नमरूद की तबाही का क़िस्सा

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हजरत इब्राहिम ने नमरूद से कहा की तू बुरे काम छोड़ दे। और पशेमान हो कर अल्लाह के आगे आजा। अल्लाह ने तुझे चार सो साल से बादशाहत दे रखी हे लेकिन तू अपने कुफ्र से बाज़ नहीं आ रहा है।

और अपनी नादानी से खुद को खुदा मानता है। तू यह जान ले खुदा का लश्कर इतना ज्यादा है की अंदाज़ा नहीं कर सकते और तुजे गारत करने के लिए तो एक अदना सा लश्कर ही काफ़ी है।

नमरूद ने कहा में नहीं समझता के जमीन पर मेरे सिवा कोई दूसरा बादशाह है। और मेरी बारगाह के सिवा कोई दूसरी बारगाह है। अगर आसमानी बादशाह की फौज है तो उससे कहो की वह मुझ पर भेजे और फिर मेरी लड़ाई और ताकत का तमाशा देखे।

हजरत इब्राहिम ने दुआ की।

हजरत जिब्रील नाज़िल हुए और कहा की नमरूद से कहो की हमारी फ़ौज़ आ पहुंची, तू तैयार हो जा। और अपनी फौज़ लेकर मैदान में जंग कर। तीन रोज़ की मोहलत में नमरूद की फौज बुला ली गई। एक मैदान में सब जमा हुए।

चौथे रोज़ नमरूद की फौज के मुकाबले में तन्हा हजरत इब्राहिम सामने आय। उन्हें अकेला देख कर लोगो ने कहा, ”इब्राहिम, वह आसमानी फौजे कहा है? अब तुझ पर आफत आने में कुछ भी देर नहीं।”

अभी बात चीत हो ही रही थी की एकाएक मछरों की फौज ज़ाहिर हुई। जिसकी वजह से सूरज की रौशनी छिप सी गई। नमरूद घबरा गया। लश्कर पर भी हेरात तारी हो गई। नमरूद ने हुक्म दिया, ‘नक़्क़ार बजाकर मछरों को भगा दें”

जब मछरों की आवाज़ कानों में आई, फौज घबरा गई। एक गूंज थी, एक शोर था जो उभरा आ रहा था। एक एक आदमी पर लाखों मच्छर पिल पड़े। मच्छर क्या थे एक काली बला थी जो सर से पाँव तक चिमट रही थी। लोगो के बदन पर गोश्त और खून तक नहीं छोड़ रही थी। हजारों आदमी और जानवर तबाह हुए

और नमरूद अपने महल में भागकर औरतों में जा छिपा। इतने में एक लंगड़ा मच्छर आया और तेज़ी से नाक की राह से नमरूद के दिमाग तक जा पंहुचा और अपनी सूंड को उसके भेजे में चुभा दिया। वह दिन रात अपना सर पीटता रहता, इस तरह नमरूद को खुदा के आज़ाब ने जकड लिया। चालीस दिन के बाद वह इसी दर्द की वजह से हलाक हुआ।

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