाम में ‘मोहम्मद’ है. एक मुसलमान क्यों मंदिर को ठीक करेंगे.”
ये वो दौर था जब चंबल के बीहड़ में राम बाबू, निर्भय गुर्जर और पप्पू गुर्जर के आतंक का बोलबाला था.
केके मोहम्मद ने डाकुओं से बात करते हुए उन्हें वो बताया जिसे सुनकर डाकू सहर्ष मदद करने को तैयार हो गए.
केके मोहम्मद बताते हैं कि इस क्षेत्र में राम बाबू गुर्जर और निर्भर गुर्जर का बोलबाला था. ऐसे में जब डाकुओं को बताया गया कि मंदिरों को गुर्जर प्रतिहार राजाओं द्वारा बनवाया गया था और गुर्जर समुदाय के डाकू उस वंश के राजकुमार की तरह हैं. इसके बाद उन्होंने मंदिर के जीर्णोद्धार को अपना कर्तव्य मानते हुए मदद करना शुरू कर दिया.
वैदिक मंत्रों की मदद से खड़ा हुआ टुकड़ों में बिखरा मंदिर मंदिर परिसर के पुनर्निर्माण में कई समस्याएं थीं. सबसे बड़ी समस्या ये थी कि मंदिर के अवशेष एक बड़े क्षेत्र में फैले हुए थे. मंदिर के हिस्सों को ढूंढना और उनको एक दूसरे के साथ जोड़ना अपने आप में एक चुनौती थी.