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इस्लाम की परख हुजूर के ज़माने से ही चली आ रही है और शायद ऐसा सदियों तक चलता रहेगा. यह किस्सा है सैकड़ों सालों पहले का जब अरब के एक शख्स ने इस्लामदीन-ए-इस्लाम की कीमत पता करनी चाहि, पोस्ट अगर अच्छा लगे तो दूसरे भाइयों तक जरूर शेयर करना.
एक उस्ताद था वो अक्सर अपने शार्गिदों से कहा करता था कि दीने इस्लाम बड़ा क़ीमती है. एक रोज़ एक तालिब-ए-इल्म का जूता फट गया वो मोची के पास गया और कहा कि मेरा जूता मरम्मत कर दो उसके बदले में , मैं तुम्हें दीने इस्लाम का एक मस्अला बताऊंगा.
मोची ने कहा कि अपना मस्अला रख अपने पास मुझे पैसे दे. तालिब-ए-इल्म ने कहा “मेरे पास पैसे तो नहीं हैं” मोची किसी सूरत ना माना और बगैर पैसे के जूता मरम्मत ना किया. तालिब-ए-इल्म अपने उस्ताद के पास गया और सारा वाक़िया सुना कर कहा: लोगों के नज़दीक दीन की क़ीमत कुछ भी नहीं.
उस्ताद भी अक़लमंद थे: तालिब-ए-इल्म से कहा: अच्छा तुम ऐसा करो: मैं तुम्हें एक मोती देता हूँ तुम
सब्ज़ी मंडी जा कर इसकी क़ीमत मालूम करो !
वो तालिब-ए-इल्म मोती लेकर सब्ज़ी मंडी पहुंचा और एक सब्ज़ी फ़रोश से कहा: इस मोती की क़ीमत
लगाओ. उसने कहा कि तुम इसके बदले यहाँ से दो तीन नींबू उठा लो इस मोती से मेरे बच्चे खेलेंगे. वो बच्चा उस्ताद के पास आया और कहा कि इस मोती की क़ीमत दो या तीन नींबू है.
उस्ताद ने कहा कि अच्छा अब तुम इसकी क़ीमत सुनार से मालूम करो. वो गया और पहली ही दुकान पर जब उसने मोती दिखाया तो दुकानदार हैरान रह गया. उसने कहा: अगर तुम मेरी पूरी दुकान भी ले लो तो भी इस मोती की क़ीमत पूरी ना होगी.
तालिब-ए-इल्म ने अपने उस्ताद के पास आकर मा जरा सुनाया उस्ताद ने कहा:बच्चे! हर चीज़ की क़ीमत उसकी मंडी में लगती है. दीने इस्लाम की क़ीमत अल्लाह वालों की महफ़िल में लगती है उसकी क़ीमत को अहल-ए-इल्म ही समझते हैं जाहिल क्या जाने दीने इस्लाम की क़ीमत …. !
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